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अजित पवार के महाराष्ट्र सरकार में आने से एकनाथ शिंदे का क्या होगा?

[Edited By: Rajendra]

Monday, 3rd July , 2023 01:56 pm

महाराष्ट्र में अजित पवार को अपने खेमे में लाकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इससे उसका दो-दो बदला पूरा तो हुआ ही है साथ ही साथ देवेंद्र फडणवीस ने भी महाराष्ट्र की राजनीति में अपना दबदबा नए सिरे से साबित कर दिया है।

जित पवार के एनसीपी से बागी होने के बाद शरद पवार ने आज कराड में रैली को संबोधित किया। पवार ने कहा कि जिन लोगों ने पार्टी तोड़ने की कोशिश की है, उन्हें उनकी असली जगह दिखाई जाएगी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से बागी हुए अजित पवार पर अब शरद पवार एक्शन लेने के मूड में आ गए हैं। एनसीपी ने बागी अजित पवार और 8 अन्य विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को पत्र भेजा है। इसी के साथ चुनाव आयोग को एक मेल भी भेजा गया है, जिसमें कहा गया है कि एनसीपी की बागडोर इस समय पार्टी प्रमुख शरद पवार के हाथ में ही है। बता दें कि बीते दिन एनसीपी नेता अजित पवार अपने समर्थन वाले 40 विधायकों के साथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए थे। अजित ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ भी ली। इसके साथ ही 8 अन्य विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली।

बीजेपी के ताजा कदम के पीछे कुछ बड़े कारण हैं। पार्टी का सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 लोक सभा चुनाव में राज्य की 48 में से अधिकतम सीटें जीतना है। अब पवार जूनियर और एकनाथ शिंदे के साथ आने से बीजेपी को उन क्षेत्रों में भी मदद मिलेगी जहां परंपरागत रूप से वह ताकतवर नहीं रही है। दूसरा बड़ा कारण एकनाथ शिंदे पर लगाम कसना भी है। सियासी जानकारों के मुताबिक सीएम शिंदे को नए राजनीतिक घटनाक्रम में डबल झटका लगा है। एकनाथ शिंदे सरकार ने तीन दिन पहले ही एक साल पूरे किए हैं और इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि शिंदे गुट के विधायकों को मंत्री पद दिया जाएगा। हाल ही में मुंबई से लेकर दिल्ली तक इस पर चर्चा भी हुई थी कि जुलाई के पहले हफ्ते में मंत्रिमंडल विस्तार किया जाएगा और शिंदे के साथियों को उसमें समाहित किया जाएगा लेकिन ऐन मौके पर अजित पवार की एंट्री से शिंदे और शिंदे गुट के विधायकों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। शिंदे गुट के विधायकों के अंदर इस बात को लेकर भारी नाराजगी है।

इस बात की चर्चा जोरों पर है कि अजित पवार के एनडीए में आने से एकनाथ शिंदे का रुतबा कम हो गया है। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी के 105 विधायक हैं, जबकि एकनाथ शिंदे गुट वाली शिव सेना के 40 विधायक हैं। 40 विधायकों वाले शिंदे मुख्यमंत्री बने हुए थे। यह बात बीजेपी को खल रही थी, अब अजित पवार ने भी दावा किया है कि उसके पास एनसीपी के 40 विधायकों का समर्थन है। इस तरह एनडीए में शिंदे और पवार दोनों बराबर के हिस्सेदार हो गए हैं। अजीत पवार इसलिए भी बीजेपी के लिए अहम बनकर उभरे हैं क्योंकि वह सिर्फ आठ विधायकों को लेकर नहीं आए हैं बल्कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल, विधानसभा में उपाध्यक्ष नरहरि झिरवल, विधान परिषद के सभापति रामराजे निंबालकर और पार्टी के कोषाध्यक्ष व सांसद सुनील तटकरे, अमोल कोल्हे को भी साथ लेकर आए हैं।

दरअसल, बीजेपी और शिंदे गुट के बीच रिश्तों में तल्खी उस विज्ञापन के बाद तेजी से बढ़ी जिसका शीर्षक दिया गया था, ‘देश में मोदी और महाराष्ट्र में शिंदे।’ इस फुल पेज एड में बताया गया था कि एकनाथ शिंदे को राज्य के 26।1 फीसदी लोग लोकप्रिय मुख्यमंत्री के तौर पर पसंद करते हैं, जबकि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को 23।2 फीसदी लोग ही पसंद करते हैं। शिंदे का गुणगान करने वाला विज्ञापन और सर्वे देवेंद्र फडणवीस को पसंद नहीं आया। मनमुटाव इतना तक बढ़ा हुआ दिखा कि विज्ञापन के बाद फौरन फडणवीस ने उस कार्यक्रम में मंच साझा करने से इनकार कर दिया, जिसमें शिंदे भी अतिथि थे। बाद में पालघर में आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में शिंदे-फडणवीस ने मंच पर कुछ मिनटों तक एक-दूसरे से बात नहीं की थी। तीसरा बड़ा कारण कस्बापेठ विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार रही। अपने गढ़ में बीजेपी 28 साल बाद हारी। इसके अलावा भी बीजेपी विधानपरिषद के कुछ चुनाव हारी। बीजेपी की इस हार ने महाविकास अघाड़ी में नई जान फूंक दी। उसके बाद कर्नाटक में बीजेपी की हार ने एमवीए का उत्साह दोगुना कर दिया। ऐसे में बीजेपी को समझ में आ गया कि एमवीए मजबूत रहा तो महाराष्ट्र में उसके मिशन 2024 को झटका लगेगा।

2019 विधानसभा चुनाव बीजेपी और शिवसेना ने मिल कर लड़ा था। चुनाव के दौरान पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार कहा कि फडणवीस की अगुवाई में सरकार बनेगी। नतीजे आने पर गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी मिला। 105 सीटें जीत कर बीजेपी सबसे बड़ा और 56 सीटें जीत कर शिवसेना दूसरा सबसे बड़ा दल बना। लेकिन इसके बाद शिवसेना सीएम की कुर्सी के लिए अड़ गई। नतीजा ये हुआ कि सरकार नहीं बन सकी और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।बाद में उद्धव ठाकरे सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के पास चले गए।तब शरद पवार ने चतुराई से बीजेपी को सत्ता का भूखा दिखाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत की। खुद पवार ने हाल में इसका खुलासा किया। तब सुबह-सुबह राष्ट्रपति शासन हटाया गया और राज्यपाल ने फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। लेकिन तब अजित पवार को छोड़ सारे एनसीपी विधायक पवार के साथ हो गए और कुछ ही घंटों में सरकार गिर गई। इससे बीजेपी और फड़णवीस की खूब फजीहत हुई। हालांकि बाद में बीजेपी ने शिवसेना को तोड़ कर इसका बदला लिया। तब शिंदे 40 विधायकों को लेकर अलग हुए। उधर बीजेपी ने सबको चौंकाते हुए फडणवीस को डिप्टी सीएम और शिंदे को सीएम बनाया। राज्य सभा चुनाव में भी बीजेपी ने शिवसेना को झटका दिया और शिवसेना के उम्मीदवार संजय पवार को हरा दिया। इसके लिए छोटे दलों और निर्दलियों का समर्थन लिया। इससे भी उद्धव ठाकरे की पोजिशन खराब हुई।

हाल ही में शरद पवार ने खुलासा किया कि 2019 में उन्होंने गुगली डाली थी ताकि बीजेपी को सत्ता का भूखा बताया जा सके। पवार 2024 चुनाव के लिए विपक्षी दलों को एक करने में भी बढ़-चढ़ कर जुटे हुए हैं। हालांकि उन्हें इस बात का एहसास था कि अजित पवार कभी भी हाथ से निकल सकते हैं। इसीलिए उन्होंने मई में अपने इस्तीफे का दांव भी चला था लेकिन इस्तीफा वापस लेकर अजित पवार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। उधर बीजेपी 2019 के अपमान को भूली नहीं थी। पर्दे के पीछे अजित पवार से लगातार बातचीत चलती रही। कल केवल अजित पवार ही नहीं, बल्कि प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे पवार के बेहद करीबियों को साथ लाकर बीजेपी ने शरद पवार से भी अपने अपमान का बदला ले लिया।

बीजेपी ने महाराष्ट्र की राजनीति के दो कद्दावर नेताओं शरद पवार और उद्धव ठाकरे को उन्हीं के मैदान पर शिकस्त दे दी है। दोनों की पार्टियों को तोड़ कर 2019 के अपने अपमान का बदला तो लिया ही, साथ ही आने वाले लोक सभा चुनाव के लिए अपना गढ़ भी मजबूत कर लिया है। पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने 25 और शिवसेना ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था। बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटें जीतीं थीं। जबकि एनसीपी को चार सीटों पर जीत मिली थी। इस बार बीजेपी एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ तालमेल करेगी। जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के हिसाब से यह गठबंधन एमवीए पर भारी दिख रहा है। कुल मिलाकर एनसीपी और शिवसेना तोड़ कर बीजेपी ने न केवल 2019 का बदला लिया, बल्कि महाराष्ट्र में सरकार को मजबूती भी दी है और आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी अपने समीकरण भी साध लिए।

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