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कांग्रेस का एक कद्दावर चेहरा रहीं शीला दीक्षित का निधन, ससुर ने सिखाई थीं 'राजनीति की बारीकियां'

[Edited By: Admin]

Saturday, 20th July , 2019 05:02 pm

पूर्व मुख्यमंत्री व द‍िल्‍ली कांग्रेस की अध्‍यक्ष शीला दीक्षित का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। पेसमेकर के ठीक से काम न करने पर शनिवार सुबह दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें आईसीयू में रखा गया था। बता दें कि करीब दस दिन के इलाज के बाद सोमवार को ही वह अस्पताल से वापस घर लौटी थीं।

करीब एक हफ्ते पहले ही दिल्‍ली के प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ने शीला दीक्षित के साथ हुए विवाद के बाद कहा था आपकी तबियत खराब है आपको आराम की जरूरत है। इसके बाद कांग्रेस की गुटबाजी चरम पर आ गई थी। बीते मंगलवार को प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ने तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के अधिकार बढ़ाए तो इसके बाद बुधवार को प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित ने चाको समर्थक कार्यकारी अध्यक्ष हारून यूसुफ और देवेंद्र यादव के पर कतर दिए थे।

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दिल्ली की लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री बनकर रिकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने अपने ससुर से राजनीति की बारियां सीखी थीं।  2013 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के हाथों शिकस्त झेलने वाली शीला पिछले 5 साल से राजनीतिक हाशिए पर थीं। 2019 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान तजुर्बेकार शीला दीक्षित को सौंपी है। 1998 में जिस समय शीला दीक्षित को सोनिया गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था, उस समय भी कांग्रेस की हालत आज जैसी पतली ही थी। लेकिन शीला ने अपने कुशल नेतृत्व और तजुर्बे से पार्टी को बुलंदियों तक पहुंचाया। 

युवावस्था से ही थी राजनीति में दिलचस्पी

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पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को जन्म लेने वालीं शीला दीक्षित दिल्ली के जीसस एंड मैरी स्कूल में शुरुआती शिक्षा ली। मिरांडा हाउस से पढ़ाई करने वाली शीला युवावस्था से ही राजनीति में दिलचस्पी लेने लगी थीं। शीला दीक्षित की शादी उन्नाव के रहने वाले कांग्रेस नेता उमाशंकर दीक्षित के आईएएस बेटे विनोद दीक्षित से हुई थी। विनोद से उनकी मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान हुई थी। शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित सांसद रह चुके हैं. शीला की एक बेटी लतिका भी हैं। 

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ससुर से सीखी राजनीति 

कानपुर कांग्रेस में सचिव रहे उमा शंकर दीक्षित शीला दीक्षित के ससुर थे। कांग्रेस में धीरे-धीरे उनकी सक्रियता बढ़ती गई और वे नेहरू के करीबियों में शामिल हो गए। इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे। ससुस के साथ ही शीला दीक्षित भी राजनीति में सक्रिय हो गईं। राजनीति की एबीसीडी उन्होंने कांग्रेस में लगातार मजबूत होते अपने ससुर से सीखी। एक रोज ट्रेन में सफर के दौरान उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। साल 1991 में ससुर की मौत के बाद शीला ने उनकी विरासत को पूरी तरह संभाल लिया। 

1984 में पहली बार कन्नौज से लड़ीं आम चुनाव

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गांधी परिवार के भरोसेमंद साथियों में शुमार होने वाली शीला को जल्द ही ईनाम भी मिल गया। 1984 में पहली बार कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ीं और संसद पहुंच गईं। राजीव गांधी की कैबिनेट में उन्हें संसदीय कार्य मंत्री के रूप में जगह मिली। बाद में शीला दीक्षित प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री भी बनीं। राजीव के बाद सोनिया ने भी उन्हें पूरी तवज्जो दी और 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। इसी साल लोकसभा चुनाव में शीला कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन वे हार गईं। बाद में दिल्ली में हुए चुनाव में उन्होंने न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि मुख्यमंत्री भी बन गईं। शीला लगातार तीन साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं जो कि एक रिकॉर्ड है। 

2013 में हार के बाद हाशिए पर पहुंचीं

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2013 में उन्हें अरविंद केजरीवाल से शिकस्त मिली। इस हार के बाद वे राजनीति में एक तरह से दरकिनार कर दी गईं, और केरल का राज्यपाल बना दिया गया। मोदी सरकार आने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली लौट आईं। 

आम आदमी पार्टी से गठबंधन का विरोध

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2019 के चुनाव से ऐन पहले उन्होंने दमदार तरीके से पार्टी में वापसी की है। राहुल गांधी ने उन पर भरोसा जताया है। चुनाव से पहले दिल्ली में कांग्रेस और आप के गठबंधन की खबरें थीं। शीला दीक्षित ने खुलकर इसका विरोध किया। वहीं केजरीवाल लगातार कोशिश कर रहे थे कि दिल्ली में उनका कांग्रेस से गठबंधन हो जाए। लेकिन एक बार फिर शीला दीक्षित की ही मानी गई। अब 78 साल की शीला दीक्षित के सामने एक बार फिर से दिल्ली में कांग्रेस को जिंदा करने की जिम्मेदारी है। 

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