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राष्ट्रपति ने दिल्ली सर्विस बिल को अपनी मंजूरी दी

[Edited By: Rajendra]

Saturday, 12th August , 2023 01:50 pm

संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद राष्ट्रपति ने दिल्ली सर्विस बिल को अपनी मंजूरी दे दी। इसके साथ ही 19 मई को जारी हुआ अध्यादेश अब कानून बन गया है। पहले सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को चुनौती दी थी, अब संशोधित कानून को चुनौती देगी।

संसद के मानसून सत्र में दिल्ली सेवा विधेयक पेश किया गया। इस बिल को लोकसभा में 3 अगस्त को पारित किया गया। लोकसभा में बहुमत के चलते केंद्र को बिल पास कराने में कोई मुश्किल सामने नहीं आई। राज्यसभा में सरकार के पास नंबर कम थे और वहां इसे पास कराने की चुनौती थी लेकिन सरकार को वहां भी कामयाबी मिली और 7 अगस्त को उच्च सदन से भी ये विधेयक पारित हो गया।

राज्यसभा में बिल के समर्थन में 131 वोट पड़े थे, जबकि विपक्ष में 102 सदस्यों ने वोट किया। आम आदमी पार्टी की अपील पर इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दलों ने बिल के विरोध में वोट दिया था। कांग्रेस ने भी बिल के विरोध में मतदान किया था। हालांकि, गठबंधन के सदस्य आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने वोटिंग से दूरी बनाई थी। राज्यसभा से बिल पास होने के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिन बताया था। केजरीवाल ने कहा था कि ये विधेयक दिल्ली की चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने देगा।

इस विधेयक के विरोध में पूरा विपक्ष खड़ा था। अरविंद केजरीवाल ने इस विधेयक को ही 2024 का सेमीफाइनल बताया था। लोकसभा में तो सरकार का बहुमत था इसलिए आसानी से बिल पास हो गया। पेच राज्यसभा में फंसने वाला था जो कि बीजेडी और वाईआरएस कांग्रेस के सरकार के साथ आने से आसान होगा। राज्यसभा में विपक्ष ने हंगामा किया लेकिन गृह मंत्री ने इसे पेश किया और पास भी करवा लिया। अब यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी केबाद कानून बन गया है जो कि पहले से लागू अध्यादेश की जगह ले रहा है।

दिल्ली सरकार में अधिकारियों के तबादला और नियुक्ति राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) करेगा। इसके चेयरमैन मुख्यमंत्री हैं और दो अन्य सदस्य मुख्यसचिव और गृह सचिव हैं।यानी मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं, वे अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकेंगे।
दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए कियी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले में एनसीसीएसए नामों के एक पैनल की सिफारिश उपराज्यपाल को करेगा। उपराज्यपाल अनुशंसित नामों के पैनल के आधार पर नियुक्तियां करेंगे।
अब मुख्य सचिव ये तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत।
इसी तरह अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है।
सतर्कता सचिव अध्यादेश के आने के बाद चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं वे एलजी के प्रति बनाए गए प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हैं।
अब अगर मुख्यसचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेंगे।इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं।
दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उन पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार का कंट्रोल खत्म हो गया है, ये शक्तियां एलजी के जरिए केंद्र के पास चली गई हैं।

विपक्ष का यह भी आरोप था कि यह विधेयक लाकर सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन कर रही है। वहीं सदन में गृह मंत्री ने जवाब दिया था और कहा थाकि यह विधेयक व्यवस्था को ठीक करने के लिए लाया जा रहा है। इससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं हुआ है। उन्होंने कहा था कि दिल्ली एक विधानसभा के साथ मगर सीमित अधिकारों के साथ केंद्र शासित प्रदेश है। जिसको भी दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ना है उसे इसका कैरेक्टर समझना चाहिए। पंचायत चुनाव लड़कर कोई संसद के अधिकार नहीं पा सकता है।

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