कोरोना वायरस संकट के बीच देश में बेरोजगारी की समस्या और बढ़ी है, कई पढ़े-लिखे युवाओं को अब वो काम करना पड़ रहा है जिसके लिए उनकी डिग्री का भी कोई महत्व नहीं रह गया है। आज हम आपको कोलकाता की ऐसी ही एक लड़की से मिलवाने जा रहे हैं जिसने अंग्रेजी से एमबीए की डिग्री तो हासिल की, लेकिन आज तक एक नौकरी नहीं मिल सकी। अपने परिवार का पेट पालने के लिए अब लड़की ने चाय बेचना शुरू कर दिया है।
कोलकाता की टुकटुकी दास बनी प्रेरणा इंटरनेट और अन्य सोशल प्लेटफार्म पर आपने 'एमबीए चायवाला' के बारे में तो सुना ही होगा। आज हम आपको 'एमबीए इंग्लिश चायवाली' के बारे में बताने जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकता में रहने वालीं टुकटुकी दास के माता-पिता हमेशा उससे कहते थे कि अगर वह मेहनत से ढ़ती है, तो आसमान छू सकती है। टुकटुकी के माता-पिता उन्हें टीचर बनाना चाहते थे। इसके लिए टुकटुकी ने भी कड़ी मेहनत की और अंग्रेजी में एमए किया।
काफी कोशिश के बाद भी नहीं मिली नौकरी हालांकि इतना पढ़ने के बाद भी टुकटुकी को जॉब नहीं मिली। कई एग्जाम देने के बाद और हर संभव कोशिश के बाद भी वह सफल नहीं हो सकीं। अंत में उन्होंने चाय बेचने का फैसला किया। टुकटुकी ने उत्तर 24 परगना के हाबरा स्टेशन में चाय की दुकान खोली। अगर किसी को हाबरा स्टेशन जाना होता है, तो उन्हें टुकटुकी की दुकान का बैनर दिखाई देता है जिस पर लिखा होता है 'एमए अंग्रेजी चायवाली'।
टुकटुकी ने नहीं मानी हार टुकटुकी के पिता वैन ड्राइवर हैं और उनकी मां की एक छोटी सी किराना दुकान है। न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक पहले तो टुकटुकी के माता-पिता उनके चाय बेचने के काम से खुश नहीं थे, लेकिन जॉब न मिलने के बाद भी टुकटुकी ने हार नहीं मारी और अपनी सारी एनर्जी चाय बेचने के काम में लगा दी। वह 'एमबीए चायवाला' के प्रफुल्ल बिल्लोरे की कहानी से प्रेरित हुईं, जिनके बारे में उन्होंने इंटरनेट पर पढ़ा था।
'एमबीए चायवाला' से हुईं प्रेरित टुकटुकी ने कहा, 'मैंने सोचा था कि कोई काम छोटा नहीं है और इसलिए मैंने 'एमबीए चायवाला' की तरह अपनी चाय की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया।' टुकटुकी आगे कहती हैं, 'शुरुआत में जगह मिलना मुश्किल था लेकिन बाद में मैं इसे ढूंढने में कामयाब रही, अब मैं चाय-नाश्ता बेचती हूं। चूंकि मेरे पास एमए की डिग्री है, इसलिए मैंने दुकान का नाम इस तरह ही रखा है। मैं अपने बिजनेस से इस काम को बड़ा बनाना चाहती थी।'
पिता ने क्या कहा?
टुकटुकी के पिता प्रशांत दास ने कहा, 'शुरुआत में मैं उसके फैसले से खुश नहीं था, क्योंकि हमने उसे इस उम्मीद के साथ पढ़ाया-लिखाया था कि वह एक दिन टीचर बनेगी, और वह चाय बेचना चाहती थी। मैंने पुनर्विचार किया और सोचा कि अगर आत्मनिर्भर बनने का यह उसका निर्णय है, तो यह अच्छा है।' जो लोग टुकटुकी की दुकान पर चाय पीने जाते हैं, वो दुकान के नाम से काफी प्रभावित होते हैं।
दुकान के नाम से आकर्षित होते हैं ग्राहक स्टेशन पर कई यात्री टुकटुकी के इस फैसले से सहमत होते हैं, उनका भी मानना है कि टुकटुकी की कहानी देश के अन्य योग्य युवाओं के लिए प्रेरणादायी हो सकती है जो अपने लिए नौकरी हासिल करने में सक्षम नहीं हैं। यह पहली बार नहीं है जब कोई हाई एजुकेटेड व्यक्ति ने चाय बेचने का फैसला किया है। मध्य प्रदेश के लाबरवड़ा गांव के एक किसान का बेटा प्रफुल्ल बिलोर ने लगातार तीन साल कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) की तैयारी करने के बाद उन्होंने चाय की दुकान खोली।