25 दिसंबर 1906 ई० को क्रिसमस पर्व पर कानपुर को बिजली का तोहफा मिला था। बिजली का तोहफा देने वाली कंपनी थी दि इंडियन इलेक्ट्रिक सप्लाई एण्ड ट्रैक्शन कंपनी । यह वही कंपनी थी जिसने कानपुर मे सबसे पहले ट्राम चलाई थी, जो शहर के रेलवे स्टेशन से कलेक्टरगंज, हालसी रोड, परेड, इलाहाबाद बैंक क्रासिंग होते हुए सरसैया घाट तक चलती थी। कानपुर के गिर्जाघरो को रोशन करने के साथ मार्गप्रकाश और यूरोपियन परिवारो के घरो पर बिजली की व्यवस्था सबसे पहले विद्युत आपूर्ति कंपनी ने किया था। बाद मे उसे दि कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन लि० नाम दिया गया। परेड के पास सन् 1925 मे कारपोरेशन का मुख्यालय बिजलीघर के नाम से बनाया। जिसमे सन् 1931 मे बिजलीघर का क्लाक टावर निर्मित किया गया और 80 हजार रुपये के ब्यय के साथ सन् 1932 मे बिजलीघर क्लाक टावर का शुभारंभ हुआ था।
कानपुर मे बिजली आगमन से पूर्व घरो व सड़को पर तेल के दीपक रखे जाते थे। सन् 1857 की क्रान्ति के बाद हिन्दुस्तान आए ब्रिटेन के पत्रकार डब्लू. एच. रसेल की किताब माई डायरी इन इन्डिया मे कानपुर यात्रा का नल्लेख मिलता है ।
इसमें 18 अक्टूबर 1858 ई० को कलेक्टर शेरर उनके सहायक मि. बीटा मशहूर फोटोग्राफर और मै एक खुली गाड़ी मे घुड़सवारो के साथ शहर मे गये। मुख्य मार्ग देशी रंग से रोशनी मे रंगा था, इसका प्रभाव अत्यधिक सौम्य और सुन्दर था। सड़क पर कोई फुटपाथ नही थे, खुली नालियां मिट्टी के छोटे दीपको मे दिखाई पड़ रही थी। सड़क के किनारे बांसो मे छोटे छोटे दीपक जल रहे थे। घरो मे भी इस तरह के दीपक जलने से सब ओर रोशनी थी।