बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय सुशांत सिंह राजपूत के मामले के बाद से सुर्ख़ियों में बने हुए हैं और अब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले की स्वैच्छिक सेवानिवृति ले कर चर्चा में आ गये हैं।
दरअसल, गुप्तेश्वर पांडेय का अचानक वीआरएस लेकर और उसे तुरंत स्वीकृति मिलने के पीछे उनकी राजनीतिक में एंट्री करने से लगाया जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार गुप्तेश्वर पांडेय ने नीतीश कुमार के निर्देश पर ही राजनीति में आने को लेकर ये कदम उठाया है।
बिहार में एकबार फिर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है क्योंकि VRS लेने के बाद पूर्व DGP के चुनाव लड़ने को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं, हालांकि गुप्तेश्वर पांडेय ने फिलहाल इस बात से इनकार किया है।
वीआरएस लेने के बाद अब खुद गुप्तेश्वर पांडेय मीडिया के सामने आए हैं और अपनी आगे की रणनीति के बारे में खुलासा कर रहे हैं। गुप्तेश्वर पांडेय का कहना है कि मैंने अभी तक किसी भी पार्टी को ज्वॉइन नहीं किया है और न ही कोई फैसला किया।
पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि मेरे लिए समाजसेवा चिंता का विषय है। मैं राजनीति में आए बिना भी समाजसेवा कर सकता हूं। मैं कभी नहीं कहा कि मैं चुनाव लड़ूंगा। बक्सर, औरंगबाद, वाल्मीकिनगर से भी लोग चुनाव लड़ने के लिए बोल रहे हैं। मैंने अभी कोई फैसला नहीं किया है।
अपने एक इंटरव्यू में गुप्तेश्वर ने कहा था कि आप आईपीएस नहीं बनना कहते थे लेकिन उनके साथ एक ऐसे घटना हुई जिसके बाद उन्होंने आईपीएस बनने की ठान ली थी। उन्होंने बताया था कि जब वो करीब 10 साल के थे तब उनके घर में चोरी हो गई थी। जिसके बाद पूछताछ करने आई पुलिस ने उनके माता-पिता के साथ बदतमीजी की और काफी अभद्रता दिखाई। इतना ही नहीं, उन पुलिस वालों ने उनकी चोरी की रिपोर्ट तक नहीं लिखी।
इस घटना ने गुप्तेश्वर को काफी प्रभावित किया और उनको सोचने पर मजबूर किया। वो कहते हैं कि उस चोरी की घटना के बाद जो कुछ मेरे माता-पिता ने झेला वो मुझे याद रहा और मैं सोचता रहा कि क्या पुलिसवाले इतने खराब होते हैं? इसके बाद मैंने सोच लिया कि इसी व्यवस्था को सुधारने के लिए मैंने आईपीएस अफसर बनने की ठान ली और आखिरकार गुप्तेश्वर ने सिर्फ आईपीएस बने बल्कि बिहार राज्य के डीजीपी भी रहे।
अब तक मिली जानकारी के मुताबिक पांडेय बक्सर या फिर आरा जिले की किसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा है क्योंकि हाल ही में बक्सर में जेडूयू जिलाध्यक्ष के साथ उनकी मीटिंग हुई थी। ऐसा पहली बार नहीं है जब वे चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं इससे पहले वे साल 2009 में नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन टिकट न मिलने के कारण ये संभंव नहीं हो सका।