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क्या पायलट का यह रुख, उनका भविष्य तय करेगा

[Edited By: Rajendra]

Monday, 10th April , 2023 02:11 pm

पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने प्लानिंग के साथ गहलोत सरकार के खिलाफ जयपुर में 11 अप्रैल को अनशन की घोषणा की है। गहलोत-वसुंधरा गठजोड़ के सवाल खड़े कर पायलट विधानसभा चुनाव से पहले पब्लिक सिम्पैथी जुटाना और पार्टी हाईकमान से बारगेनिंग करना चाहते हैं।

राजस्थान में विधानसभा चुनाव इसी वर्ष है। कांग्रेस पार्टी को राजस्थान का 'रिवाज' बदले की उम्मीद है। वो प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने की पूरजोर कोशिश कर रही है। लेकिन प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार की इन तमाम कोशिशों पर पार्टी के भीतर का विरोध भारी पड़ रहा है। पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच अदावत रविवार को अब नए रूप में सामने आई है। दोनों के बीच का द्वंद्व अब सार्वजनिक हो चुका है। पायलट मंगलवार को गहलोत सरकार के खिलाफ जयपुर में अनशन पर बैठने वाले हैं। जुलाई 2020 के बाद पायलट की प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ इस 'बगावत' ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। पार्टी ने हाल ही घोषणा की थी कि वो आगामी विधानसभा चुनाव गहलोत के चेहरे पर लड़ेगी। जनता को समर्पित योजनाओं के आधार पर पार्टी चुनावी मैदान में उतरेगी। लेकिन पायलट के बगावती तेवर, और पार्टी के भीतर गहलोत की खिलाफत से जनता के बीच साख खराब होने का डर सताने लगा है।

सचिन पायलट की ओर से अशोक गहलोत सरकार पर किए हमले के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा का बयान भी सामने आया है। रंधावा ने पायलट के इस बगवाती कदम को 'उचिन नहीं' करार दिया है। उन्होंने पायलट के आरोपों को खारिज करते हुए यह भी कहा कि उन्होंने उनके सामने कभी भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि पायलट को सार्वजनिक तौर पर इस तरह बात रखने से पहले उनके समक्ष इस मुद्दे को उठाना चाहिए था। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दिनों में पायलट के साथ उनकी 20 से अधिक बैठकें हुए हैं। लेकिन उन्होंने एकबार भी इसका जिक्र नहीं किया। बता दें कि रंधावा को पिछले साल दिसंबर में प्रभारी बनकर राजस्थान आए थे।

राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और पीसीसी चीफ रहे सचिन पायलट ने 11 अप्रैल को जयपुर के शहीद स्मारक पर अपनी ही कांग्रेस पार्टी की गहलोत सरकार के खिलाफ अनशन की तैयारी तेज़ कर दी है। पायलट सुबह 11 बजे से धरना स्थल पर पहुंचकर अनशन पर बैठेंगे। समर्थित नेताओं-कार्यकर्ताओं को सुबह 10 बजे से 4 बजे तक अनशन पर आने को कहा गया है। पायलट ने अपने खेमे के चुनिंदा नेताओं को भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी सौंपी है। अनशन में कई विधायक और जयपुर, दौसा, टोंक,अजमेर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, झुंझुनूं क्षेत्रों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बड़ी संख्या में शामिल होने की सम्भाना है। पायलट ने अनशन अनशन को लेकर विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा, वेद प्रकाश सोलंकी, जीआर खटाना, इंद्रराज गुर्जर, राजेंद्र गुढ़ा, पीआर मीणा, इंदिरा मीणा समेत अपने कई समर्थक नेताओं से बातचीत की है।

सचिन पायलट के प्रेस वार्ता बुलाने, पिछली बीजेपी सरकार के वक्त सीएम गहलोत के बयानों के वीडियो दिखाने और 11 अप्रैल को अनशन करने की घोषणा को सोची समझी रणनीति माना जा रहा है। सचिन पायलट भी मंझे हुए युवा राजनेता हैं। सूत्र बताते हैं आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने पायलट को राजस्थान में आप पार्टी जॉइन करने पर 2023 में सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट करने का ऑफर दिया है। दूसरी ओर आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल और बीजेपी सांसद डॉ किरोडी लाल मीणा भी सचिन पायलट को कांग्रेस छोड़कर नया झंडा थामने की बात कह चुके हैं। पायलट का क्या रुख रहेगा यह तो भविष्य तय करेगा, लेकिन माना यह जा रहा है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव से 7 महीने पहले सचिन पायलट आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं। वह पब्लिक सिंपैथी लेने और नैरेटिव सेट करने में जुटे हैं।सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि पायलट खुद इस इंतजार में हैं कि कांग्रेस हाईकमान या तो उनकी बातों को मानते हुए राजस्थान में पायलट को फ्री हैंड दे और सीएम चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करे या फिर पार्टी खुद उनके खिलाफ कोई एक्शन ले। ऐसा होने पर पब्लिक सिंपैथी पायलट के पक्ष में चली जाएगी। दूसरी ओर ऐसा घटनाक्रम होने पर बीजेपी से भी सचिन पायलट के पास फिर से कोई बड़ा ऑफर आ सकता है ।जैसा सियासी संकट के दौरान राजस्थान में हुआ था और जिस तरह के आरोप सीएम अशोक गहलोत लगाते रहे हैं। लेकिन इससे पब्लिक में यह मैसेज आएगा कि पार्टी ने पायलट पर एक्शन किया तो उन्हें बड़ा कदम उठाना पड़ा शायद यही वह कारण है कि पायलट के खिलाफ कांग्रेस पार्टी भी बड़ा एक्शन लेने से अब तक कतरा रही है।

पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत की लड़ाई जगजाहिर है। यह लड़ाई तब की है जब कांग्रेस पार्टी विपक्ष में थी और सचिन पायलट पीसीसी चीफ थे। तभी से गहलोत-पायलट खेमे पार्टी में बन गए थे। गहलोत तब पूर्व मुख्यमंत्री के नाते मीडिया को संबोधित कर सवाल खड़े करते रहते थे कि पीसीसी चीफ को कुछ चाटुकार गुमराह कर देते हैं कि सीएम वही बनेंगे। कांग्रेस में परिपाटी रही है कि चुनाव के बाद पार्टी हाईकमान और विधायक दल ही मिलकर सीएम तय करते हैं। चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई, लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका, 99 पर विधायकों की संख्या अटक गई। राजस्थान विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायक चाहिए होते हैं। गहलोत की जादूगरी चली और उन्होंने पार्टी हाईकमान को विश्वास में लेकर बहुमत से कहीं ज्यादा विधायक जुटा लिए। गहलोत को पार्टी हाईकमान ने दिल्ली से सीएम तय करके भेजा तो पायलट समर्थकों की ओर से विरोध शुरू हो गया, जो अब तक जारी है। जुलाई 2020 में सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायकों ने गहलोत सरकार के खिलाफ खुलकर बगावत कर दी और मानेसर रिसोर्ट में जाकर बैठ गए थे। जिसके चलते सचिन पायलट और उनके खेमे के मंत्रियों को अपनी कुर्सियां गंवानी पड़ी थीं। गहलोत ने तब सार्वजनिक रूप से सचिन पायलट को नालायक, नाकारा, निकम्मा, गद्दार जैसी ना जाने क्या-क्या उपाधियां दे दीं। उन पर बीजेपी से मिलीभगत कर चुनी हुई अपनी ही कांग्रेस पार्टी की सरकार को गिराने के आरोप लगाए गए। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को भी सीएम गहलोत और कांग्रेस सरकार ने केस में घसीट रखा है। 2020 के बगावती घटनाक्रम के बाद कांग्रेस आलाकमान ने हस्तक्षेप कर गहलोत-पायलट में समझौता कराया और पायलट खेमे के कुछ नेताओं को गहलोत मंत्रिमंडल में जगह दी गई, लेकिन पायलट डिप्टी सीएम नहीं बने। गहलोत-पायलट का शीतयुद्ध जुलाई 2020 से खुलकर सामने आई थी, लेकिन इस विवाद में कांग्रेस के 2 प्रभारी अविनाश पाण्डेय और अजय माकन बदल गए। इस बीच राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल समेत कई नेताओं ने राजीनामा कराने की कोशिश की, लेकिन सभी फेल रहे। राहुल गांधी ने भी सभाओं में गहलोत-पायलट दोनों के हाथ उठाकर एकजुटता के मैसेज देने की भरपूर कोशिश की। भारत जोड़ो यात्रा और गुजरात-हिमाचल विधानसभा चुनाव में गहलोत-पायलट को स्टार कैम्पेनर बनाकर भेजा गया। हिमाचल में कांग्रेस की जीत और गुजरात में हार के बाद पायलट खेमे में फिर से उम्मीद जागी कि पायलट को पार्टी ईनाम देगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। तीसरे प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी इस विवाद को अब तक नहीं सुलझ पाए हैं। सचिन पायलट इसीलिए अब गहलोत की फाइनल घेराबंदी में जुट गए हैं।

सचिन पायलट और उनके खेमे के कांग्रेसी विधायक और नेता चाहते हैं कि अनुशासनहीनता के आरोपी नेताओं पर कार्रवाई की जाए। जब 25 सितम्बर 2022 में सचिन पायलट को सीएम बनाने की तैयारी थी और कांग्रेस विधायक दल की बैठक सीएम निवास पर बुलाई गई। मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकान को प्रभारी बनाकर जयपुर भेजा गया। तो गहलोत खेमे के विधायकों ने पैरेलल बैठक मंत्री शांति धारीवाल के जयपुर में सरकारी आवास पर बुलाई थी। 80 से ज्यादा विधायकों ने सीएम निवास पर विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर दिया था। गहलोत ने पूरे घटनाक्रम से खुदको अंजान बताया। गहलोत खेमे के विधायकों को भनक लग गई थी कि सीएम पर फैसला पार्टी हाईकमान पर छोड़ने का प्रस्ताव पास करवाकर पायलट को सीएम बनाने की तैयारी है। इसलिए पैरेलल बैठक के बाद विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी के निवास पहुंचकर कांग्रेस विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे भी दे दिए थे। जिस पर बाद में बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाकर केस भी किया। पायलट खेमे की सबसे बड़ी मांग अनुशासहीनता के आरोपी 2 मंत्री और एक नेता के खिलाफ कार्रवाई है। जिसमें मंत्री महेश जोशी, शांति धारीवाल और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ शामिल हैं। इस पूरे प्रकरण में ऑब्जर्वर ने मंत्री शांति धारीवाल और महेश जोशी के अलावा मुख्यमंत्री गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ को आरोपी बनाया। लेकिन रिपोर्ट पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे पायलट गुट में भारी नाराजगी है।

