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नया सफ़र

[Edited By: Admin]

Friday, 7th June , 2019 12:13 am

मैं बड़े चाव से 
खोजता रहा 
ज़माने -भर के खोट 
मिल जाते तो 
खूब हर्षित होता 
और बांटता फिरता लोगों को

अब थकने -ऊबने लगा हूँ
आखिर कहाँ तक और कितने 
बटोरूँ खोट ही खोट 
कांटे ही कांटे 
चुभन ही चुभन है जिनमें ....
वृक्ष बहुत कठोर और कंटीले हैं 
इधर ढल रही है मेरी उम्र

अब तय किया है 
बटोरूंगा कुछ फूल 
जो बिखरे पड़े हैं जमीन पर 
डालियों से जुदा होकर 
महका रहे हैं हवा और मिटटी 
ले जाऊंगा लोगों तक 
उनकी बची हुई 
रूप-रस और गंध

आखिर काँटों और फूलों के बीच 
एक रिश्ता है 
जो हर दिल में चुभता 
और महकता है 
इसी चुभन और गंध के संग 
बदलते हुए ज़माने में 
तबाह -हाल लोगों के साथ 
तय करना है 
एक नया सफर

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