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तालिबान अफगानिस्तान में क्या बदलाव लाया ?

[Edited By: Arshi]

Thursday, 19th August , 2021 02:26 pm

 

अफगानिस्तान में आखिरकार तालिबान का राज स्थापित हुआ. तालिबानी राज के अंतर्गत महिलाओं के हक का हनन और कई ज़ुल्म आम जनता पर हो रहे हैं. जबसे तालिबान अफगानिस्तान पर काबिज़ हुआ लोग वहां से पलायन करने पर मजबूर हैं. कई लोग एयरपोर्ट के रास्ते भागते नज़र आए तो कई को जब जाने का मौका नहीं मिला तो वह प्लेन पर लटक कर वहां से भागने का प्रयास करने लगे जिसमें कई लोगों की जान भी गई.

काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर तालिबान लड़ाके मौजूद हैं. यहां कुछ दिनों पहले अफ़ग़ानिस्तान से बाहर जाने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए थे. उसके बाद भगदड़ मच गई और गोलियां चलने की बात भी सामने आई थी. कुछ लोगों के विमान के पहियों से लटकने का वीडियो भी सामने आया था.

तालिबान के सत्ता में आने से महिलाओं के अधिकारों को लेकर चिंता जताई जा रही है. इस चिंता को और बढ़ाने वाली तस्वीरें भी सामने आईं जब तालिबान चरमपंथियों ने दुकानों पर लगी महिलओं की तस्वीरों पर काला रंग कर दिया.अफ़ग़ानिस्तान के हेरात शहर में तालिबान लड़ाकों ने अपना झंडा फहराया वहीं राजधानी काबुल के कोटे सांगी इलाक़े में बाज़ार में पिक-अप ट्रक पर तालिबानी लड़ाके घूमते नज़र आए.

अफ़ग़ानिस्तान में लोग देश से बाहर निकलने के लिए दूतावासों की मदद मांग रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान में लोग तालिबान की सत्ता को लेकर डरे हुए हैं. वो देश छोड़कर किसी सुरक्षित जगह जाना चाहते हैं.इस समय अफ़ग़ानिस्तान में लोग किसी भी तरह देश से बाहर निकलना चाहते हैं. हवाई जहाज तक पहुंचने की कोशिश में काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की दीवार लांघने से भी लोग नहीं रूके. वहीं दूसरी ओर अमेरिका का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी नागरिकों की वापसी तक उसके सैनिक वहां मौजूद रहेंगे. काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अमेरिकी सैनिक तैनात हैं.
देश पर अपना नियंत्रण क़ायम कर लेने के बाद बुलाई गई पहली प्रेस वार्ता में, तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि मीडिया और महिलाओं के अधिकारों जैसे मसलों से "इस्लामी क़ानून के ढांचे के तहत" निपटा जाएगा. हालांकि तालिबान ने अभी तक यह नहीं बताया कि व्यवहार में इसके क्या मायने होंगे. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई जिन्हें पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की वक़ालत करने के चलते तालिबान ने 15 साल की उम्र में गोली मार दी थी, उन्होंने चेतावनी दी है कि शरिया क़ानून की तालिबान की व्याख्या अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए घातक हो सकती है.

असल में, पहले जब तालिबान सत्ता में थे, तब महिलाओं को काम करने या शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी. आठ साल की उम्र से लड़कियों को बुर्क़ा पहनना पड़ता था. यही नहीं, महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति तभी थी, जब उनके साथ कोई पुरुष संबंधी होते थे. इन नियमों की अवहेलना करने पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाते थे.

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