बंगाली कवयित्री-एक्टिविस्ट और शिक्षाविद् कामिनी रॉय की 155वीं जयंती पर गूगल ने आज अपना डूडल बनाकर उन्हें समर्पित किया है. कामिनी रॉय का जन्म आज ही के दिन 1864 में हुआ था. कामिनी रॉय भारत की पहली थी जिन्होंने महिला अधिकारों को लेकर खुलकर बात की.
साथ ही यह पहली महिला थी जिसने ब्रिटिश इंडिया में ग्रैजुएशन ऑनर्स किया था. अमीर परिवार में जन्मीं रॉय के भाई कोलकाता के मेयर थे और उनकी बहन नेपाल के शाही परिवार की नामचीन फिजिशियन थीं.
कामिनी ने महिलाओं के अधिकारों और उनकी पढ़ाई को लेकर कई कविताएं भी लिखी। सामाजिक कल्याण में भी उन्होंने काफी सहयोग दिया. कामिनी रॉय बहुमुखी प्रतिभा की महिला थी. उन्हें बचपन से ही गणित में काफी रुचि थी, लेकिन आगे की बढ़ाई उन्होंने संस्कृत में की. कोलकाता स्थित बेथुन कॉलेज से बीए ऑनर्स किया और फिर वहीं टीचिंग करने लगी थीं।
ब्रिटिश भारत के दौरान अपना जीवन महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया. कामिनी रॉय पहली महिला थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता-पूर्व भारत में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. कामिनी रॉय एक महान कवयित्री और लेखिका भी थीं. उनका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था, कामिनी रॉय के भाई कोलकाता के मेयर थे और उनकी बहन नेपाल के शाही परिवार की एक फिजिशियन थीं. कामिनी को गणित में गहरी रुचि थी लेकिन उन्होंने संस्कृत में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. कोलकाता स्थित बेथुन कॉलेज से उन्होंने 1886 में बीए ऑनर्स किया था और फिर वहीं टीचिंग करने लगी थीं.
कॉलेज के दिनों में कामिनी की मुलाकात छात्र अबला बोस से हुई. वह महिलाओं की शिक्षा और विधवा के लिए काम करता था. कामिनी रॉय ने अपने कॉलेज में एक अन्य छात्र, अबला बोस से मुलाकात की. अबला महिलाओं की शिक्षा और विधवाओं के लिए काम कर रही थीं. उससे प्रभावित होकर, कामिनी रॉय ने भी महिला अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया. उन्होंने इल्बर्ट बिल का समर्थन किया क्योंकि इसे 1883 में वायसराय लॉर्ड रिपन के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था. इलबर्ट बिल के अनुसार, भारतीय न्यायाधीशों को उन मामलों को सुनने का भी अधिकार दिया गया था जिनमें यूरोपीय नागरिक शामिल थे. यूरोपीय नागरिक इस बिल का विरोध कर रहे थे लेकिन भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक इसका समर्थन कर रहे थे.
कामिनी रॉय के पिता, चंडी चरण सेन, एक न्यायाधीश और एक लेखक थे. वह ब्रह्म समाज के एक प्रमुख सदस्य भी थे. कामिनी ने अपने पिता की पुस्तकों के संग्रह से बहुत कुछ सीखा और उन्होंने पुस्तकालय का भरपूर उपयोग किया. उनकी लेखन शैली सरल थी और वे भाषा समझने में आसानी करते थे. कामिनी रॉय ने 1889 में छंद का पहला संग्रह, आलिया छैया और फिर दो और किताबें प्रकाशित कीं. बता दें, वह 1932-33 में बंगला साहित्य सम्मेलन (1930) की अध्यक्ष और बंगीय साहित्य परिषद की उपाध्यक्ष थीं.
उनके उल्लेखनीय साहित्यिक योगदानों में -महश्वेता, पुंडरीक, पौराणिकी, दीप ओ धूप, जीबन पाथेय, निर्माल्या, माल्या ओ निर्माल्या और अशोक संगीत आदि शामिल थे. उन्होंने बच्चों के लिए गुंजन और निबन्धों की एक किताब बालिका शिखर आदर्श भी लिखी. बता दें, वह कवि रवींद्रनाथ टैगोर और संस्कृत साहित्य से प्रभावित थीं कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें जगतारिणी स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था.