लखीमपुर हिंसा के बाद बयानबाजियों का दौर है। खुद को सही और दूसरे को गलत ठहराया जा रहा है। सब जगह शोर। लेकिन कुछ घरों में सन्नाटा पसरा है। सन्नाटा टूटता है रोने की आवाज और सिसकियों से। आठ परिवारों ने अपनों को खोया है। पल भर की हिंसा। जिंदगी भर का दर्द। दुख-दर्द पक्ष-विपक्ष के दायरों से पार होता है।
किसी बेटे के सामने पिता ने दम तोड़ा। कोई युवा भविष्य के सपनों को अधूरा छोड़ कर परिजनों को बिलखता छाेड़ गया। तो किसी परिवार का इकलौता कमाने वाला चला गया। मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया। हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों के पास अब यादें ही बाकी हैं।
परिवार के लोगों को अपनों से बिछड़ने का गम अब जिंदगी भर सताता रहेगा...
दलजीत: बहुत तड़प रहे थे
बहराइच के बंजारन टोला गांव के रहने वाले दलजीत सिंह के परिवार में अब उनकी पत्नी तीन बच्चे और माता पिता हैं। घटना के समय उनका बेटा राजदीप भी था। उसने बताया कि पीछे से आ रही तीन गाड़ियां उनको रौंदकर निकल गई। मैने अपनी आंखों के सामने पापा को तड़पते देखा। मैं चिल्ला रहा था, रो रहा था। थोड़ी ही देर में पापा की सांसें थम गईं।
गुरविंदर: रिश्तेदारी में गए थे
गुरविंदर सिंह की तिकुनिया में मौत हो गई। तीन एकड़ दो भाई खेती करते थे। गुरविंदर के चचेरे भाई पूरन सिंह ने कहा कि काश, वह रिश्तेदारी में न गया होता तो जिंदा होता। दोपहर को लखीमपुर पहुंचे तो आंदोलन में फंस गए। गुरविंदर को फोन मिलाया तो नंबर बंद आ रहा था। गुरविंदर की मौत की वजह हेड इंजरी, नुकीले हथियार के घाव, घसीटे जाने से गंभीर चोटें हैं।
लवप्रीत: बुढ़ापे का सहारा थे
किसान सतनाम सिंह का इकलौता बेटा लवप्रीत इंजीनियर बनना चाहता था। अब मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा छिन गया है। लवप्रीत की दो बहनें हैं। तिकुनिया में आंदोलन को लेकर गांव के कई लोग जा रहे थे तो लवप्रीत भी उनके साथ चला गया। उसे रोकने की कोशिश भी की गई थी लेकिन, वह माना नहीं। उसका शव आया। लवप्रीत के शरीर पर 16 चोटें पाई गईं।
नछत्तर: बेटा SSB में है
लहबड़ी गांव के नछत्तर सिंह ने तीन अप्रैल को छोटे बेटे मंदीप की सगाई की थी। मंदीप एसएसबी में चयनित हुआ था। सगाई के बाद मंदीप ट्रेनिंग के लिए अल्मोड़ा चला गया। 15 दिन बाद उसे लौटना था। तब शादी की तारीख तय होती। नछत्तर की तमन्ना थी कि वह बेटे काे वर्दी में देखे, लेकिन ये पूरी नहीं हो पाई। नछत्तर की मौत का कारण घसीटने से आई चोटें हैं।
शुभम: दंगल देखने गया था
मृतक शुभम के पिता विजय मिश्रा का बुरा हाल है। उनका कहना है शुभम ने बीएससी की थी। निजी फाइनेंस कंपनी में काम करता था। दंगल देखने आया था। वह हमारा सहारा था। उसके शरीर में चोटों के इतने निशान थे कि बेटे का अखिरी बार मुंह देखे बिना ही अंतिम संस्कार करना पड़ा। वह होनहार था। दो साल पहले शादी हुई थी, एक साल की बेटी है।
हरिओम: अकेला कमाने वाला
आरोपी आशीष मिश्रा के ड्राइवर हरिओम मिश्रा की हत्या कर दी गई। हरिओम की बहन महेश्वरी व माधुरी का रो-रोकर बुरा हाल है। महेश्वरी ने कहा कि उसके पिता मानसिक रूप से बीमार हैं। हरिओम ही उनकी पूरी देखभाल करता था। घर में पिता व दो बहनों का खर्च वही उठाता था। हरिओम की मौत डंडों से बुरी तरह पीटे जाने की वजह से हुई।
श्यामसुंदर: 2 बेटियां अब अकेली
30 साल के श्यामसुंदर निषाद की पत्नी रूबी का कहना है कि उनके पति को भीड़ ने ही पीट-पीटकर मार डाला। चार साल की अंशिका और एक साल की जयश्री को छोड़ गए हैं। दंगल देखने के लिए बनवीरपुर गए थे। इस बात से बिल्कुल अनजान कि आज ये दंगल ही उनकी दो मासूम बेटियों के सपनों को तोड़ देगा। श्यामसुंदर भाजपा के स्थानीय संगठन में थे।
रमन: पत्रकार थे
लखीमपुर खीरी में मारे गए लोगों में एक स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप भी थे। उनके परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं - एक 7 साल की बेटी और 3 साल का बेटा। स्थानीय चैनल में पत्रकार थे। अंतिम संस्कार 4 अक्टूबर को पैतृक गांव निघासन में किया गया। रमन की मौत का कारण ब्रेन हैमरेज है। उन्हें बुरी तरह पीटा गया। शरीर पर चोटों के कई निशान थे।