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उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का साथ क्यो चाहिये हर पार्टी को..क्या है कारण

[Edited By: Vijay]

Tuesday, 7th September , 2021 06:43 pm

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने आज लखनऊ में प्रबुद्ध सम्मेलन में ब्राह्मणों को लुभाने के लिए यह वादा किया कि यदि प्रदेश में बसपा की सरकार बनती है तो उनका ध्यान रखा जाएगा। ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए बसपा ने जगह-जगह सम्मेलन करके अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इससे पहले बसपा ने 23 जुलाई को अयोध्या में 'ब्राह्मण सम्मेलन' आयोजित की थी जिसका नाम बाद में बदलकर 'प्रबुद्ध वर्ग के सम्मान में संगोष्ठी'  कर दिया गया था।

इसी तरह समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में 22 अगस्त से जिला स्तरीय ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए ब्राह्मण मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश शुरू की। अखिलेश पार्टी के पांच बड़े ब्राह्मण नेताओं से मिलकर चुनाव की रणनीति पर मंथन करते नजर आए। उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से जानने वाले कहते हैं पहले ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर पार्टियों की नजर ज्यादा हुआ करती थी, लेकिन ऐसा लग रहा है, 2022 के चुनाव के केंद्र में ब्राह्मण रहने वाले हैं। 

यूपी में ब्राह्मणों की भूमिका

आखिर क्या वजह है कि उत्तर प्रदेश में पार्टियां इस वोट बैंक पर इतना ध्यान दे रही हैं?  उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता जाटवों और यादवों के बाद चुनाव का एक महत्वपूर्ण कारक हैं। एक अन्य कारण समुदाय का मजबूत सामाजिक-राजनीतिक इतिहास है जो चुनाव अभियान के दौरान विशेष रूप से अवध और उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में किसी भी पार्टी को चुनाव में बढ़त दिलाने में मदद करता है। हालांकि, मंदिर की राजनीति के बाद से  ब्राह्मणों को भारतीय जनता पार्टी के समर्थक के तौर पर देखा जाता है जो बड़े पैमाने पर भाजपा को वोट देते रहे हैं। 

2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 12 प्रतिशत जाटव हैं। जाटवों के बाद ब्राह्मण दूसरे स्थान पर हैं। इनकी आबादी लगभग 10 प्रतिशत है। कुल जनसंख्या में ब्राह्मणों की हिस्सेदारी के मामले में, उत्तर प्रदेश दो पहाड़ी राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के बाद तीसरे स्थान पर आता है। जो राज्य की राजनीति पर पर्याप्त प्रभाव डाल सकता है। यही वह संख्या है, जो सभी राजनीतिक दलों को एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने पर मजबूर कर रही है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण प्रभावशाली माने जाते रहे हैं। राज्य के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ब्राह्मण ही थे। एनडी तिवारी, जो 1989 में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे, वे भी ब्राह्मण थे। 

ब्राह्मण और भाजपा

'मंडल और  मंदिर की राजनीति से पहले ब्राह्मण यूपी में कांग्रेस के प्रति वफादार थे। जैसे ही राम जन्मभूमि आंदोलन ने यहां गति पकड़ी, कांग्रेस राज्य में कमजोर होती गई। 1993 से 2004 तक, जब किसी एक दल को बहुमत नहीं मिल पाया था,  ब्राह्मणों ने भाजपा का पूरा समर्थन किया, चाहे वह विधानसभा चुनाव हो या संसदीय चुनाव।

हाल के कुछ सालों में भाजपा के प्रति उनका झुकाव जबरदस्त तरीके से बढ़ा है। लोकनीति और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के अध्ययन के मुताबिक 2004 तक आधे से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं ने हमेशा भाजपा को वोट दिया। हालांकि, 2007 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए ब्राह्मणों का समर्थन 40 प्रतिशत से कम हो गया। इस साल मायावती ने बहुमत हासिल किया था। 

अब देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है किस पार्टी को ब्राह्मणों का सपोर्ट मिलता है, हालांकि ताजा स्थिति तो ये है कि सारी पार्टियां, खासकर सपा और बसपा ब्राह्मणों को अपनी ओर खीचनें के लिये हर तरह के प्रयास कर रही  है..

 

 

 

 

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