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समान नागरिक संहिता को लेकर बयानबाजी तेज

[Edited By: Rajendra]

Saturday, 17th June , 2023 02:15 pm

समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग ने सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित सभी हितधारकों से राय मांगी है। इसी के साथ विधि आयोग ने बुधवार को समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से परामर्श प्रक्रिया शुरू कर दी है। दरअसल केन्द्र सरकार समान नागरिक संहिता को पूरे देश में लागू करना चाहती है। सरकार जस्टिस देसाई कमेटी की रिपोर्ट के मंजूरी मिलने का इंताजर किए बगैर इससे जुड़ी सभी प्रक्रियाएं पूरी कर लेना चाह रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सरकार लोकसभा चुनावों से पहले इसे लागू करने की तैयारी में है।

इसी बीच समान नागरिक संहिता को लेकर बयानबाजी तेज हो गई है। कांग्रेस ने गुरुवार को कहा कि मोदी सरकार इसके जरिए विफलताओं से ध्यान भटकाना चाहती है। पार्टी ध्रुवीकरण के अपने एजेंडे को वैधानिक रूप देना चाहती है। जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि यूसीसी पर सभी हितधारकों, समुदायों और अलग-अलग धर्म के सदस्यों के लोगों को विश्वास में लेकर बात करने की जरूरत है। कांग्रेस पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा ‘‘यह बात अजीबोगरीब है कि विधि आयोग नए सिरे से राय ले रहा है, जबकि उसने अपनी विज्ञप्ति में खुद स्वीकार किया है कि उससे पहले के विधि आयोग ने इस विषय पर अगस्त 2018 में परामर्श पत्र प्रकाशित किया था। जयराम रमेश ने कहा कि विधि आयोग ने इस विषय की विस्तृत और समग्र समीक्षा करने के बाद यह कहा था कि फिलहाल समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है।

बता दें कि इससे पहले 21 वें विधि आयोग ने इस मुद्दे की जांच की थी। तब भी सभी हितधारकों के विचार मांगे थे। इसके बाद 2018 में "परिवार कानून के सुधार" पर एक परामर्श पत्र जारी किया गया था। 2018 में 21 वें विधि आयोग का कार्यकाल खत्म हो गया था।

समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड इकलौता कानून होगा जिसमें किसी धर्म, लिंग और लैंगिकता की परवाह किए बगैर फैसला लिया जाएगा। देश का संविधान कहता है कि राष्ट्र को अपने नागरिकों को ऐसे कानून मुहैया कराने की कोशिशें करनी चाहिए। समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की मांग देश की आजादी के बाद से चलती रही है। बीजेपी सरकार इस मुद्दे को वापस उठा रही है। बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश UCC पर चर्चा कर रहे हैं। राम मंदिर का निर्माण करना, कश्मीर से विशेष दर्जे को खत्म करने के अलावा समान नागरिक संहिता को लागू करना बीजेपी के चुनावी वादों में से एक रहा है ।

बीजेपी संसद के शीतकालीन सत्र में कॉमन सिविल कोड से जुड़ा एक प्राइवेट बिल पेश कर चुकी है। वहीं, गुजरात से लेकर हिमाचल में बीजेपी के सीएम इसकी पहले ही वकालत कर चुके हैं। इसी बीच इस मामले में राज्यसभा से बीजेपी सांसद किरोणी लाल मीणा का नाम आ रहा है जो इससे पहले संसद में यूसीसी कोड के लिए प्राइवेट मेंबर बिल प्रपोज कर चुके हैं।

अगर यह बिल इस बार के मानसून सेशन में चर्चा के लिए रखा जाता है और यह संसद के दोनों सदनों से पास हो जाता है तो यह कानून बन जाएगा। इस प्राइवेट मेंबर बिल की मुख्य बातें क्या थीं हम आपको इसके बारे में जानकारी दे रहे हैं। इस बिल के बारे में बोलते हुए मीणा ने कहा कि उन्होंने पार्टी से अनुमति लेकर UCC पर प्राइवेट मेंबर बिल सदन के सामने रखा था, UCC हमारी विचारधारा का हिस्सा है, हम ये चुनाव की दृष्टि से नहीं बल्कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए ऐसा कर रहे हैं।

