[Edited By: Vijay]
Thursday, 17th March , 2022 12:27 pmहोली की रौनक से बाजार सजे हैं। गुरुवार को होलिका दहन के बाद रंग बरसेगा। शहर में दो दिन होली खेली जाएगी। कहीं रंग तो कहीं फूलों की होली खेली जाएगी। शहर में दोनों ही दिन विविध आयोजन भी हो रहे हैं। वेदविद्यालय, हनुमान सेतु के वेदाचार्य गोविंद कुमार शर्मा के अनुसार पूर्णिमा में होलिका दहन के बाद प्रतिपदा में रंगोत्सव मनाया जाता है, रंग की होली खेली जाती है। उसके बाद 18 मार्च शुक्रवार को मध्याह्न 12:53 बजे से प्रतिपदा तिथि लग जाएगी जो 19 मार्च शनिवार को मध्याह्न 12:13 बजे तक रहेगी। अत: 18 या 19 मार्च में से दोनों दिन या किसी एक दिन रंगोत्सव मनाया जा सकता है।
वहीं, भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि होलिका दहन के लिए उत्तम मानी जाती है। भद्रा मुख में होलिका दहन नहीं करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दिन में 1:29 बजे से शुरू होकर अगले दिन 12:47 बजे तक रहेगी। इस बीच 17 मार्च को भद्रा दोपहर 1:29 बजे शुरू होकर रात 1:12 बजे तक रहेगा। वहीं, भद्रा पूंछकाल रात 9:06 बजे से 10:16 बजे तक एवं भद्रा मुखकाल रात 10:16 से रात 12:13 बजे तक रहेगा। धर्मसिंधु ग्रंथ मान्यता अनुसार भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिए। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। हाेलिका दहन भद्रा पूंछकाल में रात 9:06 से रात 10:16 बजे के बीच या भद्रा समाप्ति रात 1:13 बजे के बाद किया जा सकता है।
होलिका दहन के समय इस मंत्र का करें उच्चारण
होलिका की पूजा करते समय ऊं होलिकायै नम: मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। होलिका दहन के पहले विधि पूर्वक डंडी देवी का पूजन किया जाता है। गुलाल, अबीर, फूल, नारियल, मिष्ठान, कच्चा सूत से होलिका का पूजन होता है। नये अनाज की बालियां और उपले होली में चढ़ाए जाते हैं और होलिका दहन के बाद उसमें भूना गन्ना खाया जाता है। होलिका दहन के समय गेहूं और जौ की बालियां सेकी जाती हैं और उनके 'होले' प्रसाद के रूप में खाए जाते हैं। होलिका दहन के बाद उसकी राख का तिलक करना और शरीर पर लगाना भी शुभ माना जाता है।
ईको फ्रेंडली होलिका दहन : होलिका दहन की परंपरा पर्यावरण संरक्षण से भी जुड़ी है। शहर में कई स्थानों पर ईको फ्रेंडली होलिका दहन की परंपरा का निभाया जा रहा है। चित्रगुप्तनगर मुहल्ले में 210 से अधिक घर हैं। यहां के सभी निवासी एक ही जगह पर होलिका दहन करते आ रहे हैं। चित्रगुप्त नगर वेलफेयर सोसाइटी के महासचिव राजीव सक्सेना बताते हैं कि लकड़ियों की जगह, उपलों की होलिका तैयार की जाती है, हवन सामग्री का प्रयोग कर होलिका जलाई जाती है। गूगल, कपूर, धूप व अन्य औषधियों जिनसे की वातावरण शुद्ध होता है तो उनका भी इस्तेमाल करना शुरू किया गया था। मनकामेश्वर मठ मंदिर में इस बार का लक्ष्य पांच हजार कंडों की भव्य होलिका दहन का है। यहां होलिका दहन के जरिए सर्वकल्याण की प्रार्थना भी की जाएगी।