अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ. 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान दिया गया 'जय जवान जय किसान का उनका नारा आज के परिप्रेक्ष्य में भी सटीक और सार्थक है.
लाल बहादुर शास्त्री ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान दिया और आजादी के बाद भारत के नीति निर्माताओं में से एक रहे. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में वो शामिल हुए. उन्होंने रेलवे और गृह जैसे बड़े और अहम मंत्रालय का प्रभार संभाला. जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जून 1964 में लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने.
लाल बहादुर शास्त्री अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक कमिटी बनाई थी. करप्शन से जुड़े सवाल पर उन्होंने अपने बेटे तक को नहीं बख्शा. एक बार उन्हें पता चला कि उनके बेटे को गलत तरीके से प्रमोशन मिल रहा है. उन्होंने अपने बेटे की प्रमोशन रुकवा दी.
लाल बहादुर शास्त्री की विनम्रता के लोग कायल थे. उनके साथ प्रेस एडवाइजर के तौर पर काम करने वाले मशहूर पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने उनके बारे में एक दिलचस्प किस्सा सुनाया. कुलदीप नैय्यर ने बताया कि शास्त्री जी इतने विनम्र थे कि जब भी उनके खाते में तनख्वाह आती, वो उन्हें लेकर गन्ने का जूस बेचने वाले के पास जाते. शास्त्री जी शान से कहते- आज जेब भरी हुई है. फिर दोनों गन्ने का जूस पीते.
शास्त्री जी अपनी तनख्वाह का अच्छा खासा हिस्सा सामाजिक भलाई और गांधीवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में खर्च किया करते थे. इसलिए अक्सर उन्हें घर की जरूरतों के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता था. घर का बजट बड़ा संतुलित रखना पड़ता था.
शास्त्री जी के लोन लेकर कार खरीदने का किस्सा बड़ा मशहूर है. लाल बहादुर ईमानदारी और सादगीभरा जीवन व्यतीत करते थे. दूसरे सामाजिक कार्यों में पैसे खर्च करने के वजह से अक्सर उनके घर पैसों की किल्लत रहा करती थी. उनके प्रधानमंत्री बनने तक उनके पास खुद का घर तो क्या एक कार भी नहीं थी.
ऐसे में उनके बच्चे उन्हें कहते थे कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आपके पास एक कार तो होनी चाहिए.
घरवालों के कहने पर शास्त्रीजी ने कार खरीदने की सोची. उन्होंने बैंक से अपने एकाउंट का डिटेल मंगवाया. पता चला कि उनके बैंक खाते में सिर्फ 7 हजार रुपए पड़े थे. उस वक्त कार की कीमत 12000 रुपए थी.
कार खरीदने के लिए उन्होंने बिल्कुल आम लोगों की तरह पंजाब नेशनल बैंक से लोन लिया. 5 हजार का लोन लेते वक्त शास्त्रीजी ने बैंक से कहा कि जितनी सुविधा उन्हें मिल रही है उतनी आम नागरिक को भी मिलनी चाहिए.
हालांकि शास्त्रीजी कार का लोन चुका पाते उसके एक साल पहले ही उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी ने लोन माफ करने की पेशकश की. लेकिन शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री नहीं मानी और शास्त्री जी की मौत के चार साल बाद तक कार की ईएमआई देती रहीं. उन्होंने कार लोन का पूरा भुगतान किया.
कहा जाता है कि वो कार हमेशा लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ रही. शास्त्रीजी की कार अभी भी दिल्ली लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल में रखी हुई है.
लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने अपनी किताब 'लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी' में देश के पूर्व प्रधानमंत्री के जीवन से जुड़े कई आत्मीय प्रसंग साझा किए हैं। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि उनके पिता सरकारी खर्चे पर मिली कार का प्रयोग नहीं करते थे। एक बार उन्होंने अपने पिता की कार चला ली तो उन्होंने किलोमीटर का हिसाब कर पैसा सरकारी खाते में जमा करवाया था।
शास्त्रीजी एक बार अपनी पत्नी और परिवार की अन्य महिलाओं के लिए साड़ी खरीदने मिल गए थे। उस वक्त वह देश के प्रधानमंत्री भी थे। मिल मालिक ने उन्हें कुछ महंगी साड़ी दिखाई तो उन्होंने कहा कि उनके पास इन्हें खरीदने लायक पैसे नहीं हैं। मिल मालिक ने जब साड़ी गिफ्ट देनी चाही तो उन्होंने इसके लिए सख्ती से इनकार कर दिया।
शास्त्रीजी मन और कर्म से पूरे गांधीवादी थे। एक बार उनके घर पर सरकारी विभाग की तरफ से कूलर लगवाया गया। जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री को इस बारे में पता चला तो उन्होंने परिवार से कहा, 'इलाहाबाद के पुश्तैनी घर में कूलर नहीं है। कभी धूप में निकलना पड़ सकता है। ऐसे आदतें बिगड़ जाएंगी।' उन्होंने तुरंत सरकारी विभाग को फोन कर कूलर हटवा दिया।
शास्त्रीजी बहुत कम साधनों में अपना जीवन जीते ते। वह अुनी पत्नी को फटे हुए कुर्ते दे दिया करते थे। उन्हीं पुराने कुर्तों से रुमाल बनाकर उनकी पत्नी उन्हें प्रयोग के लिए देती थीं।
अकाल के दिनों में जब देश में भुखमरी की विपत्ति आई तो शास्त्रीजी ने कहा कि देश का हर नागरिक एक दिन का व्रत करे तो भुखमरी खत्म हो जाएगी। खुद शास्त्रीजी नियमित व्रत रखा करते थे और परिवार को भी यही आदेश था।
शास्त्रीजी के बेटे सुनील शास्त्री कहते हैं, 'बाबूजी देश में शिक्षा सुधारों को लेकर बहुत चिंतित रहते थे। अक्सर हम भाई-बहनों से कहते थे कि देश में रोजगार के अवसर बढ़ें इसके लिए बेहतर मूल्यपरकर शिक्षा की जरूरत है।'
पिता के संस्मरण पर लिखी किताब में शास्त्रीजी के बेटे सुनील शास्त्री ने बताया, 'बाबूजी की टेबल पर हमेशा हरी घास रहती थी। एक बार उन्होंने बताया था कि सुंदर फूल लोगों को आकर्षित करते हैं लेकिन कुछ दिन में मुरझाकर गिर जाते हैं। घास वह आधार है जो हमेशा रहती है। मैं लोगों के जीवन में घास की तरह ही एक आधार और खुशी की वजह बनकर रहना चाहता हूं।'