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दिल्ली हाई कोर्ट ने ग़ैर-क़ानूनी गतिविधी क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई

[Edited By: Arshi]

Wednesday, 16th June , 2021 03:15 pm

दिल्ली हाई कोर्ट ने ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियां क़ानून यानी यूएपीए के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए सरकारों से कहा है कि किसी पर 'आतंकवादी' का ठप्पा लगाने से पहले गंभीरता से विचार करना आवश्यक है.अदालत ने कहा,”ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने के लिए इस क़ानून का इस्तेमाल किया गया”.
बेहद कठोर क़ानून 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट' के तहत गिरफ़्तार तीन छात्रों को ज़मानत देते हुए हाई कोर्ट ने मंगलवार को ये बातें कही. नताशा नरवाल, देवंगना कलिता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को बीते साल दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा मामले में साज़िश के आरोप में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
कोर्ट ने उन्हें ज़मानत देते हुए कहा कि 'ऐसा लगता है कि सरकार की नज़र में विरोध के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच फ़र्क करने वाली रेखा कुछ धुंधली हो गई है.' जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम बंबानी की बेंच ने कहा कि यूएपीए में 'आतंकवाद' और 'आतंक' शब्द की परिभाषा कहीं पर नहीं दी गई है.अदालत ने कहा, "यूएपीए में 'आतंकवादी कृत्य' की परिभाषा अस्पष्ट है और 'आकंतवादी कृत्य' का इस्तेमाल किसी भी आपराधिक कृत्य के लिए नहीं किया जा सकता है, ख़ासकर ऐसे कृत्यों के लिए, जिनकी परिभाषा पहले से अन्य क़ानूनों में तय है."
अदालत ने कहा, "ऐसे में अदालत को यूएपीए के सेक्शन 15 में इस्तेमाल 'आतंकवादी कृत्य' शब्दावली को इस्तेमाल करते हुए सावधानी बरतनी चाहिए वरना इस बेहद घृणित अपराध की गंभीरता ख़त्म हो जाएगी."नताशा नरवाल जब जेल में थीं तभी उनके पिता का कोविड से निधन हो गया था.
पिंजरा तोड़ की एक्टिविस्ट और जेएनयू की छात्राएँ नताशा नरवाल, देवंगना कलिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ़ इक़बाल तन्हा को दिल्ली पुलिस ने बीते साल दिल्ली दंगों की साज़िश करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था. इन दोनों को बीते साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामले में हिरासत में लिया गया था. पहले दिल्ली पुलिस ने इन्हें 23 मई को गिरफ़्तार किया और फिर इन पर 29 मई को यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. उस समय ये दोनों तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत पर थीं.
आसिफ़ इक़बाल को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने 19 मई, 2020 को यूएपीए के तहत उस समय गिरफ़्तार किया गया था, जब पहले से ही वे सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों के सिलसिले में दर्ज एक मामले में न्यायिक हिरासत में थे. इनकी ज़मानत याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा, "ऐसा लगता है कि राज्य की नज़र में विरोध के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच फ़र्क करने वाली रेखा कुछ धुंधली हो गई है."
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम बंबानी की बेंच ने यह कहते हुए तीनों छात्रों को ज़मानत दे दी कि 'इनके ऊपर लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया यूएपीए के सेक्शन 15 (आपराधिक कृत्य), सेक्शन 17 (आपराधिक गतिविधि के लिए फंड जुटाने की सज़ा) और सेक्शन 18 (साज़िश रचने की सज़ा) के अनुरूप नहीं हैं.'
हाई कोर्ट का कहना था कि, "ऐसे में यूएपीए के सेक्शन 43D(5) के तहत ज़मानत देने पर लगनी वाली पाबंदियाँ इन पर लागू नहीं होतीं."
ज़मानत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, "हम यह कहने के लिए विवश हैं कि ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने के लिए सरकार के ज़हन में विरोध के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का फ़र्क धुंधला हो गया है. अगर इस रवैए को बढ़ावा मिलता है तो ये लोकतंत्र के लिए दुखद दिन होगा."
संसद ने साल 2004 में प्रिवेंशन ऑफ़ टेररेज़म एक्ट को हटा दिया था. इसके बाद, संशोधन करने यूएपीए लाया गया, जिसमें 'आतंकवादी कृत्य', 'साज़िश' और 'आतंकवादी कृत्य करने की तैयारी' जैसी बातें शामिल की गईं.पोटा से पहले देश में टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटिज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (टाडा) लागू था जिसे 1995 में हटाया गया था. मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, "आतंकवादी कृत्य की परिभाषा आतंकवाद की समस्या के आधार पर तय होनी चाहिए, जिस तरह से संसद ने टाडा और पोटा को लेकर तय की थी."
'आतंकवाद' का अर्थ समझने के लिए हाई कोर्ट ने इस तरह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाए गए कई फ़ैसलों का हवाला भी दिया.
जैसे, सुप्रीम कोर्ट ने 'हितेंद्र विष्णु ठाकुर बनाम महाराष्ट्र सरकार' के मामले में कहा था, "आतंकवाद, बढ़ी हुई अराजकता और हिंसा का परिणाम है. क़ानून व्यवस्था को बिगाड़ने से ही आतंकवादी गतिविधि नहीं होती. यह ऐसी गतिविधि होनी चाहिए, जिससे निपटने में क़ानूनी एजेंसियाँ सामान्य क़ानूनों को असमर्थ पाएँ."
इसी फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "हर आतंकवादी भले ही अपराधी हो मगर हर अपराधी को आतंकवादी का तमगा नहीं दिया जा सकता."
उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा मामले में अभियुक्त छात्रों को ज़मानत देते हुए हाई कोर्ट ने कहा, "जब कड़े क़ानूनी दंड का प्रावधान हो तो विशेष सावधानी बरतकर सब चीज़ों को समझना चाहिए."

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