दिल्ली में पुलिसवाले प्रदर्शन करने को मजबूर हैं. मांग है सुरक्षा और सम्मान की. प्रदर्शन के दौरान खाकी वर्दी पहने लोग IPS किरण बेदी को याद कर रहे हैं. जानिए क्या है इसकी वजह.........
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर मंगलवार को किरण बेदी की फोटो लगे पोस्टर खूब लहराये गए, पोस्टर पर लिखा हुआ है कि हमारे परिवार का मुखिया कहां है जो हमारा ध्यान रख सके.पुसिलकर्मी किरण बेदी के समर्थन में नारे लगाते हुए भी नजर आए, पुलिस कर्मी कह रहे थे ‘हमारा सीपी कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो.’ किरण बेदी फिलहाल पॉण्डिचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर हैं.
1982 की एक और घटना है. किरण दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक डीसीपी थीं. कनॉट प्लेस में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ऑफिस की एक एम्बेसेडर कार ‘नो पॉर्किंग एरिया’ में खड़ी थी. इस इलाके में सब-इन्सपेक्टर निर्मल सिंह ड्यूटी पर थे। उन्होंने इस गाड़ी को क्रेन से उठवा लिया. मामला हाई प्रोफाइल था. लिहाजा, इसने तूल पकड़ा. लेकिन, इस दौरान किरण अपने अधीनस्थ सब इन्सपेक्टर के साथ खड़ी रहीं. 17 फरवरी 1988 को भी पुलिसकर्मियों और वकीलों के बीच विवाद हुआ था. तब भी बेदी ने अपने अधीनस्थों का बचाव किया था. उनके इसी नेतृत्व को याद करते हुए पुलिसकर्मियों ने मंगलवार को पटनायक के सामने किरण बेदी की मिसाल देते हुए नारेबाजी की.
यह घटना 17 फरवरी 1988 की है. इस दिन डीसीपी किरण बेदी के दफ्तर में वकील पहुंचे हुए थे. इस बीच किसी बात पर बहस हो गई जो झड़प में बदल गई, इस दौरान बेकाबू भीड़ के कारण हालात ऐसे हो गए कि किरण बेदी को लाठीचार्ज कराना पड़ा.इस असर यह हुआ कि वकीलों ने दिल्ली की सभी अदालतों को बंद करा दिया.हालांकि इसके बाद भी एक न्यायाधीश ऐसे थे, जिन्होंने अपनी अदालत को खोले रखा और फैसले सुनाए.
दिल्ली में जनवरी 1988 में वकील और पुलिसवाले आपस में भिड़ गए थे. दरअसल चोरी के एक मामले में एक वकील की गिरफ्तारी हुई थी. तीसहजारी कोर्ट से वकील को हथकड़ी पहनाकर पुलिस ले गई थी. इसी बात पर तीसहजारी कोर्ट के वकील धरने पर चले गए. उनका कहना था कि एक वकील को इस तरह हथकड़ी पहनाकर पुलिस नहीं ले जा सकती.
17 फरवरी 1988 को हुए दूसरे मामले में वकीलों ने कहा कि करीब 3 हजार की भीड़ तीसहजारी कोर्ट पहुंच गई. भीड़ ने दंगा किया, वहां मौजूद गाड़ियों में तोड़फोड़ की और वकीलों के दफ्तर पर हमला बोल दिया. वकीलों का आरोप था कि भीड़ ने किरण बेदी के कहने पर हमला किया था, इसके पीछे किरण बेदी का दिमाग था. इस मामले की जांच के लिए दो जजों की एक बेंच बैठी. किरण बेदी के इसमें शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिला.