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अकाल मृत्यु से रक्षा: यहां अनादिकाल से मौजूद है दुनिया का इकलौता महामृत्युंजय मंदिर

[Edited By: Admin]

Friday, 12th July , 2019 04:09 pm

हिंदू धर्म वास्तव में रहस्यों से भरा हुआ है। मध्यप्रदेश के रीवा में एक ऐसी जगह है जहां जाने वाला अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। इस जगह का नाम है महामृत्युंजय मंदिर।धार्मिक मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ को तीन नेत्र है इसलिए उन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। किंतु इस मंदिर के शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस सफेद शिवलिंग पर तीन नहीं बल्कि एक हजार नेत्र हैं। इसे सहस्त्र नेत्रधारी शिवलिंग भी कहते हैं। लोक मान्यता है कि अगर एक साथ इन हजार नेत्रों की दृष्टि यदि शिवभक्त पर पड़ जाए तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस स्थान पर ऋषि दधीचि ने घोर तप से शिव को प्रसन्न किया।

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इस शिव मंदिर की धार्मिक परंपराओं में भय, बाधा, रोग दूर करने और मनोकामना पूरी करने के लिए नारियल बांधा जाता है। मनोरथ पूरे होने पर यह नारियल खोलकर वापस ले जाया जाता है। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने का महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यहां निराश मन को उम्मीद की किरण मिलती है और सावन में शिवलिंग दर्शन से शिव खुशियों की बरसात करते हैं।

रीवा में प्रकृति के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। यहां हरे मैदान, ऊंचे पहाड़, झरने होने के साथ ही गंगा की सहायक नदियां भी गुजरती है। यहां अनेक पुराने महल और मंदिर और चचई झरने जैसे पर्यटन स्थल भी सैलानियों को आकर्षित करते है। शिव मंदिरों में मसौन का शिव मंदिर भी अपनी बेजोड़ विशेषता के लिए जाना जाता है।

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रीवा रियासत की स्थापना

बघेल राजवंश के 21वें महाराजा विक्रमादित्य देव (वि.सं.1654-1681) ने इस इलाके के पास शिकार के दौरान एक भागते हुए चीतल के पीछे शेर को देखा। राजा यह देखकर हैरत में पड़ गए, जब शेर मंदिर वाले स्थान के पास चीतल के पास आ पहुंचा, तो उसका शिकार किए लौट गया।

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आश्चर्यचकित राजा ने उस स्थान पर खुदाई कराई। जिससे गर्भ में महामृत्युंजय भगवान का सफेद शिवलिंग निकला। ज्ञातव्य हो इस सफ़ेद शिवलिंग की चर्चा शिवपुराण में महामृत्युंजय के रूप में की गई है। इसलिए यहां भव्य मंदिर का निर्माण करा शिवलिंग को स्थापित कर दिया गया। दैवयोग से मंदिर परिसर के बगल में एक अधूरा किला पड़ा हुआ था, जिसे शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह के काल का माना जाता है। महाराज विक्रमादित्य ने इसी अधूरे किले की नींव पर भव्य किले का निर्माण कराया और रीवा को विंध्य की राजधानी के रूप में विकसित कर दिया गया।

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पिछले 400 से अधिक वर्षों से आज भी यह किला महामृत्युंजय मंदिर के बगल के मौजूद है। कहा जाता है कि महामृत्युंजय भगवान् के आशीर्वाद से रीवा कभी किसी का गुलाम नहीं रहा। न मुगलों के समय में और न ही अंग्रेजों के समय में।

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