महाराष्ट्र-हरियाणा में विधानसभा चुनाव परिणाम की तस्वीर लगभग साफ होती दिख रही है. दोनों राज्यों के नतीजों में भाजपा जीतकर भी हारती नजर आ रही है. भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया है. हरियाणा में इसी वजह से भाजपा की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है क्योंकि सत्ता की चाभी दुष्यंत चौटाला की नई नवेली जन नायक जनता पार्टी के हाथ है.
मतगणना लगातार जारी है और इसके रुझान भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं हैं. हरियाणा में तो कांटे की टक्कर दिख रही है और ये भी लग रहा है कि वहां त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आ जाएगी. महाराष्ट्र में भी भाजपा अपने दम पर बहुमत लाने की हालत में नहीं दिख रही, जिसका वो सपना देख रही थी. इन विधानसभा चुनावों में एक सबसे खास बात ये रही कि वोटिंग बहुत ही कम हुई, जिसका सारा नुकसान भाजपा को होता दिख रहा है. माना जा रहा है कि बहुत से लोग मौजूदा विकल्पों से खुश नहीं हैं, इसलिए वह वोट डालने के लिए निकले ही नहीं. भाजपा ने कम से कम कांग्रेस की तुलना में तो खूब कोशिशें की थीं, लेकिन उनकी नतीजे भाजपा को खुश नहीं कर रहे हैं. हालांकि, चुनावों से पहले तक भाजपा निश्चिंत दिख रही थी, लेकिन अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के माथे में शिकन दिखना लाजमी है.
हरियाणा में तो भाजपा को झटका लगा ही है, महाराष्ट्र में भी उनका सपना टूट गया है.
एक ओर भाजपा है, जिसने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए अपनी ताकत झोंक दी. 7 रैलियां पीएम मोदी ने कीं और 7 अमित शाह ने कीं. राजनाथ सिंह ने भी कुछ रैलियां कीं. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस है, जिसके लिए राहुल गांधी ने दो रैलियां कीं और सोनिया गांधी ने तो एक भी रैली नहीं की. यहां तक कि भूपेंद्र सिंह हुडा को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में देरी की. चुनावों से करीब 15 दिन पहले ही भूपेंद्र सिंह हुडा को कांग्रेस सामने लाई. ये बात हुडा भी मानते हैं कि पार्टी ने उन पर भरोसा दिखाने में देरी की. इन सब के बावजूद कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दे दी है. यानी एक बात तो तय है कि लोग खट्टर से खुश नहीं हैं. जो वोट भाजपा को मिले हैं वो भी मोदी और शाह की बदौलत मिले हैं.
हरियाणा में तो भाजपा की सरकार ही बनना मुश्किल लग रहा है, लेकिन महाराष्ट्र में भी भाजपा का सपना टूटता सा दिख रहा है. भाजपा ने भले ही शिवसेना के साथ गठबंधन किया था, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि वह बहुमत से जीतेगी. वैसे भी, शिवसेना आए दिन कुछ ना कुछ ऐसा करती ही है कि भाजपा को दिक्कत होती है. ऐसे में अगर भाजपा बहुमत से जीतती तो शिवसेना पर भी दबाव बनाए रख सकती थी, लेकिन भाजपा को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है. यानी शिवसेना के बिना महाराष्ट्र में उनकी सरकार बनना मुमकिन नहीं हैं.