इस एक्ट को यूनिफार्म सिविल कोड इन इंडिया एक्ट 2020 के नाम से जाना जाएगा, यह सारे देश में लागू होगा। यूनिफार्म सिविल कोड का मतलब भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक कॉमन लॉ से होगा, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो। इस एक्ट के लागू होने के 6 महीने के भीतर केंद्र सरकार एक कमेटी का गठन करेगी जिसे नेशनल इंस्पेक्शन एंड इंवेस्टिगेशन कमेटी के नाम से जाना जाएगा। यही कमेटी यूनिफार्म सिविल कोड को तैयार करेगी और उसे देश भर में लागू करेगी। ये कमेटी देश के पूरे भौगोलिक क्षेत्र में यूनिफार्म सिविल कोड का क्रियान्वयन सुनिश्चित करेगी। ये कमेटी सुनिश्चित करेगी कि यूनिफार्म सिविल कोड बिना किसी भेदभाव के इन मु्द्दों पर सभी नागरिकों को समान अधिकार उपलब्ध कराने की कोशिश करेगा।

मैरिज, डिवोर्स, उत्तराधिकार, एडॉप्शन, गार्जियनशिप और जमीन व संपत्ति के बंटवारे के लिए प्रभावी होगा।

ये कमेटी संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार को सुनिश्चित करेगी। साथ ही अनुच्छेद 15 के तहत रिलीजन, रेस, कास्ट, सेक्स या फिर प्लेस ऑफ बर्थ के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव पर रोक को भी सुनिश्चित करेगी। यूनिफॉर्म सिविल कोड के क्रियान्वयन में जेंडर इक्वैलिटी यानि लैंगिक समानता का भी ध्यान रखा जाएगा। पर्सनल लॉ या फिर धार्मिक किताबों पर आधारित कानूनों और परंपराओं को इस यूनिफार्म सिविल कोड से रिप्लेस किया जाएगा।

साल 2022 के दिसंबर में उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने यूसीसी के कार्यान्वयन की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था। अब 2024 के लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही फिर से इस पर चर्चा तेज हो गयी है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के सुझाव मांगे जाने को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है। बोर्ड ने कहा है कि भारत में इस तरह का कानून बनाने बेवजह देश के संसाधनों को बर्बाद करना है और यह समाज में वेवजह अराजकता का माहौल बनाएगा। मुस्लिम बोर्ड का कहना है कि इस समय यह कानून लाना अनावश्यक, अव्यहारिक और खतरनाक है।

मुस्लिम लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ। एसक्यू आर। इलियास ने एक प्रेस बयान में कहा कि हमारा देश एक बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक और बहु-भाषाई समाज है और इसकी यही विविधता ही इसकी पहचान है लिहाजा इस पहचान से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) और 371 (जी) उत्तर-पूर्वी देश के उन आदिवासियों को विशेष प्रावधानों की गारंटी देते हैं जोकि संसद को किसी भी कानून को लागू करने से रोकते हैं जो उनके पारिवारिक कानूनों की जगह लेता हो। उन्होंने दावा किया, अगर ऐसा कानून प्रकाश में आता है तो वह देश के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ करेगा। यूसीसी का विरोध करते हुए डॉ इलियास ने तर्क दिया कि मुस्लिम लॉ बोर्ड में बने कानून उनकी पवित्र किताब कुरान से लिए गए हैं और उसमें लिखी बातों को काटने और बदलने की इजाजत खुद मुसलमान को भी नहीं है तो फिर सरकार कैसे एक कानून के जरिए इसमें कथित तौर पर दखलंदाजी कर सकती है। उन्होंने कहा, वैसे ही देश में बाकी संप्रदायों की भी कुछ ऐसी ही चिंताएं होंगी। इलियास ने दबे स्वर में सरकार को कथित तौर पर चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार पर्सनल लॉ के कानूनों में किसी तरह की तब्दिली करने की कोशिश करती है तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे और इस वजह से देश में दंगे भी भड़क सकते हैं, लिहाजा किसी भी समझदार सरकार को ऐसा करने से बचना चाहिए।

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