सचिन पायलट की शुरू से राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है कि उन्हें प्रदेश में मुख्यमंत्री बनाया जाए। विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला जाए यह पायलट खेमा चाहता है। पंजाब की तरह राजस्थान में भी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने की मांग पायलट गुट लगातार कर रहा है। 25 सितंबर 2022 की विधायक दल की मीटिंग कैंसिल होने के बाद कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि जल्द ही फिर एक मीटिंग आयोजित की जाएगी, लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में चली गई। इतना ही नहीं पिछले दिनों एआईसीसी ने गहलोत को मारियो बता दिया। गहलोत के नेतृत्व में फिर से राजस्थान में कांग्रेस सरकार रिपीट करने की तैयारियां शुरू कर दीं। जिससे पायलट खेमा भड़का हुआ है। पायलट गुट का तर्क है कि मुख्यमंत्री अगर जल्द नहीं बदला गया, तो राजस्थान में रिवाज के मुताबिक कांग्रेस की हार होगी। क्योंकि राजस्थान में पिछले 30 सालों से एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार आने का ट्रेंड है। पायलट और उनके खेमे के नेता कहते आए हैं कि तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते सचिन पायलट नेतृत्व में राजस्थान में संगठन की मेहनत से कांग्रेस सरकार बनी। युवाओं में भी पायलट का जबरदस्त क्रेज है। इसलिए उन्हें सीएम फेस घोषित किया जाए।

मौजूदा कांग्रेस सरकार सियासी जोड़-तोड़ और निर्दलीयों के समर्थन से बनी है। क्योंकि चुनाव के बाद कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं था।यह बहुमत जुटाने में सीएम गहलोत
कामयाब रहे थे। 6 बसपा विधायकों का कांग्रेस में विलय कराने , 13 निर्दलीय विधायकों को साधकर साथ लेने, यहां तक कि वसुंधरा खेमे के कुछ विधायकों को राजस्थान से बाहर
जाने से रोककर खने में गहलोत की रणनीति ने काम किया। इसलिए कांग्रेस आलाकमान ने अपने विश्वस्त गहलोत पर तीसरी बार भरोसा करते हुए उन्हें सीएम बनाया और सचिन
पायलट को डिप्टी सीएम की कुर्सी दी थी। लेकिन पायलट ने बड़े उलटफेर और तख्तापलट की कोशिशों में उस कुर्सी को भी गंवा दिया। पायलट के दो मित्र जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में चले गए थे, तो कांग्रेस में यह मैसेज भी हाईकमान तक चला गया कि पायलट भी बीजेपी में जा सकते हैं। इसलिए भी पार्टी हाईकमान ने पायलट पर ज्यादा भरोसा नहीं किया। क्योंकि पायलट को यह भरोसा देकर कांग्रेस पार्टी ने साथ जोड़े रखा कि उनके उठाए मुद्दों पर एक्शन होगा। लेकिन पायलट को वह एक्शन होता नहीं दिख रहा और अब चुनाव सिर पर आ रहे हैं। इसलिए सचिन पायलट कांग्रेस सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। वह हाईकमान को भी प्रेशर में लेकर और बारगेनिंग कर ज्यादा से ज्यादा अपने मुद्दे मनवाना चाहते हैं।

सचिन पायलट की प्रेस कांफ्रेंस गहलोत सरकार पर ही नहीं वसुंधरा राजे पर भी सीधा अटैक है। वसुंधरा के पिछले बीजेपी सरकार के शासनकाल में घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग को लेकर ही पायलट कांग्रेस सरकार को घेर रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चाएं हैं कि पायलट की प्रेसवार्ता के पीछे कुछ भाजपा के ऐसे लोग भी शामिल हो सकते हैं, जो पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को अबकी बार सीएम फेस की दौड़ और प्रोजेक्शन से बाहर करना चाहते हैं। पायलट की इस प्रेसवार्ता की खबर बीजेपी हाईकमान तक भी पहुंची है। बीजेपी हाईकमान भी पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। हालांकि बीजेपी ने पहले ही साफ कर रखा है कि पीएम मोदी के फेस पर ही वह विधानसभा चुनाव में उतरेगी, सीएम चुनाव के बाद तय किया जाएगा।


क्या पायलट का यह रुख, उनका भविष्य तय करेगा

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