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सुप्रिया सुले ने अपने चचेरे भाई अजीत पवार के ‘नाखुश’ होने के दावों का किया खंडन

[Edited By: Rajendra]

Monday, 12th June , 2023 01:50 pm

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने उनकी पदोन्नति के बाद अपने चचेरे भाई अजीत पवार के ‘नाखुश’ होने के दावों का खंडन किया और उन्हें ‘गॉसिप’ करार दिया। 10 जून को एनसीपी के स्थापना दिवस पर पार्टी प्रमुख शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम करने के अलावा सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र का प्रभारी भी बनाया गया। उस पद को पहले अजीत पवार संभाल रहे थे।

सुप्रिया सुले ने कहा कि ‘कौन कहता है कि अजीत पवार खुश नहीं हैं, क्या किसी ने उनसे पूछा है? ये रिपोर्ट गॉसिप हैं।’ वहीं अजीत पवार को दरकिनार किए जाने की अफवाहों को खारिज करते हुए सुले ने कहा कि ‘वह विपक्ष के नेता हैं, जो मुख्यमंत्री के पद के बराबर है।’ सुप्रिया सुले ने संकेत दिया कि अगर पार्टी को महा विकास अघाड़ी के सहयोगियों के बीच सबसे अधिक सीटें मिलती हैं, तो उनके चचेरे भाई और विपक्ष के नेता अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं। इससे पहले सुप्रिया सुले ने पुणे का दौरा किया और पार्टी के कई कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। पुणे में कार्यकर्ताओं ने सुप्रिया सुले का अभिनंदन भी किया। पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद सुप्रिया सुले की पुणे की यह पहली यात्रा थी।

बता दें कि एनसीपी की 24वीं वर्षगांठ पर शनिवार को शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफ्फुल पटेल को पार्टी के नए कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की घोषणा की। इसके बाद, राजनीतिक गलियारों में अजित पवार को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। उनके बारे में कहा जाने लगा कि वह इस फैसले से नाखुश हैं, जबकि उन्होंने खुद भी इसका खंडन किया।

इससे पहले अजित पवार ने भी अपने असंतोष की खबरों को खारिज करते हुए कहा था कि वह पार्टी के फैसले से खुश हैं। अजित पवार ने संवाददाताओं से कहा कि था कि ‘कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि मैं नाखुश हूं कि पार्टी ने मुझे कोई जिम्मेदारी नहीं दी, यह गलत है। हमारी समिति उस समय बनाई गई थी, जब शरद पवार ने इस्तीफा दे दिया था। उस समय दो फैसले लिए जाने थे। पहला शरद पवार से अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए अनुरोध करना था और दूसरा सुप्रिया सुले को एक कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना था। जब समिति का गठन किया गया था, तब यह सुझाव दिया गया था।’ अजित पवार ने कहा कि ‘लोकतंत्र में होने और बहुमत का सम्मान करने के कारण मैंने इस्तीफे के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया क्योंकि नए नेतृत्व को मजबूत करना और आगे बढ़ाना है।’

गौरतलब है कि महाराष्ट्र के पूर्व सीएम शरद पवार ने पार्टी के स्थापना दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ये नियुक्तियां कीं। एनसीपी का गठन पवार ने 1999 में पीए संगमा के साथ मिलकर किया था। शरद पवार ने पिछले महीने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। एनसीपी की समिति ने 5 मई को उनके इस्तीफे को खारिज करने का प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद शरद पवार ने अपना फैसला वापस ले लिया।

बीते कुछ दिनों में अजित पवार के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा थी। शरद पवार ने यह भी कहा था कि विधायकों पर दबाव है। यह भी कहा जा रहा था कि अजित पवार के साथ पार्टी के कई विधायक एनसीपी छोड़ बीजेपी में शामिल होंगे। ऐसे में जिस पार्टी को शरद पवार ने बनाया था। वह उनके सामने ही टूटने की कगार पर थी। ऐसे में शरद पवार इस्तीफे का मास्टरकार्ड चला। इस घटना के बाद शरद पवार ने यह दिखा दिया कि आज भी पार्टी पर उनकी मजबूत पकड़ है। साथ ही एनसीपी का मतलब शरद पवार हैं। कार्यकर्ताओं को भी यह लग रहा था कि अगर शरद पवार ने इस्तीफ़ा दे दिया तो फिर पार्टी का क्या होगा? वह भी तब जब एक साल बाद महाराष्ट्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।

यह कहा जाता है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी में सुप्रिया सुले और अजित पवार का एक ग्रुप है। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के भी समर्थक हैं। एनसीपी में आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से विरासत और वर्चस्व की लड़ाई परदे के पीछे चलती रही है। समय-समय पर भतीजे अजित पवार ने खुद को शरद पवार का राजनितिक वारिस साबित करने के कई प्रयास किये हैं। एनसीपी में अंदरूनी गुटबाजी की ख़बरें महारष्ट्र की सियासत में आम है। अबतक सुप्रिया सुले महाराष्ट्र से ज्यादा केंद्र की सियासत पर ध्यान देती थीं। जबकि महाराष्ट्र की जिम्मेदारी अजित पवार संभालते थे। हालांकि, अजित पवार की बढ़ती महत्वकांक्षा को शरद पवार बखूबी समझ रहे थे। अपनी ढलती उम्र और बीमारी की वजह से शरद पवार ने सुप्रिया सुले को अपने रहते पार्टी की कमान सौंप दी है। इस दौरान सुले को पवार का मार्गदर्शन भी मिलेगा और विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उनकी एक निर्णायक भूमिका भी रहेगी।

शरद पवार को राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। इस तरह के हालात वह उत्तर प्रदेश और आँध्रप्रदेश में देख चुके थे। ऐसे में वह कोई चूक नहीं करना चाहते थे। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से अखिलेश यादव ने दिवंगत मुलायम सिंह यादव को दरकिनार कर पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी। शरद पवार, महाराष्ट्र में ऐसा मौका अजित पवार को नहीं देना चाहते थे। इसी तरह आंध्र प्रदेश में टीडीपी के संस्थापक एनटी रामाराव को उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने दरकिनार कर दिया था। शरद पवार अपने सामने इस उम्र में ऐसी परिस्थिति नहीं लाने देना चाहते थे।

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