प्रयागराज की पावन धरती पर महाकुंभ का भव्य मेला जारी है। 13 जनवरी 2025 से शुरू हुए इस महाकुंभ मे अब तक 17 करोड़ से अधिक लोग स्नान कर चेके है। वहीं आज (29 जनवरी) मौनी अमावस्या के दिन दूसरा शाही स्नान चल रहा है. इस शाही स्नान के पहले ही देर रात करीब एक बजे संगम पर भगदड़ मच गई. इसमें कई लोगो की मौत होने की खबर है। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब मौनी अमावस्या के मौके पर संगम के तट कुंभ में ऐसे हालात बने. इससे पहले प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर मची भगदड़ में करीब 1000 लोगों की मौत हुई थी. जानिए, ऐसे हालात क्यों बने थे
बात 1954 की है तब भारत का पहला महाकुंभ का प्रयागराज की धरती पर आयोजित हुआ था। 3 फरवरी सन् 1954 में महाकुंभ मे मौनी अमावस्या का दिन था. मौनी अमावस्या के दिन संगम मे स्नान करने के लिए लाखों लोग पहुंचे थे. मौनी अमावस्या के दिन ही अखाड़ों का जुलूस देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग खड़े थे, लेकिन मेले मे सुबह से हो रही बारिश के कारण चारों तरफ कीचड़ और फिसलन थी. भारी लोगो की भीड़ उस ओर दौडी जस तरफ नागा साधु ठहरे हुए थे.
एक तरफ नागा साधुओं के जुलूस के कारण निकलने की जगह नहीं थी. धीरे-धीरे अचानक से भीड़ बढ़ने लगी औऱ फिर जब धक्का-मुक्की होने लगी तो लोग नागा साधुओं के जुलूस के बीच से निकलने की कोशिश करने लगे. तब साधुओं ने अपने त्रिशूल श्रद्धालुओं की ओर मोड़ दिए. ऐसे में श्रद्धालु निकल नहीं पाए और भगदड़ के ही कारण कुछ नीचे ही दबे रह गए और कुछ दबकर मर गए और कुछ गंगा में समा गए।
कई रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं महाकुंभ मौनी अमावस्या के दिन सुबह करीब 9 बजे मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं. इस खबर के बाद महाकुंभ संगम में स्नान करने आई लोगो की भारी भीड़ पंडित नेहरू को देखने के लिए उमड़ पड़ी. उन्हें देखने के लिए लगी भीड़ के कारण ही भगदड़ मची थी। इस हादसे में लगभग 1000 लोगों के मरने का दावा किया गया था।