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अमेरिका के प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ा

[Edited By: Rajendra]

Wednesday, 3rd August , 2022 12:55 pm

अमेरिका के प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है. लगातार दोनों देशों के बीच तल्खी विश्व पटल पर दिखाई देने लगी है. इस बीच चीन की आर्मी ने ताइवान की सीमाओं के किनारे घेराबंदी की और सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है. वहीं, ताइवानी आर्मी ने बॉर्डर पर टू लेयर डिफेंस वॉल तैयारी की. पहली लाइन में ताइवान की थल सेना को रखा गया और दूसरी लेयर में बैंटल टैंक और आर्टिलिरी के अलावा कमांडो दस्ता मुस्तैद किया गया है. हालात यूक्रेन जैसे मालूम पड़ने लगे हैं.

दरअसल, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने सोमवार रात घोषणा की थी कि वह कई जगहों पर लाइव-फायर अभ्यास करेगी. ताइवान की सेना का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में, चीनी खुफिया जहाजों और मिसाइल विध्वंसक को बाहरी ऑर्किड द्वीप और ताइवान के हुलिएन के पश्चिमी तट के पास देखा गया है. ताइवान की सेना हाई अलर्ट पर है, लेकिन अभी भी अपनी टू-टियर प्रणाली में “सामान्य” स्तर पर बनी हुई है. यह अभी तक तत्परता के इमरजेंसी स्तर तक नहीं बढ़ा है.

चीन ने ताइवान को हर तरफ से घेरा है और 6 जगहों पर बम बरसा शुरू कर दिया है. हालांकि यह अभी उसका सैन्य अभ्यास है. चीन की कोशिश है कि अपने सैन्य अभ्यास के जरिए अमेरिका आईना दिखाया जा सके. बीते दिन 20 से अधिक चीनी सैन्य विमानों ने ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में उड़ान भरी.

चीन ने लगातार दावा किया है कि ताइवान उसका हिस्सा है, जिसकी वजह से वह विदेशी अधिकारियों के ताइवान दौरे कर रहा है क्योंकि उसे लगता है कि यह द्वीपीय क्षेत्र को संप्रभु के रूप में मान्यता देने के समान है. उसने अमेरिका को साफ तौर पर धमकी देते हुए कहा था कि अगर पेलोसी ताइवान की यात्रा पर हैं तो गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा.

नैंसी पेलोसी ने बुधवार सुबह ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन से मुलाकात की और द्वीप देश के लिए वाशिंगटन के समर्थन को दोहराया और कहा कि ताइवान की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए अमेरिका हर स्तर पर साथ देगा. अमेरिकी स्पीकर पेलोसी ने कहा, दुनिया में लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच संघर्ष है. जैसा कि चीन समर्थन हासिल करने के लिए अपनी सॉफ्ट पावर का उपयोग करता है, हमें ताइवान के बारे में उसकी तकनीकी प्रगति के बारे में बात करनी होगी और लोगों को ताइवान के अधिक लोकतांत्रिक बनने का साहस दिखाना होगा.

नैन्सी पेलोसी जैसे ही ताइवान पहुंची चीन ने एक तरफ तत्काल अपने 21 लड़ाकू विमान ताइवान के पास भेज दिए वहीं दूसरी तरफ अमेरिकी राजदूत निकोलस बर्न्स को इस यात्रा को लेकर जवाब देने के लिए तलब किया. इतना ही नहीं चीन ने अमेरिकी राजदूत के जरिए धमकी देते हुए कहा कि इस यात्रा के बहुत गंभीर परिणाम होंगे. वहीं चीन ने ताइवान पर कुछ प्रतिबंध भी लगा दिए हैं.

दरअसल, चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि बर्न्स को बुधवार सुबह तलब किया गया. चीन ने अमेरिकी राजदूत निकोलस बर्न्स को बताया कि पेलोसी के ताइवान दौरे की प्रकृति बेहद शातिर है और इसके परिणाम बहुत गंभीर हैं. चीन इसको लेकर शांति से नहीं बैठेगा। अमेरिकी सरकार को पेलोसी के इस दौरे को रोकना चाहिए था, लेकिन मिलीभगत के जरिए उन्हें ऐसा करने दिया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक चीन के उप विदेश मंत्री झी फेंग की तरफ से अमेरकी राजदूत को कड़े शब्दों में बताया गया कि ताइवान चीन का ताइवान है और ताइवान अंततः अपनी मातृभूमि की गोद में वापस आ जाएगा. चीनी लोग दबाव से नहीं डरते हैं। इतना ही नहीं चीन की तरफ से बुधवार को ताइवान के खिलाफ कई आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों की भी घोषणा की है.

वन चाइना की पॉलिसी एक चीनी शासन को राजनयिक मान्यता देती है. इस पॉलिसी के पीछे इतिहास जानना जरूरी है. 1644 में चीन में चिंग वंश शासन करता था. चिंग वंश ने चीन का एकीकरण किया. इसका शासन 1911 में चिन्हाय क्रांति तक चला. इस क्रांति के चलते चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा. इससे बाद चीन में राष्ट्रवादी क्यूओमिनटैंग पार्टी, जिसे कॉमिंगतांग पार्टी भी कहा जाता है, उसकी सरकार बनी. चिंग वंश के अधीन वाले सारे इलाके क्यूओमिनटैंग सरकार के अधीन चले गए. चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली क्यूओमिनटैंग सरकार के शासनकाल में ही चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना पड़ा. 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने क्यूओमिनटैंग सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया और परिणाम स्वरूप चीन में गृह युद्ध छिड़ गया. गृहयुद्ध में क्यूओमिनटैंग लोगों की हार हुई. इसके बाद हारे हुए लोग ताइवान चले गए और इस हिस्से में अपनी सरकार बना ली. वहीं, जीते हुए कम्युनिस्टों ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से मुख्यभूमि पर शासन शुरू कर दिया. दोनों ही तरफ के लोग दावा करने लगे कि वे पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं.

1949 में चीन में जब गृहयुद्ध खत्म हुआ और मुख्यभूमि पर कम्युस्टों का शासन हो गया तो इसी के साथ वन चाइना पॉलिसी अस्तित्व में आई. इस पॉलिसी के मुताबिक, चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. चीन ने तब से धमकी दे रखी है कि अगर कभी भी ताइवान ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित किया तो वह बल प्रयोग करेगा. यही नहीं, चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत हांगकॉन्‍ग, तिब्‍बत और शिनजियांग को भी अपना क्षेत्र मानता है. चीन अपनी नीतियां इसी वन चाइना पॉलिसी के ध्यान रखते हुए बनाता है. ताइवान को भी आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता है. चीन से राजनयिक संबंध रखने वाले देशों को ताइवान से संबंध तोड़ने पड़ते हैं. अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर देश ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दे पाए हैं. इसी कारण ताइवान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कटा हुआ है.

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