Trending News

कहां गया स्वच्छ भारत अभियान प्रदूषण के मामले में भारत चरम पर

[Edited By: Vijay]

Saturday, 5th June , 2021 01:12 pm

ये सिर्फ पर्यावरण दिन का मुद्दा नहीं बल्कि भारत दुनिया में कचरा पैदा करने वाला सबसे बड़ा देश है. भारत में हर साल करोड़ों टन सॉलिड वेस्ट पैदा होता है पर इसका महज़ 60 फीसदी ही निस्तारित कर होता है. कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण कचरे को इकट्ठा करने, उसे छांटने-बीनने और रिसाइकल करने की व्यवस्था भी ढीली हो गई है. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान कचरा निस्तारण में 25 प्रतिशत की कमी आई थी वहीं इस साल भी लॉकडाउन के दूसरे चरण में 15-20 फीसदी काम पर असर हुआ. कोरोना काल में हर अस्पताल और कोविड केयर केंद्रों से निकल रहा मेडिकल कचरा तो पूरे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहा है. ज्यादातर अस्पतालों के पास बायोमेडिकल वेस्ट के निपटारे की व्यवस्था ही नहीं है. लीडिंग फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग समाधान कंपनी, टेट्रापैक के सस्टेनेबिलिटी डायरेक्टर जयदीप गोखले का कहना है कि कचरा इकट्ठा करने में अव्यवस्थित क्षेत्र के दैनिक मजदूर सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं.

लॉकडाउन के कारण काफी दैनिक मजदूर पलायन कर गए. इलेक्ट्रानिक, प्लास्टिक या टेट्रा पैक बीनने-छांटने का काम भी मुश्किल हुआ है. रिसाइकलिंग में काम वालों की भी कमी है. शहर के अंदर या बाहर कूड़े के परिवहन या उसको रिसाइकलर तक पहुंचाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. इस काम को आवश्यक सेवाओं में शामिल ही नहीं किया गया.भारत में 1.50 से 1.70 लाख टन कचरा रोज निकलता है, जो जल, वायु और धरती पर प्रदूषण का कारण बन रहा है. इसमें 25 फीसदी का ही निस्तारण हो पाता है, 60 फीसदी ही लैंड फिल साइट तक पहुंचता है वहीं बाकी इधर-उधर ही पड़े रहकर पर्यावरण को नुक्सान पहुँचा रहा है.

भारत में 75 फीसदी से ज्यादा कचरा खुले में डंप किया जाता है. वहीं वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में करीब 30 लाख टन कचरा पैदा होता है, जो मुंबई, बेंगलुरु,हैदराबाद जैसे शहरों की तुलना में कई गुना ज़्यादा है. लेकिन इन शहरों में इलेक्ट्रानिक, प्लास्टिक, टेट्रा पैक जैसे कचरों को अलग-अलग करने और सही ढंग से रिसाइकलिंग की व्यवस्था नहीं है. इन शहरों में लैंड फिल साइट भर चुकी हैं. प्लास्टिक या कचरे को कई जगहों पर जलाया जाता है. किसी भी जगह नई लैंड फिल साइट का लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के कोविड वेस्ट ट्रैकिंग सिस्टम के मुताबिक, जून 2020 से मई 2021 के बीच 50 हजार मीट्रिक टन बायो मेडिकल वेस्ट पैदा हुआ जिसे पिछले साल के मुकाबले कई गुना ज़्यादा आंका गया. प्रतिदिन औसतन यह 140 मीट्रिक टन रहा है, जो पिछले साल से कई गुना रहा.

                            

                    

 

10 मई 2021 को मेडिकल कचरे का उत्पादन 250 मीट्रिक टन तक पहुंच गया.

टेट्रा पैक कार्टन का 75 फीसदी पेपर बोर्ड होता है जबकी बाकी 20 फीसदी पॉलिथिन और 5 फीसदी एल्युमिनियम होता है. लाइफ साइकल एनालिसिस के आधार पर समझे तो पेपर कार्टन का कार्बन फुटप्रिंट या कार्बन वीर्यपात सबसे कम है. इनके निर्माण में  प्रदूषण न के बराबर है. पेट बोटल, प्लास्टिक का भी 60-70 फीसदी तक रिसाइकल होता है. इसका एक बड़ा कारण ईपीआर एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर्स रिस्पांसबिलिटी कानून है, जो ऐसे वेस्ट मैटिरयल का उत्पादन करने वालों पर ही रिसाइकलिंग की जिम्मेदारी डालता है. भारत में भी नेशनल आपीआर फ्रेमवर्क प्रस्तावित तो है, लेकिन जारी नहीं हुआ. लेकिन ये स्वैच्छिक है, जबकि यूरोपीय देशों में उल्लंघन करने पर पेनाल्टी या लाइसेंस रद्द हो सकता है.

Latest News

World News