सुरों के सरताज मोहम्मद रफी का आज जन्मदिन है. 50 के दशक में जब भी संगीत की कोई महफिल होती थी उसमें मोहम्मद रफी को गाने के लिए बुलाया जाता था. हिन्दी सिनेमा के इतिहास में कोई दूसरा मोहम्मद रफी जैसा आज तक पैदा नहीं हो पाया. भारतीय सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक मोहम्मद रफी का आज 95वां जन्मदिन है.
आइए जानते हैं कैसा रहा मोहम्मद रफी का गायकी का सफर....
24 दिसंबर 1924 को रफी का हुआ था जन्म
मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था. आप को ये जानकर हैरानी होगी कि इतने बडे़ आवाज के जादूगर को संगीत की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी. कहते हैं जब रफी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई दुकान थी, रफी का ज्यादातर वक्त वहीं पर गुजरता था. रफी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए जाया करता था. उसकी आवाज रफ़ी को अच्छी लगती थी और रफी उसकी नकल किया करते थे.
उनकी नकल में अव्वलता को देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी. लोग नाई की दुकान में उनके गाने की प्रशंशा करने लगे. लेकिन इससे रफी को स्थानीय ख्याति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला. रफी के बड़े भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रुझान को पहचान लिया था और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया था. लाहौर में रफी संगीत की शिक्षा उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से लेने लगे और साथ ही उन्होंने गुलाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शुरू कर दिया.
13 की उम्र में गाया पहला गीत
रफी ने पहली बार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया था. दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिए न्योता दिया. श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन में रफ़ी ने अपना पहला गाना, ‘सोनिये नी हिरीये नी’ पार्श्वगायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' के लिए गाया.
1944 में गाया पहला हिन्दी गाना
साल 1944 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना, 'हिन्दुस्तान के हम हैं पहले आप' के लिए गाया। फिल्म का नाम ‘गांव की गोरी’ था. उसके बाद मोहम्मद रफी 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाए गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी’ के जरिए सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच गए और इसके बाद उन्होनें कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा.
जितनी सहजता और सरलता उनके गीतों में थी उतनी ही उनके स्वभाव में भी थी. वे इतना धीरे बोलते थे कि सामने वाले को कान लगा कर उनकी बात सुननी पड़ती थी.
फिल्म ‘बैजू बावरा’ का गाना आज भी लोग नहीं भूल पाएंगे
मोहम्मद रफी ने फिल्म बैजू बावरा के गाने गाए थे. इसमें एक गाना “ओ दुनिया के रखवाले” उन्होंने गाया था. गाना थोड़ा कठिन था. कहा जाता है कि गाने को गाते वक्त रफी साहब के गले से खून निकल आया था. इसके बाद काफी समय तक उनका गला खराब रहा. लोगों को लगा कि अब रफी साहब दोबारा कभी नहीं गा पाएंगे. मगर उन्होंने फिर से वापसी की और एक से बढ़कर एक सुरीले नगमे गाये. रफी को ‘क्या हुआ तेरा वाद’ गाने के लिए ‘नेशनल अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया था. 1967 में उन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मश्री’ अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया.
हिंदी के अलावा कई भाषाओं में रफी ने गाने गाये
मोहम्मद रफी ने चार दशक के अपने फिल्मी गायन के क्षेत्र में हजारों गानों को अपनी आवाज दी. उन्होंने हिंदी के अलावा भी कई भाषाओं में गाने गाए थे. असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ साथ इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी मोहम्मद रफी ने गीत गाए हैं.
मोहम्मद रफी की आवाज जो एक बार किसी के कानों में पड़ जाए तो हमेशा हमेशा के लिए लोगों के जेहन में समा जाती है. जितनी मधुर उतनी ही कोमल, जितनी कोमल उतनी ही सहज. बिल्कुल उनके स्वभाव की तरह. लगभग चार दशकों तक अपनी आवाज के जादू से वे लोगों को मंत्रमुग्ध करते रहे. गजल को गजल हो सुफी हो या भक्ति रस, क्लासिकल हो, सेमी क्लासिकल या लाइट सॉन्ग, रफी की आवाज में सभी शैलियों के गाने फिट बैठते थे.
बेमिसाल थी रफी-मुकेश और किशोर की जोड़ी
मोहम्मद रफी, मुकेश और किशोर कुमार ऐसे सिंगर रहे जिन्हें लोग खूब सुनते थे. तीनों की जोड़ी बेमिसाल थी. तीनों ने अमर, अकबर-एंथनी में एक साथ गाना भी गाया था. किशोर कुमार खुद एक महान गायक थे. बावजूद इसके किशोर के लिए भी उनकी दो फिल्मों ‘बड़े सरकार’ और ‘रागिनी’ में रफी साहब ने आवाज दी थी.
इसके अलावा मोहम्मद रफी ने सबसे ज्यादा डुएट गाने आशा भोंसले के साथ गाए हैं. लता मंगेशकर के साथ रॉयल्टी को लेकर हुए विवाद के चलते दोनों के बीच में अनबन हो गई थी. पहले रफी और लता ने साथ में ढेर सारे सुंदर नगमे गाये. मगर विवाद के बाद लता मंगेशकर ने रफी साहब के साथ गाना छोड़ दिया. इस दौरान रफी साहब ने आशा भोसले के साथ कई यादगार नगमें गाए.
31 जुलाई 1980 को दुनिया से रुखसत हो गए महान फनकार
दिल का दौरा पड़ने की वजह से 31 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी का देहांत हो गया था और उस दिन जोर की बारिश हो रही थी. रफी के देहांत पर मशहूर गीतकार नौशाद ने लिखा, ‘गूंजते है तेरी आवाज अमीरों के महल में, गरीबों की झोपड़ी में भी है तेरे साज, यूं तो अपनी मौसिकी पर सबको फक्र होता है मगर ए मेरे साथी मौसिकी को भी आज तुझ पर नाज है. वह आज भी अपने चाहने वालों के दिलों में पहले की तरह ही जीवित हैं.
यहां देखें मोहम्मद रफी के कुछ सदाबहार गीत...
बहारो फूल बरसाओ:
लाल छड़ी मैदान खड़ी:
ये रेशमी जुल्फें:
आने से उसके आए बहार:
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया:
जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा: