Trending News

जानें भद्रा में शुभ कर्म वर्जित क्यों है ?

[Edited By: Rajendra]

Monday, 25th July , 2022 02:13 pm

हम लोग त्योहार आदि पर जैसे होलिका दहन, दीपावली पूजन या फिर रक्षाबंधन पर भद्रा पर विचार करते हैं और भद्रा के न होने पर ही वह मांगलिक शूभ कर्म करते हैं। भद्रा कौन है ? इसमें शुभ कर्म वर्जित क्यों है ?
भद्रा भगवान सूर्य नारायण व छाया माता की पुत्री है। यह शनि देव की सगी बहन है। भद्रा का रंग काला, रुप भयंकर, लम्बे केश व दांत विकराल हैं। जन्म लेते ही वह संसार को ग्रसने दौड़ी, यज्ञों में विध्न पहुंचाने लगी। उत्सव और मांगलिक कार्यों में उपद्रव करने लगी। उसके भयंकर रूप और उपद्रवी स्वभाव को देखकर कोई भी उससे विवाह करने को तैयार न हुआ। सूर्यदेव ने अपनी पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो भद्रा ने तोरण मण्डप आदि सभी उखाड़ कर आयोजन को ही नष्ट कर डाला और सभी लोगों को कष्ट देने लगी। तब सूर्य नारायण ने भद्रा को समझाने के लिए ब्रह्मा जी से प्रार्थना की।
तब ब्रह्मा जी ने भद्रा को समझाते हुए कहा - तुम बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि आदि चर करणों में अंत में सातवें करण के रूप में स्थित रहो। जो ब्यक्ति तुम्हारे समय में यात्रा, गृह प्रवेश, खेती, ब्यापार, उद्योग और अन्य मंगल कार्य करें तो तुम उसमें विध्न डालो। जो तुम्हारा आदर न करें उसका कार्य ध्वस्त कर दो। बाद में सूर्य नारायण ने अपनी पुत्री का विवाह विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप से कर दिया।

एक अन्य पौराणिक कथानुसार दैत्यों से पराजित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर के शरीर से गर्दभ ( गधे) के समान मुख वाली, कृशोदरी ( पतले पेट वाली) पूंछ वाली, मृगेंद्र ( हिरण) के समान गर्दन वाली, सप्तभुजी( सात भुजाओं वाली), शव का वाहन करने वाली और दैत्यों का विनाश करने वाली भद्रा उत्पन्न हुई।

हिन्दू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं। यह इस प्रकार हैं ---- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण।
इनमें विष्टि एक महत्वपूर्ण अंग है। यह तिथि का आधा भाग होता है।करण की संख्या ११ है जिसको चर- अचर दो भागों में बांटा गया है। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल,गर, वणिज एवं विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद , नाग और किंस्तुघ्न। इनमें से सातवें करण को विष्टि कहते हे।
विष्टि का ही नाम भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है।
भद्रा ने ब्रह्मा जी का आदेश मान लिया और वह काल के एक अंश कै रूप में आज भी विद्यमान है। यह तीनों लोकों में घूमती रहती है। जब यह मृत्यु लोक में होती है तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या उनका विनाश करने वाली मानी गयी है।
जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है । तब भद्रा ( विष्टि ) करण का योग होता है। तब भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है। इस समय कोई शुभ मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
शुक्ल पक्ष की एकादशी व चतुर्थी तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया व दशमी तिथि वाली भद्रा दिन में शुभ व रात्रि में अशुभ होती है। शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तिथि वाली भद्रा रात में शुभ तथा दिन में अशुभ होती है।
भद्रा में मंगल कार्य जैसे -- यात्रा, रक्षाबंधन, विवाह, दाहकर्म, आदि नहीं करना चाहिए। भद्रा में श्रावणी ( रक्षाबंधन) फाल्गुनी ( होलिका दहन) का भी निषेध है। क्योंकि श्रावणी कर्म में राजा का नाश तथा होलिका दहन में आग का भय होता है।
भद्रा में घोड़ा भैंसा,ऊंट आदि को खरीदने का कार्य, वध, बंधन, विष , अग्नि,अस्र छेदन वा उच्चाटनादि कार्य सिद्ध होते हैं। सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार को भद्रा का दोष नहीं होता बल्कि कल्याणकारी होती है। पुच्छ में भद्रा ( १ लौटा १२ मिनट) १२ ?kUटे मे से अंतिम समय में शुभकारी होती है।

Latest News

World News