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माता रानी के इस मंदिर में रात में रुकना मना है

[Edited By: Vijay]

Monday, 7th December , 2020 01:43 pm

हैरत में पड़ गए ना लेकिन यह सच है। हम आमतौर पर सुनते आए हैं कि भगवान या देवी के मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए जाते है और कई लोग तो अपने परिवार सहित रात-दिन भजन आदि भी किया करते है। लेकिन यह मंदिर ऐसा है जहां रुकना मना है। ऐसी मान्यता है कि यहां रात में रुकने वाले की मौत हो जाएगी।

जी हां हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश में सतना जिले में त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित माँ शारदा के मैहर माता के मंदिर की। त्रिकूट पर्वत पर बने माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। इस मंदिर के बारें में कथा प्रचलित है कि जब मां सती ने अपने पति भगवान शंकर को अपमानित किए जाने पर यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दी। इससे क्रोधित होकर भगवान शंकर ने सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता है कि यहां मां का हार गिरा था।

ये मान्यताएं हैं प्रचलित

इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं लोकप्रिय हैं। इस मंदिर को रोज रात में बंद कर दिया जाता हैए मान्यता है कि इस मंदिर में हर रात आल्हा और उदल नाम के दो चिरंजीवी दर्शन करने आते हैं और उस दौरान अगर कोई व्यक्ति मंदिर में रुकने की कोशिश करता है तो उसकी मौत हो जाती है। क्षेत्रीय लोगों के अनुसार आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की तलाश की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को खुश किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती किया करते थे।

 इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, गौरी-शंकर, शेष नाग, फूलमती माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है। त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से 600 फीट की ऊंचाई पर है।

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