पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल बज चुका है। इमरान खान को सत्ता से उखाड़ फैंकने के प्रयास तेज हो गए हैं। सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर इमरान का पत्ता साफ करने की तैयारी में जुट गई हैं। सभी विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट नाम से एक गठबंधन भी बनाया है जिसकी पहली बैठक में पाकिस्तान के तेज-तर्रार मौलवी तथा नेता मौलाना फजलुर रहमान को बनाया गया । गठबंधन की इस पहली बैठक में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी, बीएनपी प्रमुख सरदार अख्तर मेंगल सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सा लिया।
पीडीएम की संचालन समिति के संयोजक एहसान इकबाल और पूर्व प्रधानमंत्री शरीफ ने गठबंधन के अध्यक्ष के रूप में रहमान के नाम का प्रस्ताव दिया और पीपीपी अध्यक्ष बिलावल और अन्य ने इसका समर्थन किया। ये वही मौलवी हैं जिन्होंने एक साल पहले इमरान सरकार की नींव हिला दी थी। मौलाना फजल-उर-रहमान को मौलाना डीजल के नाम से भी जाना जाता है। मौलाना फजल-उर-रहमान सुन्नी कट्टरपंथी दल और पाकिस्तान की धार्मिक पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख हैं। उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मौलाना भी खुद पाकिस्तानी संसद में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं। मौलाना पाकिस्तान में विदेश नीति को लेकर संसद की समिति और कशमीर समिति के भी प्रमुख रह चुके हैं।
मौलाना फजल-उर-रहमान को नवाज शरीफ सरकार के दौरान केंद्रीय मंत्री का दर्जा दिया गया था। 2018 में उन्हें सरकार विरोधी समूह की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन वह चुनाव में आरिफ अल्वी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। मौलाना तालिबान के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। हालांकि वे खुद को उदारवादी होने का दावा करते हैं। सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि शरीफ ने शुरू में प्रस्ताव दिया था कि रहमान को स्थायी आधार पर अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए लेकिन बिलावल और अवामी नेशनल पार्टी के नेता अमीर हैदर होती ने इस विचार का विरोध किया और सुझाव दिया कि अध्यक्ष पद घटक दलों के नेताओं को बारी-बारी से दिया जाना चाहिए।
बाद में नेताओं के बीच एक समझौता हुआ कि रहमान को पहले चरण में पीडीएम का नेतृत्व करना चाहिए क्योंकि उन्होंने पहले ही पिछले साल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी नीत सरकार के खिलाफ आजादी मार्च का नेतृत्व किया था। ज्यादातर प्रतिभागियों की राय थी कि निरंतरता बनाए रखने के लिए, यह आवश्यक है कि पीडीएम अध्यक्ष सहित प्रमुख पदाधिकारियों का कार्यकाल चार से छह महीने से अधिक न हो।