रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी में वृद्धि दर का अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर 7.0 फीसदी कर दिया है। इसका कारण ग्लोबल महंगाई के कारण निर्यात में कुछ कमी आने की आशंका और रेपो रेट में बढ़ोतरी के कारण कुछ घरेलू सेक्टर में मांग में कमी आने की आशंका हो सकती है। हालांकि, इस वर्ष पूरे देश में पहले बारिश की कमी और बाद में ज्यादा बारिश के कारण फसलों को हुए नुकसान के कारण भी ऐसा हुआ हो सकता है।
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने एक बार फिर ब्याज दरों में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। इससे रेपो रेट बढ़कर रिकॉर्ड 5.90 फीसदी तक पहुंच गया है। इसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ेगा। रेपो रेट में बढ़ोतरी के कारण ऑटो लोन, होम लोन और पर्सनल लोन की ईएमआई के रूप में आपको ज्यादा पैसा चुकाना पड़ेगा। इस बीच ग्राहकों के लिए यह राहत भरी खबर हो सकती है कि इस वित्त वर्ष में महंगाई दर छह फीसदी के करीब रह सकती है।
तेज महंगाई से जूझ रही दुनिया भर की सरकारों ने महंगाई में कमी लाने के लिए रेपो रेट बढ़ाने के आजमाए नुस्खे को आजमाया है। इसके पहले अमेरिकी और यूरोपीय देशों की सरकारों ने अपने यहां रेपो रेट में बढ़ोतरी की थी। अमेरिका ने हाल ही में रेपो रेट में 75 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी की थी। इससे भारतीय रूपये पर दबाव बढ़ रहा था। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा रेपो रेट में वृद्धि का एक कारण यह भी माना जा रहा है।
हालांकि, आर्थिक जानकारों का मानना है कि देश में घरेलू महंगाई की दर में कमी आ रही थी, लिहाजा त्योहारों का सीजन देखते हुए मांग को बनाए रखने के लिए इस बढ़ोतरी को एक महीने के करीब टाला जा सकता था।
रेपो रेट में बढ़ोतरी के कारण ऑटो और होम लोन महंगे हो जाएंगे। इससे वे लोग इन क्षेत्रों में निवेश करने से पीछे हट सकते हैं जो कोई मिड रेंज की गाड़ी खरीदना चाहते थे, या नये भवन की खरीद की योजना बना रहे थे। इससे इन सेक्टरों में मांग में कमी आ सकती है। इससे कुछ क्षेत्रों में उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है।
आर्थिक मामलों के जानकार भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. सईद जफर इस्लाम ने कहा कि केंद्र सरकार के प्रयासों से महंगाई को कम करने की दिशा में लगातार सफलता मिल रही है। आरबीआई के द्वारा रेपो रेट में की गई बढ़ोतरी भी महंगाई को कम कर जनता को राहत पहुंचाने की एक सफल कोशिश है। उन्होंने कहा कि पहले तिमाही में यह देखा गया था कि वस्तुओं की खपत ज्यादा बढ़ रही थी, जिससे महंगाई में बढ़ोतरी हो रही थी, इसे एक सीमा में रखने के लिए आरबीआई के पास यही विकल्प उपलब्ध था। इस दृष्टि से आरबीआई के इस कदम को सही दिशा में उठाया गया कदम कहा जा सकता है।
पूर्व भाजपा सांसद डॉ. सईद जफर इस्लाम ने कहा कि विदेश में महंगाई दर रिकार्ड ऊंचा होने के कारण निर्यात में कुछ कमी आने की आशंका है, जिसके कारण जीडीपी की वृद्धि में कुछ कमी आने की आशंका जताई गई है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि अपनी कीमतों और गुणवत्ता के कारण भारतीय उत्पादों की विदेशों में मांग बनी रहेगी जिसका लाभ अंतरराष्ट्रीय निर्यातकों को मिलता रह सकता है।
भारत में महंगाई पर सबसे ज्यादा असर तेल-गैस के मूल्यों का पड़ता है, क्योंकि इसका सर्वाधिक हिस्सा हमें आयात करना पड़ता है। तेल कीमतों में वृद्धि का सीधा असर माल ढुलाई के रूप में सभी वस्तुओं पर पड़ता है, जिससे महंगाई में वृद्धि हो जाती है। इस समय रुपये की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही है जिसके कारण भारत को तेल कीमतों के रूप में ज्यादा पैसा चुकाना पड़ रहा है। इससे भी महंगाई बढ़ने का दबाव बढ़ रहा है।
भारत के लिए राहत भरी खबर यह है कि रूस इसी दौरान हमें कम कीमत पर तेल की सप्लाई कर रहा है, जिसके कारण तेल की कीमतें कम बनी हुई हैं और इस कारण महंगाई को नियंत्रित करने में भी मदद मिल रही है, लेकिन यदि युद्ध की तीव्रता में बढ़ोतरी होती है और इस कारण सप्लाई चेन बिगड़ती है तो इससे महंगाई एक बार फिर भड़क सकती है।
रेपो रेट में बढ़ोतरी से वे लोग अपने बिजनेस एक्स्टेंशन को कुछ समय के लिए टाल देते हैं, जो अपने बिजनेस में विस्तार की योजना बना रहे थे। इससे नई नौकरियों के सृजन की संभावनाओं पर असर पड़ता है। लेकिन चूंकि, देश के छोटे-छोटे व्यापारी बहुत आवश्यक आवश्यकता वाली वस्तुओं का व्यापार करते हैं, उनकी खपत हर हाल में बनी रहती है, लिहाजा इसका उन पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।