जब होली की बात होती है तो मथुरा और वृंदावन की होली, होलिका दहन से पहले शुरू हो जाती है और होलिका दहन के दो से तीन दिन बाद समाप्त हो जाती है वैसे तो इसका पौराणिक महत्व है लेकिन हमारे देश मे एक शहर ऐसा भी है जहां होली का ऐतिहासिक महत्व भी है वो है कानपुर…

कानपुर का गंगा मेला ऐतिहासिक है, गंगा मेले की परंपरा करीब 250 साल पुरानी है। अब आप सोच रहे होंगे कि गंगा मेला की शुरुआत कैसे हुई तो इसके पीछे एक जबरदस्त कहानी है. इस होली की शुरुआत 1942 में हुई थी. तब से लगातार कानपुर शहर में होली 7 दिनों तक मनाई जाती है. यहां गांव-गांव से लोग इकट्ठा होकर गंगा के तट पर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर क्रांति की होली मनाते हैं.
कहा जाता है कि गंगा मेला आजादी के लिए बलिदान हुए सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मनाया जाता है। बात 1942 की है जब अंग्रेजी ब्रिटिश सरकार का राज था और कानपुर स्थित हटिया बाजार के कुछ युवा होली खेलना चाहते थे. उस समय के डीएम मि. लुईस ने इस पर रोक लगा दी. उन्होंने आदेश दिया कि कोई भी होली नहीं खेलेगा तब हटिया के लोगों ने इसका विरोध करते हुए फैसला लिया की वह अपने धार्मिक त्यौहार को पूरे उत्साह से मनाएंगे। जैसे ही उन्होंने रंग खेलना शुरू किया, पुलिस आ गई और कई युवाओं को गिरफ्तार कर लिया. इससे पूरे शहर में गुस्सा भड़क गया. गिरफ्तारी पर शहर में प्रदर्शन शुरू हुआ
प्रदर्शन से परेशान होकर अंत में अंग्रेज को हारकर अपना फैसला बदलना पड़ा और गिरफ्तार लोगो को छोड़ना पड़ा, इसी खुशी में ग्रामीणों ने रंग और गुलाल से हां होली खेलने की शुरुआत की, जिस दिन उन लोगों को छोड़ा गया उस दिन, अनुराधा नक्षत्र की दिन था, जिसकी वजह से अब हर साल अनुराधा नक्षत्र के दिन ही गंगा मेला मनाया जाता है. इस साल गंगा मेला की 84 वर्षगांठ मनाई जाएगी.