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सुप्रीम कोर्ट से उद्धव ठाकरे खेमे को बड़ा झटका लगा

[Edited By: Rajendra]

Friday, 17th February , 2023 02:30 pm

सुप्रीम कोर्ट से उद्धव ठाकरे खेमे को बड़ा झटका लगा है। शिवसेना विधायकों की अयोग्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसे बड़ी बेंच के पास भेजे जाने की जरूरत नहीं है। इस मामले में कोर्ट ने सुनवाई के लिए अगली तारीख 21 फरवरी तय की है। उद्धव ठाकरे गुट ने शिंदे खेमे में जाने वाले 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। इन विधायकों की बगावत के बाद एकनाथ शिंदे ने राज्य में नई सरकार बनाई थी। बीजेपी भी इस सरकार का हिस्सा है।

शिवसेना विधायकों के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे बड़ी बेंच के पास भेजे जाने से इनकार किया है। पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इनमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। अब 21 फरवरी से उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के दावे पर मेरिट के आधार पर सुनवाई होगी। गुरुवार को संविधान पीठ ने विधायकों की अयोग्यता के मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे गुट ने नबाम रेबिया फैसले का हवाला देते हुए कुछ बिंदुओं को सात जजों की बेंच के पास भेजने की मांग की थी। वहीं शिंदे गुट की दलील थी कि इस पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने विधानसभा स्पीकर की शक्तियों को लेकर 2016 के नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार से जुड़ी याचिका को सुनने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मामले में पुनर्विचार के लिए तत्काल 7 जजों की संविधान पीठ की गठन की जरूरत नहीं है। अदालत का कहना है कि नबाम रेबिया के फैसले को सात-न्यायाधीशों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, यह केवल महाराष्ट्र राजनीति मामले की सुनवाई के साथ ही तय किया जा सकता है। इसकी सुनवाई अब 21 फरवरी को होगी। नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि विधानसभा के अध्यक्ष विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू नहीं कर सकते हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट की शुरुआत शिवसेना के दो गुटों में विभाजित होने से हुई थी। एक का नेतृत्व ठाकरे ने किया और दूसरे का नेतृत्व शिंदे कर रहे थे। जिन्होंने पार्टी के बंटवारे के बाद भाजपा के सहयोग से राज्य में अपनी सरकार बनाई थी।

राज्य में विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) के चुनाव के दौरान मतदान करते समय पार्टी व्हिप के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शिंदे गुट के बागी विधायकों को तत्कालीन डिप्टी स्पीकर से अयोग्यता नोटिस प्राप्त हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में इस ही मामले को लेकर याचिका दायर की गयी थी कि विद्रोही सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। 27 जून, 2022 को, कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर द्वारा भेजे गए अयोग्यता नोटिस पर जवाब दाखिल करने के लिए समय बढ़ाकर 12 जुलाई तक शिंदे और उनके बागी विधायकों के समूह को अंतरिम राहत दी थी। इसके बाद कोर्ट ने 29 जून को तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा बुलाए गए फ्लोर टेस्ट को हरी झंडी दे दी थी। इसके कारण ठाकरे सरकार गिर गई थी।

उद्धव ठाकरे खेमे की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की थीं। सिब्बल ने नबाम रेबिया जजमेंट केस के हवाले से मामले को सात जजों की बेंच को रेफर करने की अपील की थी। पिछली सुनवाई में भी सिब्बल ने सात जजों के पास केस को रेफर करने की मांग की थी। 2016 में पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने नबाम रेबिया केस में फैसला सुनाया था। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा था कि विधानसभा स्पीकर उस सूरत में विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जबकि स्पीकर को हटाने की पूर्व सूचना सदन में लंबित है। यानी स्पीकर तब अयोग्यता की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं, जब खुद उन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव लंबित हो। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह पांच जजों की बेंच तय करेगी कि मामले को क्‍या बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए?

महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर किया था। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने 23 अगस्त 2022 को इस मामले में अपना फैसला सुनाया था। बेंच ने कहा था कि संवैधानिक बेंच यह तय करेगा कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के क्या अधिकार हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में चार जुलाई 2022 में हुए शक्ति परीक्षण के दौरान इन विधायकों ने एकनाथ शिंदे का समर्थन किया था। फ्लोर टेस्ट के दौरान सिर्फ 15 विधायकों ने उद्धव ठाकरे का समर्थन किया था, वहीं 40 विधायक शिंदे खेमे के साथ थे।

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