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महिलाओं की आर्थिक तंगी को दूर करता ये सिद्धपीठ बना प्रेरणाश्रोत- देखिये ये खबर

[Edited By: Vijay]

Friday, 20th August , 2021 12:52 pm

आस्था का केन्द्र अगर दैनिक जीविका का केन्द्र भी बन जाये तो क्या कहने..ऐसा ही एक प्रेरणाश्रोत बना लखनऊ का मनकामेश्वर सिद्धपीठ जहां पर महिलाओं को प्रशिक्षण के साथ रोजगार मिल रहा है ..

लखनऊ के सबसे बड़े सिद्धपीठ में आस्था के फूलों से निकली खुशबू से गरीब महिलाओं के जीवन में समृद्धि आ रही है। महंत देव्या गिरि के सानिध्य में एक साल पहले शुरू हुआ प्रयास अब रंग लाने लगा है। गोबर से दीपक बनाने से लेकर बाबा भोलेनाथ को चढ़ाए गए फूलों से बनने वाले चंदन और गुलाल आर्थिक तंगी से जूझ रही महिलाओं को दो जून की रोटी दे रहे हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से भी ऐसे फूलों से बनी अगरबत्ती व धूप बत्ती को लेने की अपील की जाती है। महिलाओं और युवतियों को यहां प्रशिक्षण के साथ ही कारोबार की जानकारी दी जाती है। मनकामेश्‍वर मंदिर की यह अनूठी पहल लाेगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन रही है। सदियों पुराने मंदिर में प्रशिक्षण देने वाली तृप्ता शर्मा ने बताया कि महंत देव्या गिरि की सोच का ही नतीजा है कि गरीब घरों की महिलाएं प्रशिक्षित होकर कारोबार कर रही हैं।

ऐसे मंदिर में मिलता है प्रशिक्षण और रोजगार

मंदिर में चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छुक युवतियां व महिलाएं मंदिर की महंत देव्या गिरि से संपर्क करती हैं। निश्शुल्क प्रशिक्षण की जानकारी के साथ ही उनकी रुचि के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाता है। घरेलू उपयोग के सामानों के साथ ही दीपक व मूर्ति बनाना भी सिखाया जाता है। मंदिर के अंदर चढ़े फूलों को सुखाकर उनका पाउडर बनता है, जिसे सांचों में ढालकर धूप बत्ती और चंदन बनता है।

बेटी बचाओं के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश

महंत देव्या गिरि ने बताया कि दिव्या स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बेटी बचाओ और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही आपके अंदर आस्था जागृत होती है, उसी तरह बेटियों को बचाने और पर्यावरण को सुरक्षित करने का विश्वास भी जगाने का यह छोटा सा प्रयास है। जिला नगरीय विकास अभिकरण के सहयोग से इसमे विस्तार की तैयारी की जा रही है। मंदिर के आसपास की महिलाओं के साथ ही शहर के हर इलाके की महिलाओं और युवतियों को इससे जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

मां गोमती के तट पर स्थित मनकामेश्वर मठ-मंदिर अति प्राचीन शिवालयों में से एक है। महंत देव्या गिरि ने बताया कि मंदिर का निर्माण राजा हर नव धनु ने अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करने के बाद करवाया था। मंदिर की चोटी पर 23 स्वर्ण कलश स्थापित किए गए थे। 12 वीं शताब्दी के यमनी आक्रमणकारियों ने इस मंदिर का सारा स्वर्ण लूट कर इस मंदिर को नष्ट कर दिया था, जो करीब 500 वर्ष पूर्व नागा साधुओं (जूना अखाड़ा) के द्वारा पुन: निर्माण के बाद वर्तमान स्वरूप में हैं। मंदिर का निर्माण कार्य सेठ पूरन चंद्र को कराने का पुण्य प्राप्त हुआ। तब इसे सर्राफा का शिवाला कहा जाने लगा था। 1933 में इस मंदिर का नाम मनकामेश्वर मठ-मंदिर रखा गया। जो भक्त मंदिर में श्रद्धा और विश्वास के साथ सच्चे हृदय से भगवान शिव जी की पूजा-अर्चना और सेवा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसी से भोलेनाथ को मनकामेश्वर बाबा के नाम से जाना जाता है

मनकामेश्वर मठ-मंदिर की देखभाल तथा व्यवस्था गुरु-शिष्य प्रणाली द्वारा होती चली आ रही है। यहां भगवान शिव जी का विशाल दर्शनीय शिवलिंग है, जिसकी स्थापना रामायण काल में हुई थी। माता-सीता को लक्ष्मण जी वनवास छोड़कर वापस अयोध्या जा रहे थे, तभी वह यहीं पर रात्रि विश्राम कर भोर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। यहां पर पूजन उपरांत उनका मन शांत हुआ यही वजह है कि मनकामेश्वर द्वार में प्रवेश करने के बाद स्‍वत: ही मन को शांति मिल जाती है।

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