2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनकर साथ में मैदान में उतरी थीं। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दोनों ने अकेले ही चुनावी रण में उतरने का फ़ैसला किया। चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों ने जमकर एक-दूसरे पर तंज़ कसे थे। लेकिन चुनाव नतीजे देखने के बाद, ऐसा लगता है कि दोनों ने अगर एकसाथ चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया होता और दोनों के वोट एक होते, तो एक टीम के तौर पर उन्हें जीत मिल सकती थी। कुल 14 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत का अंतर कांग्रेस को मिले कुल वोटों से कम रहा है। क्या रहा केजरीवाल की हार का समीकरण देखिए न्यूज प्लस की खास रिपोर्ट में।
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70 सीटों वाली दिल्ली में जहां बीजेपी को 48 सीटों के साथ बहुमत मिला वहीं यहां सत्ता में रही आम आदमी पार्टी 22 सीटों में ही सिमट गई। वोट प्रतिशत की बात की जाए तो जहां बीजेपी को 45.56 फ़ीसदी वोट मिले वहीं आम आदमी पार्टी को 43.57 फ़ीसदी वोट मिले। यहां तीसरे खे़मे के रूप में कांग्रेस थी, जो एक भी सीट पर कब्ज़ा करने में नाकाम रही। हालांकि उसका वोट प्रतिशत 6.34 फ़ीसदी रहा। ये 2020 के चुनावों में उसके प्रदर्शन से बेहतर था, तब उसे 4.63 फ़ीसदी वोट मिले थे। इस बार के चुनाव में दिल्ली की कई सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की हार का कारण बनी। इन सीटों पर बीजेपी की जीत का अंतर कांग्रेस के वोटों से कम रहा है।
केजरीवाल की हार में जो 14 सीटें ताबूत की आखिरी कील साबित हुई उनमें सबसे पहली सीट है नई दिल्ली। इस सीट से खुद दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल मैदान मं थे। उन्हें बीजेपी के प्रवेश सिंह वर्मा ने 4,089 वोटों से शिकस्त दी है। केजरीवाल ने 2013 में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को मात देकर इस सीट से जीत हासिल की थी और लगातार तीन बार यहां से विधायक रहे थे। वहीं उन्हें हराने वाले प्रवेश वर्मा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं और दो बार पश्चिमी दिल्ली से सांसद रहे हैं। इस बार इस सीट से कांग्रेस की तरफ़ से शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित मैदान में थे। उन्हें कुल 4,568 वोट मिले जो जीत के अंतर से 479 वोट अधिक हैं।
जंगपुरा विधानसभा सीट की बात की जाए तो इस हाई प्रोफ़ाइल सीट पर आम आदमी पार्टी की तरफ़ से दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया उम्मीदवार थे। उन्हें केवल 675 वोटों से हार मिली। यहां से जीत बीजेपी के तरविन्दर सिंह मारवाह की हुई। इस सीट पर कांग्रेस की बड़ी भूमिका रही। उसके उम्मीदवार फ़रहाद सूरी को 7,350 वोट मिले। मनीष सिसोदिया 2013 से लगातार तीन बार पटपड़गंज सीट से विधायक थे। लेकिन इस चुनाव से पहले उन्होंने अपनी सीट बदल ली थी। 2024 में पार्टी में शामिल हुए अवध ओझा को पटपड़गंज से टिकट दिया गया था, लेकिन आम आदमी पार्टी का ये प्रयोग न तो अवध ओझा के लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ न ही मनीष सिसोदिया के लिए और दोनों ही अपनी सीट गंवा बैठे। बीते तीन बार से जंगपुरा विधानसभा सीट आम आदमी पार्टी के नाम रही है। 2013 में यहां से मनिन्दर सिंह धीर ने जीत हासिल की थी, जबकि 2015 और 2020 में यहां प्रवीण कुमार को जीत मिली। इससे पहले 1998 से लेकर 2008 तक लगातार तीन बार तरविन्दर सिंह मारवाह ने विधायक के रूप में इस सीट का प्रतिविधित्व किया, हालांकि उस वक्त वो कांग्रेस के नेता थे। 2022 में वो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे
बात करें ग्रेटर कैलाश विधानसभा की तो बीजेपी की शिखा रॉय ने यहां बेहद कम मार्जिन से जीत हासिल की है। उन्होंने 3,188 वोटों के अंतर से अपने प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मंत्री सौरभ भारद्वाज को हराया है। इस सीट पर कांग्रेस के गर्वित सिंघवी को कुल 6,711 वोट मिले। ये वोट अगर आम आदमी पार्टी के खाते में जाते तो यहां से सौरभ जीत सकते थे। सौरभ भारद्वाज तीन बार लगातार यहां से विधायक रहे हैं। उससे पहले यानी 2008 में ये सीट बीजेपी के नाम रही थी। यही हाल मालवीय नगर सीट का भी रहा। आम आदमी पार्टी सरकार में मंत्री रहे सोमनाथ भारती इस सीट से हार गए हैं। उन्हें 2,131 वोटों से अंतर से बीजेपी के सतीश उपाध्याय ने मात दी है।
सतीश उपाध्याय साल 2014 और 2016 में दिल्ली बीजेपी प्रदेश प्रमुख रह चुके हैं। इस सीट पर कांग्रेस के जीतेंन्द्र कुमार कोचर को 6,770 वोट मिले है। 2013 में इस सीट से कांग्रेस की विधायक रहीं किरण वालिया को हराकर सोमनाथ भारती ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद वो 2015 और 2020 में भी इस सीट से विधायक रहे।
मादीपुर विधानसभा सीट बीजेपी के नाम रही, यहां से कैलाश गंगवाल को 10,899 वोटों के अंतर से जीत मिली। उन्होंने इस सीट पर आम आदमी पार्टी की राखी बिड़लान को मात दी। वहीं कांग्रेस के जेपी पंवार को 17,958 वोट हासिल हुए। 1998 फिर 2003 और 2008 में लगातार कांग्रेस पार्टी के नाम रही इस सीट पर आम आदमी पार्टी (AAP) का खाता खुला 2013 में. 3 बार इस सीट से पार्टी के गिरीश सोनी को जीत मिली, लेकिन इस बार पार्टी ने यहां से अपना उम्मीदवार बदल कर ‘राखी बिड़लान’ को टिकट दिया था। राखी बिड़लान मंगोलपुरी से तीन बार विधायक रही हैं। पार्टी को इस फ़ैसले का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है और यहाँ पर उसका विजय रथ अब रुक गया है…