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यूपी: रिवर फ्रंट घोटाले की खुलने लगी परतें, मनमाने तरीके से जारी किये टेंडर, सर्वे तक नहीं किया गया

[Edited By: Rajendra]

Saturday, 21st November , 2020 02:30 pm

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 1500 करोड़ रुपये के लखनऊ के गोमती रिवरफ्रंट घोटाले में सिंचाई विभाग के पूर्व चीफ इंजीनियर रूप सिंह यादव को शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया. रूप सिंह यादव को गाजियाबाद से सीबीआई ने गिरफ्तार किया है. इनके अलावा क्लर्क राजकुमार यादव को सीबीआई ने लखनऊ से गिरफ्तार किया है. गिरफ्तारी के बाद दोनों आरोपियों को सीबीआई ने कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट ने दोनों आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया. सीबीआई ने आरोपियों की पुलिस कस्टडी रिमांड की अर्ज़ी दी. मामले में पता चला है कि जल्द ही कई और लोगों की गिरफ्तारियां हो सकती हैं.

यूपी में योगी सरकार ने घोटाले की जांच के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आलोक सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी. कमेटी ने घोटाले की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. जिसके बाद रूप सिंह यादव समेत सिंचाई विभाग के कई इंजीनियर, ठेकेदारों के खिलाफ लखनऊ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी. यूपी सरकार ने बाद में ये मामला सीबीआई को भेज दिया था, जिसके बाद 24 नवंबर 2017 को सीबीआई ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी. करोड़ों के इस घोटाले में रूप सिंह यादव के खिलाफ ईडी ने भी मनी लॉन्ड्रिंग की एफआईआर दर्ज की थी. पिछले साल रूप सिंह यादव की संपत्ति भी ईडी ने अटैच की थी.

प्रोजेक्ट का 95 फ़ीसदी बजट खर्च हो गया लेकिन काम सिर्फ 60फ़ीसदी हुआ. इसके अलावा 100 करोड़ का सेंटेज चार्ज मौखिक आदेश पर ही समाप्त कर दिया गया. सेंटेड चार्ज समाप्त करने के लिए बैठक में तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल, मुख्य अभियंता शारदा ,सहायक एसएन शर्मा, अधिशासी अभियंता रूप सिंह यादव बीके निरंजन थे.इससे पहले रूप सिंह यादव ने भी बयान में कहा कि उनके पास सेंटेज चार्ज जमा नहीं करने का कोई लिखित आदेश नहीं था, बस मौखिक आदेश पर सेंटेज चार्ज नहीं लिया गया. अचरज की बात ये है कि, रिवरफ्रंट के प्रोजेक्ट में ना तो ई टेंडर के प्रक्रिया अपनाई गई और ना ही टेंडर आमंत्रित किए गए. कई महत्वपूर्ण टेंडर में बदलाव को भी प्रकाशित नहीं करवाया गया.

गैमन इंडिया को लाभ देने के लिए टेंडर की टेक्निकल अहर्ता को भी बदल दिया गया. दिल्ली, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के ब्लैक लिस्टेड कंपनी गैमन इंडिया को रिवर फ्रंट का बड़ा टेंडर दिया गया. प्रोजेक्ट के डायाफ्राम वॉल और रबड़ डैम का टेंडर गैमन इंडिया को मिला था. गैमन इंडिया से 115.6 करोड़ की परफारमेंस ग्रांट भी नहीं ली गई. किसी भी अनुबंध के बाद परफॉर्मेंस ग्रांट लेना अनिवार्य होता है ताकि कंपनी बीच में काम छोड़कर जाए तो उस ग्रांट को रख लिया जाए.

