कानपुर। नेशनल कौंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं चिंतक इंस्टिट्यूट ऑफ वैदिक साइंस के संस्थापक अघ्यक्ष डॉ रमेश चिंतक ने बताया कि प्रयाग शब्द ही तीर्थ का पर्याय है। और प्रयागराज की महिमा सरस्वती नदी के कारण सर्वोच्च है। इसीलिए यह तीर्थराज कहलाता है।
उत्तराखंड के पंच प्रयाग ,देव प्रयाग,नन्द प्रयाग ,रुद्र प्रयाग,कर्ण प्रयाग ये पांच प्रयाग हैं किंतु इन प्रयोगों में तीर्थराज प्रयाग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उसका कारण है गुप्त नदी सरस्वती का होना। यह गंगा यमुना सरस्वती का संगम है साथ ही ज्ञान वैराग्य और भक्ति का संगम भी है। इसीलिए तीर्थराज प्रयाग पवित्रतम एवं श्रेष्ठतम कहा गया है।
धार्मिक मान्यताएँ हमेशा आस्था और विश्वास की भूमि पर ही फलती फूलती है। प्रयाग का कुम्भ एक ऐसा विशाल समागम है जिसमे भारतीय संस्कृत का संरक्षण एवं संवर्धन भी होता है। डॉ. चिंतक कहते हैं कि इसके साथ ही यह लोक दृष्टि से श्रीवृद्धि और आध्यात्मिक दृष्टि से ध्येय सिद्धि का संबल है। यह एक ऐसा महापर्व है जो स्थान जाति भाषा वर्ण का भेद मिटाकर अनेकता में एकता का संदेश देता है।
उनका कहना है किबारह पुराण एवं ब्रह्म पुराण में चार स्थानों पर कुंभ तथा अर्ध कुंभ के ज्योतिषीय विश्लेषण प्राप्त होते हैं।“मकरे च दीवानाथे ह्राजगे च वृहस्पते कुंभयोगो भवे तत्र प्रयागे इति दुर्लभ: “भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब मकर राशि में भगवान भास्कर और वृष राशि में वृहस्पति हों तब अत्यंत दुर्लभ प्रयाग में कुम्भ होता है। तात्पर्य यह कि कुंभ एक खगोलीय घटना है जो अंतरिक्ष में ग्रह नक्षत्रों की विशेष स्थिति पर होती है lजैसा विदित है कि प्रयाग का महत्व वहाँ की तीन नदियों त्रिवेणी में सरस्वती का होना है जो इसे विशिष्ट बनाता है।
ऋग्वेद में सरस्वती का वर्णन है जो नदी के रूप में है और ज्ञान की देवी के रूप में भी है l आज के विज्ञान प्रधान मानसिकता के युग में वेदसम्मत शास्त्रसम्मत तर्कसम्मत नीतिसम्मत से अधिक विज्ञानसम्मत पर लोगो का विश्वास है l इसलिए वर्तमान समय में वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी खोज हो रही है। क्योंकि सरस्वती के उदगम के बारे में तो अभी तो वैज्ञानिक अनुसंधान चल ही रहे हैं।लोक मान्यता और भौतिक रूप से उत्तराखंड में बद्रीनाथ के ऊपर से एक नदी प्रवाहित होती है जो सरस्वती के नाम से जानी जाती है।
ख़ास बात यह है कि यह जिस पर्वतीय भाग में बहती है उसका अधिकतम भाग बर्फ से ढका रहता है और उसके तट पर अनेक आश्रम और तीर्थ हैं l एक तथ्य यह भी विचारणीय है कि ऋग्वेद में जहाँ सरस्वती के उद्गम का वर्णन है वह गंगा के उद्गम स्थल के पास और उससे मिलता जुलता है।