नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA) और NRC के विरोध प्रदर्शन के बीच केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को मंजूरी दे दी है. इस पर करीब 8500 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. एनपीआर एनआरसी से पूरी तरह अलग है. नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर(एनपीआर) के तहत एक अप्रैल, 2020 से 30 सितंबर, 2020 तक नागरिकों का डेटाबेस तैयार करने के लिए देशभर में घर-घर जाकर जनगणना की तैयारी है. बता दें, पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने एनपीआर का भी विरोध किया है.
एनपीआर के लिए डेटा 2010 में तभी इकट्ठा किया गया था, जब 2011 की जनगणना के लिए आंकड़े जुटाए गए थे. इस डेटा को 2015 में अपडेट किया गया था. इसका डिजिटाइजेशन भी पूरा हो गया है.
रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस (जनगणना) कमिश्नर के मुताबिक, असम को छोड़कर देश की सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अप्रैल से सितंबर 2020 तक जनगणना के आंकड़े जुटाए जाएंगे.इसी दौरान एनपीआर को भी अपडेट किया जाएगा. इसके लिए इसी साल अगस्त में नोटिफिकेशन भी जारी किया गया था.
एनपीआर को नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता (नागरिकों का रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र का मसला) नियम 2003 के तहत स्थानीय स्तर पर यानी उपजिला, जिला और राज्य स्तर पर बनाया जाएगा. देश के हर नागरिक के लिए इसमें नाम दर्ज कराना जरूरी है. इसका मकसद देश में रह रहे नागरिकों का समग्र डेटाबेस तैयार करना है. यह डेटाबेस जनसांख्यिकीय और बायोमीट्रिक आधार पर बनाया जाएगा.
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी- इसके जरिए अवैध नागरिकों की पहचान होगी. एनपीआर- 6 महीने या उससे ज्यादा वक्त से एक क्षेत्र में रहने वाले किसी भी निवासी को एनआरपी में रजिस्ट्रेशन कराना होगा या ऐसा व्यक्ति जो अगले 6 महीने के लिए उस जगह रहने की इच्छा रखता है, उसे भी इसके तहत अपनी जानकारी देनी होगी.