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सीएम गहलोत और सचिन पायलट के बीच राजनीतिक लड़ाई पार्टी के लिए बनी सिरदर्द

[Edited By: Rajendra]

Saturday, 26th November , 2022 01:36 pm

हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत के तीखे बयानों ने आहत सचिन पायलट ने कांग्रेस आलाकमान पर एक बार फिर मुख्यमंत्री बदलने के लिए दबाव बनाना तेज कर दिया है. इस बीच राजस्थान कांग्रेस संकट को लेकर पार्टी के सीनियर नेता केसी वेणुगोपाल को राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा तक राजनीतिक संघर्ष विराम सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा दिसंबर के पहले हफ्ते में राजस्थान पहुंचेगी. इससे पहले, सीएम गहलोत और सचिन पायलट के बीच राजनीतिक लड़ाई पार्टी के लिए सिरदर्द बन गई है. सूत्रों के मुताबिक संकट के वर्तमान हालातों से निपटने के लिए पार्टी संगठन के महासचिव केसी वेणुगोपाल 29 नवंबर को जयपुर जा रहे हैं.

सूत्रों ने ये भी बताया कि इस दौरान वेणुगोपाल गहलोत और पायलट दोनों से अलग-अलग बात कर मसले का हल निकालने की भी कोशिश करेंगे और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान किसी भी तरह की बयानबाजी या अनुशासनहीनता से दूर रहने की कड़ी चेतावनी भी देंगे. हालांकि मीडिया से बात करते हुए वेणुगोपाल ने कहा, 'राजस्थान कांग्रेस में कोई संघर्ष नहीं है. पार्टी भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से अपनी ताकत दिखाएगी.'

गहलोत खेमे की तरफ से लगातार हो रहे अपमान के बाद पायलट एक बार फिर से आक्रामक होकर पार्टी आलाकमान पर राजस्थान में सरकार का चेहरा बदलने का दबाव बना रहे हैं. उन्होंने इस बीच आलाकमान से सीएम कैंडिडेट को लेकर कांग्रेस पार्टी के विधायकों के बीच गुप्त मतदान कराने का फार्मूला सुझाते हुए अगले नेता पर फैसला लेने की बात कही है. सूत्रों का दावा है कि पायलट ने यहां तक कह दिया है कि अगर अशोक गहलोत को हटा भी दिया जाता है तब भी सरकार नहीं गिरेगी.

गुजरात में अगले हफ्ते वोटिंग है, गहलोत वहां के प्रभारी हैं. ऐसे में पार्टी न तो राजस्थान की सत्ता, हाथ से फिसलने देना चाहती है और न ही गुजरात को लेकर कोई रिस्क लेना चाहती है. सूत्रों के मुताबिक पार्टी खड़गे गुजरात चुनाव के बाद राजस्थान का मसला सुलझाने के मूड में हैं. यही वजह है कि हाईकमान के दूत के रूप में संगठन के महासचिव को हालात पर काबू पाने और सत्ता संघर्ष की आग बुझाने के लिए जयपुर भेजा जा रहा है.

50 साल के राजनीतिक करियर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का एक नया रूप देखने को मिल रहा है। 2020 में पायलट खेमे की बगावत के बाद उन्होंने पहली बार अपने धुर विरोधी सचिन पायलट पर खुलकर हमला बोला है। इस हमले से राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान आने से 10 दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सियासी खींचतान का नया चैप्टर शुरू कर दिया है। अब तक पायलट पर जो हमले गहलोत के समर्थक विधायक और मंत्री बोल रहे थे, अब खुद गहलोत ने उन पर मुहर लगा दी है। गहलोत ने समर्थक विधायकों की 25 सितंबर की बगावत को क्लीन चिट देकर खुद की सियासी लाइन को क्लीयर कर दिया है। इससे हाईकमान के फैसले पर भी सवालिया निशान लग गया है।

गहलोत ने 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के समर्थक विधायकों के कदम का पहली बार खुलकर समर्थन करके उसे पायलट के खिलाफ बगावत करार देकर नई लड़ाई का ऐलान कर दिया है। अब तक गहलोत बैठक के बहिष्कार पर नपा-तुला जवाब ही देते आए थे। अब गहलोत ने हाईकमान की राय के खिलाफ जाकर बागी तेवर दिखाने वाले विधायकों-मंत्रियों का खुलकर बचाव करने के साथ ही इस घटना के बाद हुए फैसलों पर भी सवाल उठा दिए हैं।

गहलोत के बयान से यह साफ संकेत है कि उन्होंने अपने समर्थक नेताओं के खिलाफ 25 सितंबर की घटना को लेकर किसी तरह का एक्शन नहीं लेने की चेतावनी दी है। उस घटना को पायलट के खिलाफ बगावत करार देकर जस्टिफाई करने का मतलब है कि जरूरत पड़ी तो खुलकर टकराव भी हो सकता है। बगावत को लीड करने वाले नेताओं पर कार्रवाई नहीं होने से नाराज राजस्थान प्रभारी अजय माकन के इस्तीफे को भी गहलोत ने इशारों में गलत ठहराया है। अजय माकन पर गहलोत समर्थक मंत्रियों ने पक्षपात करने और पायलट के समर्थन में विधायकों को फोन करने के आरोप लगाए थे। गहलोत ने उन आरोपों को सही बताकर माकन की भूमिका पर भी सवाल उठा दिए हैं। अब मौजूदा हालात में माकन के लिए प्रदेश प्रभारी बने रहने के आसार कम हैं, ऐसे में राजस्थान प्रभारी की जिम्मेदारी किसी दूसरे नेता को दी जा सकती है।

25 सितंबर को हुई बगावत के वक्त गहलोत खुद अलग थे और उनके समर्थक विधायक आगे थे, इस बार पायलट पर हमले की कमान खुद गहलोत ने संभाली है। यह भी साफ है कि गहलोत और पायलट खेमों के बीच मतभेद मनभेद में बदल चुके हैं, जिन्हें मिटाना अब आसान नहीं है। 25 सितंबर को गहलोत समर्थक 90 विधायकों ने पायलट के विरोध में स्पीकर सीपी जोशी को इस्तीफे दे दिए थे। स्पीकर जोशी के पास अब भी गहलोत समर्थक विधायकों के इस्तीफे रखे हुए हैं। माना जा रहा है कि ये इस्तीफे ही प्रेशर पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा हथियार हैं। गहलोत पर अगर प्रेशर बढ़ा तो समर्थक विधायक इस्तीफे मंजूर करवा सकते हैं। ऐसे हालात में विवाद और बढ़ने पर बात विधानसभा भंग कराने तक पर जा सकती है, इस्तीफों का सियासी मकसद यही माना जा रहा है। बताया जाता है कि हाईकमान इसी वजह से राजस्थान को लेकर जल्दबाजी करने के मूड में नहीं है।

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