जहां एक तरफ दुनिया कोरोना वायरस की मार झेल ही रही थी कि तभी ब्लैक फंगस के मामलों ने दस्तक देकर एक नई चिंता को जन्म दे दिया. ये एक ऐसा संक्रमण है जिसे म्यूकोरमाइकोसिस भी कहते हैं. ब्लैक फंगस ज़्यादातर कोरना के मरीजों या फिर ठीक हो चुके मरीजों में अधिक रूप से खतरनाक साबित हो रहा है. समय पर ध्यान ना देने पर 50-80 फीसद मरीजों की इससे मौत भी हो सकती है. ये एक किस्म का फंगल इंफेक्शन है जो खासतौर से उन लोगों को संक्रमित करता है जो किसी ना किसी बीमारी कि वजह दवाओं पर हैं. इसकी वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता या फिर इम्यूनिटी कम हो जाती है. ऐसे लोगों में हवा के जरिए साइनस या फेफड़ों में संक्रमण फैल जाता है.
मध्य प्रदेश के सागर जिले में ब्लैक फंगस मरीजों में ब्लैक फंगस के लिए इस्तेमाल होने वाली इंजेक्शन एम्फोटेरिसिन-बी के कुछ खतरनाक साइड इफेक्टस सामने आए. एम्फोटेरिसिन-बी के शॉट दिए जाने के बाद कुछ उल्टे रिएक्शन की शिकायत सामने आई.
यहां जिले के सरकारी बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज (बीएमसी) में भर्ती 27 मरीजों को एम्फोटेरिसिन-बी का इंजेक्शन दिया गया था. जिसके बाद उनमें इसका कुछ अलगअसर देखने को मिला है। पको बता दें कि ब्लैक फंगस आमतौर से मरीज़ की आंखों की रोशनी धीरे-धीरे गायब हो जाती है जिसके कारण मरीज़ों की आंखें निकालनी पड़ती है. सागर के अस्पताल में मरीज़ों में हल्का बुखार, कंपकंपी और उल्टी की शिकायत देखने को मिली, जिसके बाद फंगस के इलाज में अहम दवा एम्फोटेरिसिन-बी के इस्तेमाल पर तुरंत ही मेडिकल कॉलेज में रोक लगा दी गई.
आपको बता दें कि मेडिकल कॉलेज के प्रतिनिधि डॉ उमेश पटेल ने कहा, 'वर्तमान में, 42 मरीज बीएमसी के म्यूकोर्मिकोसिस वार्ड में भर्ती हैं. इनमें से 27 रोगियों को एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिए गए. इंजेक्शन लगने के बाद, रोगियों को हल्का बुखार, कंपकंपी और उल्टी जैसी शिकायतें होने लगी. घटना के तुरंत बाद इंजेक्शन का उपयोग बंद कर दिया गया.'
हालांकि प्रवक्ता पटेल ने कहा कि सभी मरीजों की हालत फिलहाल स्थिर है और डरने की कोई बात नहीं है. उन्होंने कहा, 'घटना के बाद बीएमसी अधीक्षक और डीन हरकत में आ गए और प्रभावित मरीजों का रोगसूचक उपचार तुरंत शुरू कर दिया गया. सभी मरीजों की हालत स्थिर है और डरने की जरूरत नहीं है. मरीजों को एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन के बदले दवाएं मुहैया कराई जा रही हैं. मरीजों का ध्यान रखा जा रहा है.'