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ज्ञानवापी के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के मामले में मुस्लिम पक्ष को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका

[Edited By: Rajendra]

Thursday, 3rd August , 2023 03:39 pm

वाराणसी में ज्ञानवापी के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के मामले में गुरुवार को मुस्लिम पक्ष को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका मिला। कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पर रोक लगाने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस सर्वे से किसी को नुकसान नहीं होगा। साथ ही कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। एक तरह से हिंदू पक्ष की जीत माना जा रहा है। क्योंकि इस एएसआई के सर्वे से ही 350 पुरानी ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास सामने आएगा।

कोर्ट का फैसला आने के बाद साफ हो गया है कि अब ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे होगा। कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम पक्ष को करारा झटका लगा है। वहीं मुस्लिम पक्ष अब इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि मुस्लिम पक्ष इस आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने पर विचार करेगा। AIMPLB सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि अब इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट जाया जाए कि ना जाया जाए, इस बारे में ज्ञानवापी मस्जिद की लीगल कमेटी तय करेगी।

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने उच्च न्यायालय के फैसले का हृदय से स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है ASI सर्वे के जरिये सच्चाई सामने आएगी। राम जन्मभूमि की तरह ज्ञानवापी विवाद का भी निस्तारण होगा। केशव ने कहा कि सर्वे के माध्यम से मुगल आक्रमणकारियों ने जो मंदिर विध्वंस किया था और उसको छिपाया गया था उसका सच बाहर आएगा।

इसके अलावा समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. एस टी हसन ने कहा कि अदालत ने जो फैसला दिया उससे माना होगा। सर्वे के दौरान उस स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे। जो भी सर्वे का फैसला होगा वह हम मानेंगे लेकिन यह फैसला सभी पक्षों को मानना होगा। हमारे देश को आज सांप्रदायिक सौहार्द्र और राष्ट्रीय एकीकरण की बहुत जरूरत है। हम में से किसी को भी ऐसे बयान नहीं देने चाहिए जिससे फासले बढ़ें। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि मंदिर हो या मस्जिद, वह सबका एक ही है। आप उसे मंदिर में देखें या मस्जिद में, कुछ फर्क नहीं है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने गुरुवार को कहा कि ज्ञानवापी को लेकर न्यायालय के निर्णय का स्वागत है। इसे सभी को मानना चाहिए। सर्वे में सच सामने आएगा। ज्ञानवापी को देखकर सच्चाई दिखती हैं। करोड़ो लोगों की आस्था है। देश के करोड़ों लोगों की आस्था को न्याय मिलेगा। न्याय व्यवस्था के प्रति आदर व सम्मान है। मुस्लिम पक्ष के उच्च न्यायालय जाने की बात पर कहा कि लोकतंत्र है। इस दौरान उन्‍होंने कहा क‍ि मथुरा मुद्दा भी बरकरार रहेगा।

उत्तर प्रदेश के मथुरा से सांसद हेमा मालिनी ने ज्ञानवापी सर्वे को लेकर आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इस फैसले के आधार पर मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मुद्दे पर भी निशाना साधा है। अभिनेत्री से सांसद बनी हेमा मालिनी ने कहा है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस में भी सर्वे को इजाजत दी जानी चाहिए। कोर्ट के जरिए ही इन विवादित मसलों का हल निकाला जाना चाहिए। हेमा मालिनी के बयान पर अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर भी बहस तेज होगी। अभी ज्ञानवापी का मुद्दा प्रदेश में गरमाया हुआ है।

वाराणासी जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने कहा कि कल से ज्ञानवापी में एएसआई का सर्वे शुरू होगा। डीएम ने कहा कि जिला व पुलिस प्रशासन अपनी तरफ से पूरी तैयार कर ली है। एएसआई आज रात तक आने की संभावना है, कल ही कोर्ट में एएसआई को रिपोर्ट सौंपनी है।

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ था। याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमा दाखिल होने के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल कानून बना दिया। ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।

अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था। लेकिन ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी। उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा। इसी आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। 2021 में वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी। आदेश में एक कमीशन नियुक्त किया गया और इस कमीशन को 6 और 7 मई को दोनों पक्षों की मौजूदगी में श्रृंगार गौरी की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए। 10 मई तक अदालत ने इसे लेकर पूरी जानकारी मांगी थी।

छह मई को पहले दिन का ही सर्वे हो पाया था, लेकिन सात मई को मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध शुरू कर दिया। मामला कोर्ट पहुंचा। 12 मई को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने कमिश्नर को बदलने की मांग खारिज कर दी और 17 मई तक सर्वे का काम पूरा करवाकर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जहां, ताले लगे हैं, वहां ताला तुड़वा दीजिए। अगर कोई बाधा उत्पन्न करने की कोशिश करता है तो उसपर कानूनी कार्रवाई करिए, लेकिन सर्वे का काम हर हालत में पूरा होना चाहिए। 14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने से इनकार करते हुए कहा था कि हम बिना कागजात देखे आदेश जारी नहीं कर सकते हैं। अब मामले में 17 मई को सुनवाई होगी। 14 मई से ही ज्ञानवापी के सर्वे का काम दोबारा शुरू हुआ। सभी बंद कमरों से लेकर कुएं तक की जांच हुई। इस पूरे प्रक्रिया की वीडियो और फोटोग्राफी भी हुई।

16 मई को सर्वे का काम पूरा हुआ। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि कुएं से बाबा मिल गए हैं। इसके अलावा हिंदू स्थल होने के कई साक्ष्य मिले। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सर्वे के दौरान कुछ नहीं मिला। हिंदू पक्ष ने इसके वैज्ञानिक सर्वे की मांग की। मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया। 21 जुलाई 2023 को जिला अदालत ने हिंदू पक्ष की मांग को मंजूरी देते हुए ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दे दिया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने हाईकोर्ट जाने के लिए कहा। इस मामले में 3 अगस्त 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने की अनुमति दे दी।

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