'बाबुल की दुआएं...' गाना गाते-गाते रो पड़ते थे मोहम्मद रफी, यहां सुनिए रफी के टॉप-10 सुपरहिट गीत
[Edited By: Admin]
Wednesday, 31st July , 2019 01:42 pm
सुरों के सरताज मोहम्मद रफी की आज 39वीं पुण्यतिथि है। इस महान सिंगर ने 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। लेकिन आज भी उनके बेहतरीन गाने हमारे दिलों पर राज कर रहे है। पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह में 24 दिसंबर 1924 को रफी का जन्म हुआ था। मोहम्मद रफ़ी ने 1940 से लेकर 1980 तक लगभग 26 हज़ार गानों को आवाज़ दी और इनमें से अधिकतर क्लासिक माने जाते हैं। इन गानों में फ़िल्मी गीतों के अलावा भजन, लोकगीत और कव्वाली और क्षेत्रीय भाषाओं के गाने शामिल हैं। रफ़ी के बारे में कहा जाता है कि फ़कीरों को सुनकर उन्हें गायकी का शौक़ लगा था। बचपन में वो उनके गीत सुनते थे और फिर दूसरों को सुनाते थे।
बाबुल की दुआएं... गाना गाते-गाते रो पड़ते थे
साठ और सत्तर के दशक में रफ़ी को ने ऐसे कई गीतों को आवाज़ दी, जिनमें दर्द की छटपटाहट महसूस की जा सकती है। ख़ुद रफ़ी इन गीतों को गाते-गाते भावुक हो जाते थे, जिसका अंदाज़ा इन गीतों को सुनकर हो जाता है। ऐसा ही एक गीत है बाबुल की दुआएं लेती जा...। कहा जाता है कि नील कमल फ़िल्म के इस गीत को गाते-गाते रफ़ी साहब की आंखों में बार-बार आंसू आ रहे थे। क्योंकि ठीक एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी, जिस कारण वो भावुक हो रहे थे। इस गाने के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था।
फांसी चढ़ने से पहले सुनना है रफ़ी साहब का गाना
रफ़ी साहब के साथ संगीत देना किसी भी संगीतकार के लिए सम्मान की बात होती थी। संगीतकार नौशाद के लिए मोहम्मद रफ़ी ने काफ़ी गाने गाये थे। नौशाद उनके बारे में एक क़िस्सा कहते थे। एक अपराधी को फांसी की सज़ा सुनाई गयी थी। जब फंदे पर लटकने का दिन आया तो उससे आख़िरी ख़्वाहिश पूछी गयी तो उसने कुछ और मांगने के बजाय बैजू बावरा फ़िल्म का गीत ओ दुनिया के रखवाले सुनने की इच्छा ज़ाहिर की। इस गाने को रफ़ी साहब ने आवाज़ दी थी और इस गीत को सुनते वक़्त पता चलता है कि रफ़ी साहब ने अपना दिल उड़ेल दिया था। क़ैदी की इस ख़्वाहिश को सुनकर जेल वाले भी सन्न रह गये थे।
शायद ही आप जानते होंगे कि फिल्म 'आस-पास' का गाना मोहम्मद रफी का आखिरी गाना था। इसे रफी साहब ने अपनी मृत्यु से बस कुछ घंटे पहले रिकॉर्ड किया था। इसके चंद घंटों बाद उनका निधन हो गया, जिसके बाद इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ उठी थी। यह गाना था फिल्म 'आस-पास' का 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त, तू कहीं आसपास है दोस्त'।
साल 1966 में रिलीज हुई फिल्म सूरज का गाना 'बहारों फूल बरसाओ' तो हर किसी ने सुना होगा। इतना ही नहीं आज भी कई शादियों में इस गाने को बड़े ही शौक से बजाया जाता है।
राजकुमार की फिल्म हीर-रांझा साल 1970 में रिलीज हुई थी। जिसका गाना 'ये दुनिया ये महफिल' आज भी बड़े ही चाव से लोग Sad Song के रूप में सुनकर भाव-विभोर हो जाते है।
साल 1969 में आईं फिल्म प्रिंस का गाना तो आपने सुना ही होगा। जी हां 'बदन पे सितारे लपेटे हुए' भी गाना मोहम्मद रफी ने गाया है।
साल 1970 में आईं फिल्म जीवन मृत्यु का गाना 'झिलमिल सितारों का आंगन होगा' तो आपको गाना याद होगा। जिसमें धर्मेंद बड़े ही प्यार भरे अंदाज में मिट्टी का घर बनाते हुए इस गाने को गुनगुनाते हुए नजर आ रहे हैं।
फिल्म ताजमहल का गाना 'जो वादा किया निभाना पड़ेगा' तो याद ही होगा। इस गाने को लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी थी।
साल 1971 में राजेंद्र कुमार और साधना की फिल्म आप आए तो बाहर आई का गाना 'मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा' तो गाना याद ही होगा। यह क्लासिक गाना सुनकर आप जरूर ही रो पड़ेंगे।
साल 1969 में जितेंद्र की आईं फिल्म जीने की राह का गाना 'आने से उसके आए बहार' गाना तो आपने सुना होगा। इसमें मोहम्मद रफी ने अपनी प्यारी सी आवाज दी है।
मोहम्मद रफी ने 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपने सुरों की ऐसी छाप छोड़ी जो आज तक अमिट है।
मोहम्मद रफी ने 1940 के दशक से 1980 तक कुल 26,000 गाने गाए। इनमें हिन्दी गानों के अलावा गजल, भजन, देशभक्ति गीत शामिल हैं।
बॉलीवुड में शायद ही ऐसा कोई बड़ा सितारा हो, जिसके लिए रफी साहब ने गाना न गाया हो। गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र और ऋषि कपूर का नाम भी इनमें शामिल है।
मोहम्मद रफी के गायक बनने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। बचपन से ही उन्हें गाने का बेहद शौक था। वह अक्सर एक फकीर का पीछा करते थे, जो गाते हुए जाया करता था।
मोहम्मद रफी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे। उसकी आवाज उन्हें बेहद पसंद थी। बाद में वह उसकी नकल करते थे। लोगों को रफी की आवाज पसंद आने लगी।
मोहम्मद रफी का पहला गीत एक पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' के लिए था, जिसे उन्होने श्याम सुंदर के निर्देशन में 1944 में गाया। साल 1946 में मोहम्मद रफी मुंबई आ गए। संगीतकार नौशाद ने उन्हें सबसे पहला मौका दिया।
रफी साहब को संगीतकार नौशाद के गीत तेरा खिलौना टूटा (अनमोल घड़ी) से पहली बार पहचान मिली। इसके बाद शहीद, मेला तथा दुलारी में भी उनकी आवाज को सभी ने सराहा।