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सिद्धारमैया के शपथ में दिखेगी विपक्षी एकता

[Edited By: Rajendra]

Friday, 19th May , 2023 01:09 pm

सिद्धारमैया 20 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की है। 2023 में 5 राज्यों में विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस जीत को कांग्रेस के लिए संजीवनी के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस ने इस शपथ ग्रहण समारोह को भव्य बनाने के लिए जोर-शोर से तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। देशभर की तमाम पार्टियों के नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। कांग्रेस केंद्र में रहकर इस समारोह का विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर आयोजन करना चाहती है। कांग्रेस की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के सीएम केसीआर को इसका न्योता नहीं भेजा गया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने सियासी समीकरणों को देखते हुए इन दलों से दूरी बनाए रखने का फैसला किया है।

2024 लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में मिली जीत ने कांग्रेस में नई ऊर्जा भर दी है। ऐसे में पार्टी सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण को भव्य बनाकर विपक्षी एकता का भी संकेत देना चाहती है। कांग्रेस ने समारोह में शामिल होने के लिए समान विचारधारा वाली पार्टियों के नेताओं को न्योता भेजा है।

कर्नाटक में कांग्रेस की इस जीत ने न सिर्फ बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया है, बल्कि देशभर में अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश भरने का काम भी किया है। कांग्रेस के थिंक टैंक का मानना है कि यह जीत 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं में ऊर्जा भरने का भी काम करेगी। कांग्रेस सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण को भव्य बनाकर विपक्षी एकता का भी संकेत देना चाहती है। कांग्रेस ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शपथ ग्रहण में शामिल होने का न्योता नहीं भेजा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर देशभर में जब सभी विपक्षी दल 2024 चुनाव से पहले एकजुट होने की कवायद में जुटे हैं, तो फिर कांग्रेस AAP से दूरी क्यों बना रही है, जबकि आम आदमी पार्टी की दो अहम राज्यों दिल्ली और पंजाब में सरकार है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए कुछ राजनीतिक घटनाओं पर ध्यान देना होगा। 2013 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए थे। इससे पहले वहां लगातार 15 साल से कांग्रेस की शीला दीक्षित सत्ता पर काबिज थीं। 2013 में आम आदमी पार्टी ने राजधानी की चुनावी राजनीति में एंट्री की और 28 सीटों पर जीत हासिल की। 2008 में 43 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई। 2015 में जब दोबारा चुनाव हुए तो आप का ग्राफ 67 सीटों पर पहुंच गया। बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं। वहीं कांग्रेस शून्य पर आ गई। 2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई। अब दिल्ली से पंजाब का रुख करते हैं। पंजाब में 2017 में हुए चुनाव में 77 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। तब AAP वहां पैर पसार ही रही थी। पार्टी ने उस चुनाव में 20 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2022 आते आते स्थिति पूरी तरह बदल गई। AAP 92 सीटों पर पहुंच गई, तो कांग्रेस सिर्फ 18 पर सिमट गई।

अब गुजरात की बात करते हैं। गुजरात में 2017 में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। तब बीजेपी 99 सीटों के साथ सत्ता में आई थी। जबकि कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2022 में आम आदमी पार्टी ने भी गुजरात में ताल ठोकी। आप भले ही सिर्फ 5 सीटों पर जीतने में सफल रही, लेकिन सीधे तौर पर उसने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। कांग्रेस 17 सीटों पर सिमट गई। 2017 में जहां कांग्रेस को 42।2% वोट मिला था। वही, 2022 में सिर्फ 27% रह गया। आप को 13।1% वोट मिला।

पिछले दिनों दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम और AAP में नंबर दो मनीष सिसोदिया की शराब घोटाले में गिरफ्तारी हुई थी। इस गिरफ्तारी के खिलाफ तमाम विपक्षी दलों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी थी। लेकिन कांग्रेस ने इससे दूरी बना ली थी। अरविंद केजरीवाल जब अन्ना के आंदोलन से राजनीतिक पार्टी बना रहे थे, तब उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को खूब घेरा। अब जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी नेता भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए तो कांग्रेस ने इसे भुनाते हुए AAP पर जमकर निशाना साधा।

कांग्रेस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री और बीआरएस नेता चंद्रशेखर राव (केसीआर) को भी शपथ ग्रहण का न्योता नहीं भेजा है। दरअसल, केसीआर 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बिना बीजेपी और बिना कांग्रेस वाले थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। तेलंगाना में इस साल चुनाव हैं। यहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला केसीआर की पार्टी से ही है। 2018 चुनाव में भी कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी थी। तब केसीआर को 47।4 प्रतिशत वोट के साथ 88 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस 28।7% वोट के साथ 19 सीटें जीती थी। ऐसे में कांग्रेस केसीआर को भी मुख्य विपक्षी के तौर पर ही देखती है। इतना ही नहीं केसीआर ने हाल ही में महाराष्ट्र में अपनी पार्टी के विस्तार का ऐलान किया है। अगर केसीआर अपनी कोशिशों में सफल होते हैं, तो कांग्रेस को राज्य में नुकसान उठाना पड़ सकता है।

 

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