मुंशी प्रेमचन्द्र ने एक बार कहा था कि कहानी ने तो तब ही जन्म ले लिया था जब इंसान ने बोलना सीखा था.. मुंशी प्रेमचन्द एक ऐसे लेखक जो कि भूत..भविष्य और वर्तमान देख लेते थे उनकी रचनाओं मे वो झलकता था....भारत के महान लेखक मुंशी प्रेमचन्द की आज जयंती है इस अवसर पर मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हे नमन किया ..
हिंदी साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र, मानव मन के अद्भुत पारखी, महान रचनाकार, अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करने वाले उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) July 31, 2021
साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर उन्हे याद किया
"सत्य की एक चिंगारी असत्य के एक पहाड़ को भस्म कर सकती है।"
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) July 31, 2021
आम आदमी के साहित्याकार मुंशी प्रेमचंद जी की जन्म जयंती पर सादर नमन। pic.twitter.com/pIwd4HKX5A
आज उपन्यास सम्राट और हिंदी के दिग्गज कलमकार मुंशी प्रेमचंद की 140वीं जयंती है. हिंदी साहित्य का ‘माइल स्टोन’ कहे जानेवाले मुंशी प्रेमचंद को शरद चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘उपन्यास सम्राट’ विशेषण से नवाजा था. मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी कहानियों और उपन्यास की एक ऐसी स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की, जिसने पूरी सदी स्वस्थ साहित्य का मार्ग दर्शन किया. जिस युग में प्रेमचंद की लेखिनी चल रही थी, उस समय उनके आगे-पीछे कोई ठोस विरासत नहीं थी, न ही विचार और न ही प्रगतिशीलता का कोई मॉडल उनके सामने था. लेकिन होते-होते उन्होंने ‘गोदान’ जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की जो एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है. हिंदी के दिग्गज साहित्यकार भी मानते हैं कि हिन्दी साहित्य में आज तक प्रेमचंद जैसा कलमकार न कोई हुआ न कभी होगा.
प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई 1880 के दिन वाराणसी के एक गांव के डाक मुंशी अजायब लाल के घर पर हुआ था. उनकी मां आनंदी देवी एक सुघढ़ और सुंदर शख्सियत वाली महिला थीं. उनके दादा जी मुंशी गुरुसहाय लाल पटवारी थे. प्रेमचंद्र का मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. कायस्थ कुल के प्रेमचंद्र का बचपन खेत खलिहानों में बीता था. उन दिनों उनके पास मात्र छः बीघा जमीन थी, परिवार बड़ा होने के कारण उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी.
प्रेमचंद का वास्तविक नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था. वे अपनी ज्यादातर रचनाएं उर्दू में ‘नबावराय’ के नाम से लिखते थे. 1909 में कानपुर के जमाना प्रेस में प्रकाशित उनकी पहली कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ की सभी प्रतियां ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली. भविष्य में ब्रिटिश सरकार की नाराजगी से बचने के लिए ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दया नारायण ने उन्हें सलाह दी कि वे नवाब राय नाम छोड़कर नये उपनाम प्रेमचंद के नाम से लिखें, अंग्रेज सरकार को भनक भी नहीं लगने पायेगी. उन्हें यह नाम पसंद आया और रातों रात नवाब राय प्रेमचंद बन गये. यद्यपि उनके बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यन्त ‘नवाब राव ‘ के नाम से ही सम्बोधित करते रहे.
वणिक प्रेस के मुद्रक महाबीर प्रसाद पोद्दार अकसर प्रेमचंद की रचनाएं बंगला के लोकप्रिय उपन्यासकार शरद बाबू को पढ़ने के लिए दे देते थे. एक दिन महाबीर प्रसाद पोद्दार शरद बाबू से मिलने उनके आवास पर गये. उस समय शरद बाबू प्रेमचंद का कोई उपन्यास पढ़ रहे थे, पोद्दार बाबू ने देखा कि प्रेमचंद के उस उपन्यास के एक पृष्ठ पर शरद बाबू ने प्रेमचंद्र नाम के आगे उपन्यास सम्राट लिख रखा था. बस उसी दिन से प्रेमचंद के नाम के आगे ‘उपन्यास सम्राट’ लिखना शुरू कर दिया.
प्रेमचंद जयंती हिंदी समाज का सांस्कृतिक उत्सव है। मुंशीजी दो भाषाओं को एक साथ जोड़ने वाले महान साहित्यिक सूत्रधार हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों ही साहित्य विधाओं में आधुनिकता और यथार्थ वाद का प्रवर्तन किया। भारतीय जीवन की नियति को निर्धारित करने वाले किसान वर्ग के सबसे बड़े पक्षकार प्रेमचंद एक ऐसा आईना हैं जिसमें न सिर्फ हमारे समाज का अतीत और वर्तमान दिखता है बल्कि भविष्य के संकेत भी छिपे हैं।
यह बातें हिंदी के प्रख्यात लेखक डॉ. अवधेश प्रधान ने शुक्रवार को मुंशी प्रेमचंद लमही एक विरासत विषयक चर्चा के दौरान कहीं। सामाजिक संस्था काशी कला कस्तूरी की ओर से आयोजित चर्चा में डा. शबनम खातून के साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की लमही में पहुंच कर क्लेश होता है। यह सोच कर कलेजा मुंह को आ जाता है कि आखिर हिंदी वाले अपने साहित्यकारों और उनकी साहित्यिक थातियों का सम्मान करना नहीं जानते।
साहित्यकारों के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करना। जयंती-पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर लेना मात्र ही हमारा दायित्व नहीं है। डा. प्रधान ने कहा कि हम लोग बातें खूब करते हैं, भरपूर मालाएं चढ़ाते हैं, बड़े बड़े भवन बनाते हैं लेकिन शोध और अध्ययन की दिशा में कोई पुख्ता कदम नहीं उठाते। बंगाल ने रवींद्रनाथ टैगोर, नजरुल और विद्यासागर जैसे साहित्यकारों की स्मृतियों को सिर पर बैठाया है।
तमिलनाडु ने सुब्रमण्यम भारती तो कर्नाटक ने कोयम्पू की स्मृतियों को ऊंचा स्थान दिया है। उत्तर भारत में ऐसी कोई परंपरा नजर नहीं आती। चर्चा में शामिल रंगकर्मी एएम. हर्ष ने मुंशी प्रेमचंद के लिए दक्षिण भारतीय पाठकों में अपार प्रेम और सम्मान के वृत्तांत सुनाए।
प्रेमचंद ने अपनी अपनी अधिकांश रचनाओं में आम व्यक्ति की भावनाओं, हालातों, उनकी समस्याओं और उनकी संवेदनाओं का बड़ा मार्मिक शब्दांकन किया. वे बहुमुखी प्रतिभावान साहित्यकार थे. वे सफल लेखक, देशभक्त, कुशलवक्ता, जिम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे. उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय, संस्मरण और अनुवाद जैसी तमाम विधाओं में साहित्य की सेवा की, किन्तु मूलतः कथाकार थे. उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की.