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आरबीआइ ने देश की बैंकिंग व्यवस्था की सालाना रिपोर्ट जारी की

[Edited By: Rajendra]

Wednesday, 30th December , 2020 04:34 pm

आरबीआइ ने देश की बैंकिंग व्यवस्था की सालाना रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि सितंबर, 2020 में समाप्त तिमाही में भारतीय बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) का स्तर घटकर 7.5 फीसद पर आ गया है, लेकिन यह वस्तुस्थिति नहीं है।

रिपोर्ट में कोविड से भारतीय बैंकों खास तौर पर सरकारी क्षेत्र के बैंकों व एनबीएफसी पर दूरगामी असर पड़ने की आशंका जताते हुए कहा गया है कि महामारी बैंकों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालने वाली साबित होगी। रिपोर्ट यह भी सामने आया कि 40 फीसद कर्जधारकों ने बैंकों की तरफ से दिए गए लोन मोरेटोरियम का फायदा उठाया। बैंकिंग सेक्टर पर इसका असर बाद में दिखाई दे सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, फंसे कर्जे (एनपीए) की वास्तविक स्थिति अभी बैंकों के हिसाब-किताब पर नहीं दिखाई दे रही है। कोविड का असर एनपीए के आंकड़ों पर अभी नहीं दिखा है। कुछ बैंकों ने जो आंकड़े दिए हैं, उनके अध्ययन से लगता है कि कोविड की वजह से बैंकों के ग्रॉस एनपीए 0.10 फीसद से लेकर 0.66 फीसद तक बढ़ सकता है। वैसे आरबीआइ की तरफ से कोविड-19 के संदर्भ में जारी नियम और लाभांश नहीं देने की वजह से बैंक इसका कुछ असर बर्दाश्त कर लेंगे।

हालांकि, यह तय है कि उनकी एसेट क्वालिटी में गिरावट आएगी और भविष्य में उनके राजस्व पर भी प्रतिकूल असर होगा। इसका पता तभी चलेगा जब मोरेटोरियम का सही आकलन हो और फंसे कर्जे के मामले को दिवालिया कानून के तहत ले जाने पर लगी रोक हटाई जाए।

आय व मुनाफा प्रभावित होने की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकार से फिर भारी भरकम मदद की जरूरत होगी। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार की तरफ से इन्हें 20 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं। इन्हें बाजार से भी ज्यादा राशि जुटाने की जरूरत होगी। कई निजी बैंकों ने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है।

आरबीआइ ने कहा कि स्माल फाइनेंस बैंक, पेमेंट बैंक, सहकारी बैंक, एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) सभी पर कोविड-19 से उपजे हालात का असर दिखाई देगा। अर्थव्यवस्था व बैंकिंग सिस्टम में कई बदलाव दिखाई देंगे और बैंकों को इनका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। बैंकिंग सिस्टम में तकनीक का उपयोग बढ़ने से भी कई तरह की चुनौतियां आएंगी। नए तरह का बैंकिंग मॉडल सामने आएगा।

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