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राजस्थान को लेकर एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के अंदर उठा बवाल, अजय माकन ने छोड़ी राजस्थान प्रभारी की जिम्मेदारी

[Edited By: Rajendra]

Thursday, 17th November , 2022 12:49 pm

भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही देशभर में एकजुटता का संदेश पहुंचाने में लगे हैं, लेकिन पार्टी के भीतर राजस्थान को लेकर चल रही खींचतान को वह शांत करने में नाकाम रहे हैं। पार्टी के भीतर राजस्थान को लेकर एक बार फिर उठापटक तेज हो गई है।

कांग्रेस नेता अजय माकन ने राजस्थान प्रभारी की अपनी ज़िम्मेदारी छोड़ दी है। नए अध्यक्ष को चिट्ठी लिखकर कह दिया है कि कोई दूसरा प्रभारी देख लीजिए। पार्टी अध्यक्ष पद पर बैठने के बाद मल्लिकार्जुन खडगे के सामने यह पहली बड़ी परेशानी आई है। दरअसल, खडगे और माकन पिछले महीने जब पायलट और गहलोत का झगड़ा सुलझाने राजस्थान गए थे, तब गहलोत समर्थक विधायकों ने इन पर्यवेक्षकों द्वारा बुलाई गई बैठक में जाने की बजाय मंत्री शांति धारीवाल के घर एक समानांतर बैठक की थी और कुछ बयानबाज़ी भी की थी।

पक्षपात का आरोप झेल रहे राजस्थान के प्रभारी अजय माकन के इस्तीफे की पेशकश के बाद शांत पड़ राजनीति में सियासी उबाल आ गया है। अजय माकन ने इस्तीफे की पेशकश कर गहलोत कैंप पर ऐक्शन लेने के लिए पार्टी आलाकमान पर दबाव बना दिया है। सीएम अशोक गहलोत के प्रभाव और रुतबे के चलते पार्टी आलाकमान गहलोत समर्थकों पर ऐक्शन लेने से कतरा रहा है, लेकिन जिस तरह अजय माकन ने इस्तीफे की पेशकश कर दबाव की रणनीति अपनाई है। गहलोत कैंप के विधायकों ने अजय माकन पर सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया था। माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग ठंडे बस्ते में डाल दिया। इससे आहत होकर अजय माकन ने इस्तीफे की पेशकश कर दी। अजय माकन पर पायलट कैंप की छाप लगने के आरोप है। बता दें, राजस्थान में अनिर्णय की स्थिति में माहौल बिगड़ रहा है। वर्ष 2020 में सचिन पायलट की बगावत के समय तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय पर गाज गिरी थी। पांडेय को प्रभारी महासचिव के पद से हटा दिया गया था। तब सचिन पायलट गुट के नेताओं ने पांडेय पर एतरफा काम करने का आरोप लगाया था। इस बार गहलोत कैंप ने अजय माकन को निपटा दिया है।

बगावत कै टैग झेल रहे पायलट कैंप लगातार ऐक्शन की मांग कर रहा था। गहलोत समर्थक मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेद्र राठौड को नोटिस देने के 51 दिन बाद भी कोई ऐक्शन नहीं लिया गया। गहलोत कैंप माकन के इस्तीफे को जीत के तौर पर देख रहा है। जबकि पायलट कैंप के विधायक नई सिरे से रणनीति बना रहे है। माकन के इस्तीफे को पायलट कैंप के विधायकों ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

हालाँकि अध्यक्ष को यह चिट्ठी उन्होंने आठ नवम्बर को ही लिख दी थी, खुलासा अब हुआ है। अब सवाल उठता है कि होगा क्या? गहलोत गुजरात में वैसी रुचि नहीं रख पाएँगे जैसी ज़रूरत थी। दूसरे, गहलोत और पायलट गुट की खेमेबाज़ी और बढ़ जाएगी। बयानबाज़ी तो शुरू भी हो चुकी है। राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान प्रवेश पर भी यही विवाद छाया रह सकता है। भाजपा तो ऐसे मुद्दों को भुनाने में माहिर है ही। उसके बयान भी शुरू हो जाएँगे। कुल मिलाकर धीरे से पटरी पर आ रहा एक विवाद फिर से ज़ोर पकड़ लेगा और कार्यकर्ताओं का मनोबल फिर से एक नकारात्मकता की ओर जाना तय है।

पायलट समर्थक कुछ नेताओं ने तो बयान शुरू कर ही दिए हैं। देखना यह है कि माकन के इस कदम को गहलोत ख़ेमा किस तरह लेता है। … और सबसे बड़ी बात यह कि नए अध्यक्ष खडगे इसे किस तरह निबटाते हैं। मामला पेचीदा है क्योंकि जिस विवाद को लेकर यह सब हो रहा है उस के गवाह माकन के अलावा खुद खडगे भी रहे हैं। किसी निर्णय पर पहुँचना इसलिए भी खडगे के लिए कठिन होगा। लगता है फ़िलहाल इस विवाद को टाला जाएगा क्योंकि पार्टी गुजरात चुनाव के वक्त इस तरह के पेचीदा मुद्दे में पड़कर नया विवाद खड़ा होने का रास्ता नहीं खोलना चाहेगी।

सचिन पायलट समर्थक विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान को विधायक दल की बैठक तुरंत बुलानी चाहिए। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पहले विधायकों का मन टटोलना चाहिए। पार्टी आलाकमान को तुरंत नेतृत्व परिवर्तन करनी चाहिए। राजस्थान में कांग्रेस का आम कार्यकर्ता और नेता असंमजस की स्थिति में है। जिसे केवल आलाकमान मिटा सकता है। वह असंमजस विधायकों से बात करके ही मिटाया जा सकता है। फिलहाल राजस्थान की सियासी घटनाक्रम में सीएम अशोक गहलोत औऱ ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे हैं। पायलट कैंप के नेताओं की मांग को कांग्रेस आलाकमान लगातार अस्वीकार कर रहा है।

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