देश में प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में बिजली उत्पादन में लगे थर्मल प्लांट से निकलने वाली राख हवा को और जहरीली बना रही है, जिसके चलते आसपास के लोगों में टीबी, दमा और कैंसर जैसी घातक बिमारियां फैल रही हैं। ऐसे में अब इस राख के निपटारे के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है।
सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय द्वारा लिखे पत्र में पर्यावरण मंत्रायल की ओर से जारी अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि देशभर में 40 अधिक थर्मल पावर प्लांट से प्रत्येक वर्ष निकलने वाली करोड़ों टन राख पर्यावरण के लिए दिन ब दिन गंभीर समस्या बनती जा रही है। राख के कारण आसपास के लोगों में गंभीर बिमारियां फैल रही हैं। मंत्रायल के अधिकारी ने बताया कि प्रशासन प्लांट्स से निकलने वाली 100 फीसदी राख का निपटारा नहीं कर पा रहे हैं। जिस कारण मिट्टी, भूजल, नदी, हवा में राख के घुलने से पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है।
प्रदूषण के बढ़ते स्तर को रोकने के लिए पावर प्लांट के 300 किलोमीटर के दायरे में पुल, तटबंध और राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में इस राख का इस्तेमाल किया जाएगा, जोकि सड़क निर्माण में मिट्टी व पत्थर का एक अच्छा विकल्प साबित होगी। ऐसा करने से जहां प्राकृतिक संसाधनों को बचाया जा सकेगा, वहीं आसपास के लोगों को भी प्रदूषण से राहत मिलेगी। दरअसल, थर्मल प्लांट से निकलने वाली राख की समस्या को बढ़ते देख, सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने बीते दिनों सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों, एनएचएआई, एनएचएआईडीसीएल, पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियरों, बीआरओ को इस संबंध में पत्र लिखा।
ऐसे में अब इसका समाधान निकालते हुए प्लांट के 300 किलोमीटर के दायरे में पुल, तटबंध व राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किया जाए। निर्माण में राख का अनुपात क्या होगा इसके लिए पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए गये हैं। इसके साथ ही बताया गया है कि सड़क निर्माण में राख का प्रयोग मिट्टी व पत्थर की अपेक्षा बेहतर विकल्प है। इसके साथ ही परिवहन पर होने वाला खर्च का 50 फीसदी खर्च पावर प्लांट और बाकी 50 फीसदी निर्माण कंपनी-ठेकेदार को वहन करना होगा।