30 मार्च से यानि की कल से चैत्र नवरात्र का शुभारंभ होने जा रहा है। नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद ही पावन माना जाता है. कल नवरात्रि का पहला दिन और इस दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है. हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करते हैं. जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है. जौ बोने के साथ-साथ कई लोग अखंड ज्योति भी जलाते हैं. इस साल चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू हो रहे हैं और 06 अप्रैल को खत्म होंगे.
नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है. 30 मार्च के दिन सुबह 6:13 बजे से सुबह 10:22 बजे से, दोपहर 12:01 बजे से 12:50 बजे तक घट स्थापना कर सकते हैं. कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए. सबसे पहले जिस जगह पर कलश रखना है वहां गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें. फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें. कलश में आम का पत्ता रखें और इसे जल या गंगाजल भर दें. साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें. कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें. चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें. इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें. कई लोग कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी करते हैं.
शास्त्रों में चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व बताया गया है। यह त्योहार वसंत ऋतु में आता है और मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित होता है। कहते हैं कि इन पावन दिनों में देवी की उपासना से मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है। इस दौरान मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है।
चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा तो होती ही है। साथ ही साथ, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हिंदू नववर्ष भी प्रारंभ हो जाता है, जिसे हिंदू नव संवत्सर कहा जाता है। चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाने का भी विधान है। इन नौ दिनों में उपवास, ध्यान और भजन-कीर्तन से मन और शरीर की शुद्धि होती है और भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। उदिया तिथि के चलते, चैत्र नवरात्र की शुरुआत 30 मार्च से हो रही है और इसका समापन 6 अप्रैल को होगा। चैत्र नवरात्र की शुरुआत प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना यानी कलश स्थापना के साथ होती है। चैत्र माह की नवरात्र में माता के महागौरी से लेकर कालरात्रि जैसे नौ रुप हैं। ये नौ रुप माता के दस महाविद्या वाले रुपों से अलग हैं। देवी महापुराण में उन दस महाविद्याओं के बारे में बताया गया है। आईए अब आपको बताते हैं माता के नौ स्वरूपों और उऩकी कथाओं के बारे में। हिमालय का एक नाम शैलेंद्र या शैल भी है। शैल मतलब पहाड़, चट्टान। देवी दुर्गा ने पार्वती के रुप में हिमालय के घर जन्म लिया। उनकी मां का नाम था मैना। इसी कारण देवी का पहला नाम पड़ा शैलपुत्री यानी हिमालय की बेटी।