इंटरसेप्टिंग ड्रेन का टेंडर अधीक्षण अभियंता शिवमंगल यादव ने पहले ही जारी कर दिया था. मंत्री परिषद से अनुमोदन 18 जुलाई 2016 को हुआ. 25 जुलाई को शासन ने बजट का पत्र भेजा. लेकिन दो साल पहले ही शिवमंगल यादव ने टेंडर 18 सितंबर 2015 को ही टेंडर स्वीकार कर केके स्पन पाइप प्राइवेट लिमिटेड को टेंडर देकर काम भी शुरू करवा दिया. दूसरे प्रोजेक्ट का फंड डाइवर्ट कर एक साल पहले से ही काम शुरू करवा दिया गया.

जिस केके स्पन पाइप प्राइवेट लिमिटेड को ठेका जारी होने के दो दिन बाद और टेंडर मिलने के 11 दिन पहले हुआ था 7 सितंबर 2015 को हुआ था. रबर डैम का प्रोजेक्ट मूल परियोजना में था ही नहीं इसे बाद में जोड़ दिया गया. डायाफ्राम वॉल और रबर डैम दोनों का ही टेंडर गैमन इंडिया को दिया गया और यह सब रूप सिंह यादव के कार्यकाल में हुआ.

रूप सिंह यादव अधिशासी अभियंता और अधीक्षण अभियंता दोनों के चार्ज पर थे. विजन डॉक्यूमेंट टेंडर प्रक्रिया में चीफ इंजीनियर एसएन शर्मा फंसे थे. विजन डॉक्यूमेंट के लिए टेंडर तीन करोड़ 63 लाख 68 हजार का हुआ.

कंपनी ने प्रोजेक्ट का क्षेत्रफल 7 हेक्टेयर से बढ़ाकर 31.2 हेक्टेयर कर दिया तो विजन डॉक्यूमेंट की लागत बढ़कर दोगुनी यानी 6.85 करोड हो गई. विजन डॉक्यूमेंट टेंडर के सहारे पूरे प्रोजेक्ट का क्षेत्रफल और लागत को बिना किसी अनुमोदन के बढ़ाने की शुरुआत रूप सिंह यादव और चीफ इंजीनियर एस एन शर्मा ने की.

1531.51 करोड़ के बजट में 1437.83 करोड़ खर्च हो गया लेकिन प्रोजेक्ट से जुड़े हुए 6 काम शुरू ही नहीं हुए. 8 प्रोजेक्ट में फंड की 10 फ़ीसदी अधिक खर्च हो गया. कई में 3 गुना और 6 गुना तक अधिक खर्च हुआ लेकिन काम पूरे नहीं किए गए.

इस मामले में 19 जून 2017 को गौतमपल्ली थाना में 8 के खिलाफ अपराधिक केस दर्ज किया गया. इसके बाद नवंबर 2017 में भी ईओडब्ल्यू ने भी जांच शुरू कर दी. दिसंबर 2017 मामले की जांच सीबीआई चली गई और सीबीआई ने केस दर्ज कर जांच शुरू की. यही नहीं मामले में दिसंबर 2017 में ही आईआईटी की टेक्निकल जांच भी की गई. इसके बाद सीबीआई जांच का आधार बनाते हुए मामले में ईडी ने भी केस दर्ज कर लिया.

गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण कार्य से जुड़ें इंजीनियरों पर दागी कम्पनियों को काम देने, विदेशों से मंहगा समान खरीदने, चैनलाइजेशन के कार्य में घोटाला करने, नेताओं और अधिकारियों के विेदेश दौरे में फिजूलखर्ची करने सहित वित्तीय लेन देन में घोटाला करने और नक्शे के अनुसार कार्य नहीं कराने का आरोप है. इस मामले में 8 इजीनियरों के खिलाफ पुलिस, सीबीआई और ईडी मुकदमा दर्ज कर जांच कर रही है. इनमें तत्कालीन चीफ इंजीनियर गोलेश चन्द्र गर्ग, एसएन शर्मा, काजिम अली, शिवमंगल सिंह, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव, सुरेन्द्र यादव शामिल हैं. यह सभी सिंचाई विभाग के इंजीनियर हैं, जिन पर जांच चल रही है.

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