केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बढ़ते प्रदर्शनों को रोकने के लिए सभी पैंतरे इस्तेमाल करने शुरू कर दिए हैं. इन सबके बावजूद विरोध की चिंगारी थमने का नाम नहीं ले रही है. सरकार की तरफ से एक विज्ञापन जारी किया गया है. इसके जरिए कहा गया है कि इस कानून पर किसी तरह का कोई भ्रम न रहे. कल सुप्रीम कोर्ट में कानून का समर्थन कर रहे वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा था कि सरकार इसके लिए अखबारों में विज्ञापन क्यों नहीं देती. क्यों लोगों के भ्रम को दूर नहीं करती, तो आज अखबारों में सरकार ने विज्ञापन दे दिया है, इसमें अफवाहों को दूर करने की कोशिश की गयी है.
नागरिकता कानून और NRC को लेकर विपक्ष सरकार कों आंखे दिखा रहा है. धमका रहा है.. मगर सरकार का कहना है कि जब कानून में कोई खोट नहीं है, कोई खामी नहीं है तो झुकने का सवाल ही नहीं है.. सरकार भरोसा दिला रही है कि कानून से किसी की नागरिकता को कई खतरा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में अफवाहों को लेकर सुनवाई हुई.
विज्ञापनों के माध्यम से सरकार ने कहा है कि इस अधिनियम से जुड़ी कई प्रकार की अफवाहें और गलत सूचना फैलायी जा रही हैं, लेकिन ये किसी भी प्रकार से सच नहीं है. सीएए से जुड़े वास्तविक तथ्य इस प्रकार हैं...
सरकार ने जारी विज्ञापन में अफवाह और सच नाम से दो कॉलम प्रकाशित किया है. जिसमें लाल रंग में अफवाह और नीले-काले रंग में सच को दर्शाया गया है...
सच- सीएए किसी भी धर्म के मौजूदा भारतीय नागरिकों को प्रभावित नहीं करता है. यह 2014 तक भारत में रह रहे प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने से संबंधित है, न कि किसी व्यक्ति से नागरिकता छीनता है.
सच- यह एक झूठ है. सीएए तीन देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों पर लागू होगा. यह मुसलमानों सहित किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक को प्रभावित नहीं करता. इसलिए इससे भारतीय मुसलमानों के किसी भी तरह से प्रभावित होने का कोई सवाल ही नहीं है.
सच- गलत. किसी राष्ट्रव्यापी एनआरसी की घोषणा नहीं की गई है. अगर कभी इसकी घोषणा की जाती है तो ऐसी स्थिति में नियम और निर्देश ऐसे बनाए जाएंगे ताकि किसी भी भारतीय नागरिक को परेशानी न हो.
नागरिकता संशोधन अधिनियम किसी भी क्षेत्र के भारतीय नागरिक या किसी धर्म विशेष पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा.
नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA का फुल फॉर्म Citizenship Amendment Act है. ये संसद में पास होने से पहले CAB यानी (Citizenship Amendment Bill) था. Difference between CAA and CAB की बात करें तो संसद में पास होने और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ये बिल नागरिक संशोधन कानून (CAA, Citizenship Amendment Act) यानी एक्ट बन गया है. सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट की मदद से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.
इस एक्ट की मदद से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. लेकिन इस एक्ट में इस्लाम धर्म के लोगों को शामिल नहीं किया गया है. नागरिकता संशोधन बिल के कानून बनने के बाद अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के वो लोग जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश कर लिया था. वे सभी भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे. इस कानून के विरोधियों का कहना है कि इसमें सिर्फ गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता देने की बात कही गई है, इसलिए ये धार्मिक भेदभाव वाला कानून है जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
नागरिकता संशोधन कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली सभी 59 याचिकाओं पर कोर्ट ने संज्ञान लिया. कोर्ट ने नागरिकता कानून पर स्टे लगाने से साफ तौर पर मना कर दिया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. अब मामले की सुनवाई 22 जनवरी 2020 को होगी.
सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट की मदद से अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के वो लोग जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया था. वे सभी भारत की नागरिकता के पात्र होंगे.
CAB यानी Citizenship Amendment Bill संसद में पास होकर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद अब कानून बन गया है.
गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं. वहां धर्म के नाम पर मुस्लिम उत्पीड़ित नहीं होते, इसलिए उन्हें इस एक्ट में शामिल नहीं किया गया है.
नागरिकता के लिए कट-ऑफ की डेट 31 दिसंबर 2014 रखी गई है.
-इस कानून से असम के आदिवासी इलाके और मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के अलावा अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम व नागालैंड को बाहर रखा गया है.
-प्रत्यावर्तन किसी को वापस भेजने या किसी को उनके मूल स्थान पर वापस भेजने की प्रक्रिया है. एक बार जब सरकार अवैध प्रवासियों (अधिनियम के अनुसार) की राष्ट्रीयता निर्धारित करती है, तो आदर्श रूप से उन्हें अपने मूल देश वापस भेजा जाना चाहिए. हालांकि भारत की बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ऐसी कोई संधि नहीं है.
वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करने वाले लोग या वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने वाले वो लोग जो स्वीकृत अवधि के बाद भी वापस नहीं गए हैं, वे सभी अवैध प्रवासी हैं.
-अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले सभी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई जो दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा. उनके अलावा वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करने वाले लोग या वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने वाले वो लोग जो स्वीकृत अवधि के बाद भी वापस नहीं गए हैं, वे सभी अवैध प्रवासी हैं.
विरोधियों को कहना है कि ये कानून संविधान की मूल भावना और सेकुलरिज्म के खिलाफ है. इस कानून में देश में रह रहे अवैध प्रवासियों को धार्मिक आधार पर बांटा जा रहा है. ये देश में अवैध रूप से रह रहे छह धर्मों के लोगों को तो शरणार्थी मानकर नागरिकता देने की बात करता है लेकिन ऐसे मुस्लिमों को घुसपैठिया बताता है. इस कानून को एनआरसी की तैयारी भी बताया जा रहा है. भविष्य में एनआरसी लाने पर सिर्फ मुस्लिमों को ही अपनी नागरिकता साबित करनी होगी जबकि बाकी छह धर्मों को इससे छूट मिलेगी. वे मुस्लिम जो भारत की नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे उन्हें असम की तर्ज पर डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा.