विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथपुरी रथ यात्रा इस साल गुरुवार 4 जुलाई को है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को कर्क राशि में आने वाले नक्षत्रों के राजा पुष्य में श्री जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के रथ खींच कर भक्तगणों में पुण्य कमाने की होड़ देखने को मिलती है। जगन्नाथ रथयात्रा में रथ को खींचने से जीवात्मा को मुक्ति मिल सकती है।
इस दिन उड़ीसा की धार्मिक नगरी और सनातन धर्म के अनुसार तीसरे धाम पुरी में श्री जगदीश भगवान को सपरिवार विशाल रथ में बिठा कर भ्रमण करवाया जाता है। तीन विशाल रथों पर तीन मूर्तियां अलग-अलग रखी जाती हैं। राजा इंद्रद्युम्न की रानी गुंडीचा के महल तक रथ यात्रा होती है। जगन्नाथ की मौसी के मंदिर में तीनों मूर्तियां रखी जाती हैं। भक्तगण उपवास रख कर इन रथों को खींचते हैं। दिलचस्प यह है कि इस मार्ग की सफाई सोने की बनी झाड़ू से की जाती है।
संभव हो तो इस दिन मेष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर और मीन लग्न वालों और शनि की साढे़ साती वाली राशियों-वृश्चिक, धनु, मकर और ढैया वाली राशियों- वृष और कन्या आदि को कम से कम तीन वृक्ष बलराम, सुभद्रा और जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जरूर लगाने चाहिए। नीम, पीपल, जामुन, आम और बरगद में से चयन कर सकते हैं।
यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है. उनका रथ तालध्वज के लिए निकलता है. इसके बाद सुभद्रा के पद्म रथ की यात्रा शुरू होती है. सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ 'नंदी घोष' को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं. गुंडीचा मां के मंदिर तक जाकर यह रथ यात्रा पूरी मानी जाती है. माना जाता है कि मां गुंडीचा भगवान जगन्नाथ की मासी हैं. यहीं पर देवताओं के इंजीनियर माने जाने वाले विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था.
अगर सूर्य डूबने तक यह रथ यात्रा पूरी नहीं हो पाती है तो इसे रोक दिया जाता है और अगले दिन यात्रा की शुरुआत होती है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ 7 दिन तक इसी मंदिर में निवास करते हैं और तब तक वहां पूरे विधि-विधान के साथ पूजा पाठ चलता रहता है. इस दौरान गुंडीचा मंदिर में लजीज पकवान बनाकर भगवान जगन्नाथ को उनका भोग लगाया जाता है. लजीज पकवान खाकर भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं तो उन्हें रोगियों वाला भोजन बनाकर अर्पित किया जाता है ताकि वो जल्दी स्वस्थ हो जाएं.