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समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बीजेपी को फायदा होगा

[Edited By: Rajendra]

Tuesday, 10th January , 2023 01:18 pm

यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए दो राज्यों की ओर से बनाई गई कमिटियों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान राज्यों को ऐसी समितियां बनाने का अधिकार देता है। गुजरात और उत्तराखंड की सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए पिछले दिनों कमेटियों का गठन किया था। राज्य सरकारों के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने सोमवार को कहा कि इस मामले में दाखिल याचिका में कोई मेरिट ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-162 के तहत राज्य के पास यह अधिकार होता है कि वह ऐसी कमेटियां बना सके। इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है।

पिछले दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए पांच सदस्यीय ड्राफ्ट कमेटी की घोषणा की हुई है। कमेटी कानून का एक ड्राफ्ट तैयार करेगी, जिस पर सरकार आगे का फैसला लेगी। इसी तरह गुजरात सरकार ने भी एक कमिटी बनाई है। हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का जिक्र किया था, लेकिन वह राज्य के चुनाव में हार गई थी। उत्तराखंड, मध्य प्रदेश समेत देश के कई भाजपा शासित राज्यों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।

अदालत के इस फैसले से उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से पहले गठित पैनल के कामकाज का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकार का कहना है कि शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और बंटवारे से संबंधित मामलों में सभी के लिए एक समान कानून होना चाहिए। यह कैसे लागू हो सकता है और यह कितना जरूरी है, इसका पता लगाने के लिए पैनल का गठन किया गया है। इसी के खिलाफ दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए सोमवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अदालत ने कहा कि दायर अर्जी मेरिट पर खरी नहीं उतरती। चीफ जस्टिस ने कहा, 'संविधान के आर्टिकल 162 के तहत राज्य सरकारों को अधिकार है कि वे अपने स्तर पर कानून बना सकें।

इसके साथ ही अदालत ने समवर्ती सूची के 5वें बिंदु का जिक्र किया, जिसके तहत राज्यों को अधिकार है कि वे शादी, तलाक, वसीयत, संतान गोद लेने, बंटवारे आदि पर अलग से कानून बना सकते हैं। अदालत ने कहा कि यदि केंद्र सरकार इन मामलों में कोई कानून लागू करती है तो फिर राज्य सरकारों की ओर से बनाए गए नियम उसके पूरक के तौर पर ही होंगे। बता दें कि उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने इसी साल 27 मई को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रंजना पी. देसाई की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया है। 5 सदस्यों वाले इस पैनल को यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की संभावनाओं और प्रक्रिया पर विचार करने की जिम्मेदारी दी गई है।

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