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बलूचिस्तान के विरोधियों के मन में जिन्नाह के लिए नफरत क्यों?

[Edited By: Arshi]

Tuesday, 28th September , 2021 03:36 pm

दुनिया को बार-बार मुसीबतों में घेरने वाला और आतंकियों का गड़ पाकिस्तान रो रहा है. पाकिस्‍तान के लिए कल का दिन यानी 27 सितंबर काला दिवस साबित हुआ. पाकिस्‍तान के बलूचिस्‍तान प्रांत के तटीय शहर ग्वादर में बलोच विद्रोहियों ने देश के संस्थापक और कायद-ए-आजम कहलाए जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना की एक प्रतिमा को बम धमाके में उड़ा दिया. इस विस्फोट में जिन्‍ना की प्रतिमा पूरी तरह से नष्ट हो गई. जिन्‍ना से बलूचिस्‍तान के विद्रोही नफरत करते हैं और उनका कड़ा विरोध करते हैं यही कारण है कि इससे पहले जिन्‍ना के घर को भी बलूचों ने बम से उड़ा दिया था.

मोहम्‍मद अली जिन्‍ना की मूर्ति पर हमला एक तरह से उनके 'पाकिस्‍तान' के सपने पर हमले की तरह से है. जिन्‍ना ने सत्‍ता में आने के लिए दो राष्‍ट्रों का सिद्धांत दिया और भारत से आजादी की मांगी. यही नहीं जिस जिन्‍ना ने पाकिस्‍तान को सफल इस्‍लामिक राष्‍ट्र बनाने का सपना देखा था, वही उनकी मूर्ति को बम से उड़ा रहा है. नफरत पर आधारित पाकिस्‍तान अब खुद अपने संस्‍थापक का ही दुश्‍मन बन गया है. प्रतिबंधित विद्रोही संगठन बलोच रिपब्लिकन आर्मी के प्रवक्ता बबगर बलोच ने इस हमले की जिम्‍मेदारी ली. बलूचिस्तान के पूर्व गृह मंत्री और मौजूदा सीनेटर सरफराज बुगती ने ट्वीट किया, 'ग्वादर में कायद-ए-आजम की प्रतिमा को गिराना पाकिस्तान की विचारधारा पर हमला है. मैं अधिकारियों से अपराधियों को उसी तरह से दंडित करने का अनुरोध करता हूं जैसे हमने जियारत में कायद-ए-आजम निवास पर हमला करने वालों को किया था.'

साल 2013 में, बलूच विद्रोहियों ने जियारत में 121 साल पुरानी इमारत में विस्फोट कर दिया था, जिसमें कभी जिन्ना रहा करते थे और उनकी मौत के बाद इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया. तपेदिक से पीड़ित होने के बाद जिन्ना ने अपने जीवन के अंतिम दिन वहीं बिताए थे.

मोहम्‍मद अली जिन्ना वर्ष 1913 से लेकर 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की स्थापना तक ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के नेता रहे. इसके बाद साल 1948 में निधन होने तक जिन्‍ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल रहे. 23 मार्च 1940 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया . इसी लाहौर प्रस्ताव के आधार पर मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश स्थापित करने के लिए आंदोलन शुरू किया. कहा जाता है कि 1947 को भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की पटकथा भी इसी दिन लिखी गई थी.


भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को एक साथ आजादी मिली थी. आज एक देश चांद और मंगल ग्रह तक अपनी पहुंच बना लिया है, वहीं दूसरा देश कंगाल होने की राह पर आगे बढ़ रहा है. यही नहीं जिस पाकिस्‍तान के लिए जिन्‍ना ने भारत का बंटवारा कराया, वही अब उनकी पहचान को मिटाने में लग गया. पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश पॉलिटिकल साइंटिस्ट इश्तियाक अहमद ने जिन्‍ना पर लिखी अपनी किताब में पिछले दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान का बंटवारा करने के पीछे मोहम्मद अली जिन्ना की जिद थी. इश्तियाक ने अपनी किताब 'Jinnah: His Successes, Failures and Role in History' में कहा है कि महात्मा गांधी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत को एकजुट रखने की बहुत कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के कायदे-आजम जिन्ना बंटवारे पर अड़े थे.  उन्होंने कहा, 'जिन्ना ने कांग्रेस को हिंदू पार्टी और गांधी को 'हिंदू और तानाशाह' करार देने के लिए हमले का कोई मौका नहीं गंवाया.' इश्तियाक ने कहा है, 'मैंने दिखाया है कि जिन्ना ने जब 22 मार्च, 1940 में लाहौर में अपना प्रेसिडेंशल संबोधन दिया और फिर 23 मार्च को रेजॉलूशन पास कराया, उसके बाद जिन्ना या मुस्लिम लीग ने एक बार भी संयुक्त भारत को स्वीकार करने की इच्छा जाहिर नहीं की जबकि फेडरल सिस्टम ढीला था और ज्यादातर ताकतें प्रांतों में थीं.'

इश्तियाक के दावे के बाद पाकिस्तानी-अमेरिकी इतिहासकार आयेशा जलाल की थिओरी को चुनौती मिल रही है. प्रफेसर जलाल की थिअरी के आधार पर 1980 से यह माना जाता रहा है कि जिन्ना ने कांग्रेस के साथ पावर-शेयरिंग समझौते के लिए अपनी भूमिका निभाई थी. इश्तियाक ने इसके उलट दावा किया है, 'जिन्ना के ऐसे अनहगिनत भाषण, बयान और संदेश हैं जिनमें वह पाकिस्तान बनाने के लिए भारत के बंटवारे की बात कर रहे हैं।' उन्होंने इस बात को भी सही बताया है कि ब्रिटेन बंटवारे के लिए इसलिए तैयार हुआ क्योंकि उसे पता था कि कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त भारत ब्रिटेन के एजेंडा को पूरा नहीं करेगा लेकिन मुस्लिम लीग के नेतृत्व में पाकिस्तान से उसे फायदा होगा.

इश्तियाक ने कहा है कि 1937 के बाद जिन्ना मुस्लिम राष्ट्रवादी हो गए थे जो हिंदू और मुस्लिमों को अलग-अलग राजनीतिक देश तो मानते ही थे, उनका मानना था कि दोनों कभी साथ नहीं आ सकते हैं. यहां तक कि लखनऊ में 1936 में नेहरू के जमींदारी खत्म करने के भाषण से मुस्लिम जमींदारों को झटका लगा. जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के नेताओं को सरकार में शामिल करने से इनकार कर दिया तो जिन्ना ने इसके जरिए भी मुस्लिमों को साधने की कोशिश की.

पाकिस्तान बनने के बाद जिन्ना के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गईं. मुस्लिमों के अंदर भी कई समुदाय थे जिन्हें लेकर विवाद होने लगा. 1950 में अहमदियों को लेकर पैदा हुए विवाद ने 1974 में उन्हें गैर-मुस्लिम करार दिया. शिया-सुन्नी विवाद जनरल जिया उल-हक के शासन में पैदा हो गया. मुस्लिमों के नेतृत्व के लिए ईरान और सऊदी अरब के अयातोल्लाह ने ईरान को चुनौती दे डाली. इससे शिया और सुन्नियों के बीच कट्टरवाद पैदा होने लगा.

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