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विशेषज्ञ समिति ने यूनिफॉर्म सिविल कोड ड्राफ्ट उत्तराखंड सरकार को सौंपा

[Edited By: Rajendra]

Friday, 30th June , 2023 02:24 pm

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के उद्देश्य से संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति ने अपना काम पूरा कर लिया है। गुरुवार देर शाम तक समिति ने ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे दिया। गुरुवार को नई दिल्ली में समिति की दिनभर चली बैठक में यह मंथन किया गया कि कहीं ड्राफ्ट में कोई महत्वपूर्ण विषय शामिल होने से तो नहीं रह गया है।

प्रदेश सरकार ने 27 मई 2022 को समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट बनाने के लिए जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसमें चार सदस्य शामिल किए गए। बाद में इसमें सदस्य सचिव को भी शामिल किया गया। इस समिति का कार्यकाल दो बार बढ़ाया गया। इसी वर्ष मई में इसका कार्यकाल चार माह के लिए बढ़ाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में कहा था कि समिति 30 जून तक ड्राफ्ट सरकार को सौंप देगी। समिति भी इसके लिए लगातार जुटी हुई है। सभी वर्गों, धर्मों व राजनीतिक दलों से संवाद के बाद ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है। समिति अंतिम ड्राफ्ट तैयार करते हुए किसी प्रकार की कमी नहीं रहने देना चाहती। यही कारण रहा कि तैयार ड्राफ्ट का गुरुवार को भी समिति सदस्यों ने गहराई से अध्ययन कर विचार-विमर्श किया।

सूत्रों के हवाले से उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर समिति कुछ अहम सिफारिशों के बारे में पता चला है। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में लागू होने वाले UCC में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने का फैसला हो सकता है। इसके तहत हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समेत किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाली महिला को परिवार और माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इसके अलावा बेटियों की शादी की उम्र भी 21 साल करने का फैसला हो सकता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कोई भी मुसलमान पुरुष कुछ शर्तों के साथ 4 शादियां कर सकता है। लेकिन उत्तराखंड में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के तहत किसी भी पुरुष और महिला को बहुविवाह करने की अनुमति नहीं होगी। उत्तराखंड में UCC के तहत लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के प्रावाधन पर भी विचार चल रहा है। दरअसल इन दिनों लिव इन रिश्तों में सामने आए विवादों के बाद से इसकी चर्चा जोरों पर है कि इनका भी शादी की तरह ही रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। एक अहम प्रस्ताव यह भी है कि परिवार की बहू और दामाद को भी अपने ऊपर निर्भर बुजुर्गों की देखभाल का जिम्मेदार माना जाएगा।

पहाड़ी राज्य में यह प्रस्ताव दिया जा सकता है कि किसी भी धर्म की महिला को संपत्ति में समान अधिकार मिलना चाहिए। इस नियम से मुस्लिम महिलाओं को अधिक अधिकार मिल सकेंगे। अब तक पैतृत संपत्ति के बंटवारे की स्थिति में पुरुष को महिला के मुकाबले दोगुनी संपत्ति मिलती है, लेकिन UCC में बराबर के हक की वकालत की जाएगी। इस तरह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाली महिलाएं संपत्ति में बराबर की हकदार होंगी। सूत्रों का कहना है कि पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लड़कियों की शादी की उम्र भी लड़कों की तरह ही 21 साल कर दी जाए।

बहुविवाह पर रोक, बेटियों को संपत्ति पर बराबर अधिकार और शादी की उम्र में इजाफे का कुछ मुस्लिम संगठनों की ओर से विरोध हो सकता है। एक बड़ा फैसला गोद ली जाने वाली संतानों के अधिकारों को लेकर भी हो सकता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत दत्तक पुत्र या पुत्री को भी जैविक संतान के बराबर का ही हक मिलता है। लेकिन मुस्लिम, पारसी और यहूदी समुदायों के पर्सनल लॉ में बराबर हक की बात नहीं है। ऐसे में UCC लागू होने से गोद ली जाने वाली संतानों को भी बराबर का हक मिलेगा और यह अहम बदलाव होगा।

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